अमरीका का अफ़गानिस्तान पर हमला शुरू से ही असफलता के संकेत देनेवाला – रशिया के पूर्व राष्ट्राध्यक्ष मिखाईल गोर्बाचेव का दावा

मास्को/वॉशिंग्टन – अमरीका ने अफ़गानिस्तान पर किया हुआ हमला शुरू से ही असफलता के संकेत देता था, यह दावा रशिया के पूर्व राष्ट्राध्यक्ष मिखाईल गोर्बाचेव ने किया है। गोर्बाचेव के कार्यकाल में ही वर्ष १९८९ में रशिया ने अफ़गानिस्तान से वापसी की थी। इस वजह से अमरीका की वापसी के बाद उनका यह बयान ध्यान आकर्षित करता है।

असफलता के संकेतअमरीका ने बीते वर्ष तालिबान के साथ समझौता करके अफ़गानिस्तान से अपनी सेना हटाने का ऐलान किया था। डोनाल्ड ट्रम्प के बाद राष्ट्राध्यक्ष ज्यो बायडेन ने भी सेना वापसी का यह निर्णय कायम रखा था। लेकिन, मई के बजाय सितंबर तक यह सेना वापसी पूरी होगी, यह ऐलान भी उन्होंने किया था। अमरीका और नाटो देशों की वापसी के बाद तालिबान फिर से पूरे अफ़गानिस्तान पर कब्ज़ा करेगी, यह ड़र भी जताया गया था। लेकिन, अमरीका की वापसी पूरी होने से पहले ही तालिबान ने अफ़गानिस्तान पर कब्ज़ा किया है।

इस कब्ज़े की पृष्ठभूमि पर विश्‍वभर से अलग अलग तरह की प्रतिक्रियाएँ सामने आ रही हैं। कुछ विश्‍लेषकों ने अमरीका की वापसी और अफ़गानिस्तान में हार बीते शताब्दी में रशिया की वापसी से अधिक भयानक और मानहानीकारक होने की आलोचना की है। ऐसे समय में सोवियत रशिया के गत राष्ट्राध्यक्ष गोर्बाचेव का बयान ध्यान आकर्षित करता है।

असफलता के संकेत‘बिल्कुल शुरू से ही अमरीका का अफ़गानिस्तान पर हमला करने की कल्पना बूरी थी। रशिया ने इसका शुरू में समर्थन भी किया था। अमरीका ने काफी पहले ही अपनी असफलता का स्वीकार करना चाहिए था। कम से कम अब अमरीका ने इस स्थिति से सबक सीखना चाहिए। भविष्य में अपनी गलतियाँ दोहरानी नहीं चाहिएं’, ऐसा इशारा गोर्बाचेव ने दिया। ‘अन्य मुहिमों की तरह अफ़गानिस्तान से संबंधित जो खतरा था ही नहीं, उसे अतिशयोक्ती से सामने रखा गया। इससे संबंधित भू-राजनीतिक कल्पना भी उचित पद्धति से तैयार नहीं की गई थी’, यह बयान भी गोर्बाचेव ने किया है।

अलग अलग वांशिक गुटों से बने समाज को लोकतंत्र के धागे में पिरोने की कोशिश वास्तव से जुड़ी हुई नहीं थी, इस ओर भी रशिया के पूर्व राष्ट्राध्यक्ष ने ध्यान आकर्षित किया।

विगत शताब्दी में सोवियत रशिया की हुकूमत ने वर्ष १९७९ में अफ़गानिस्तान में अपनी सेना तैनात की थी। लगभग एक लाख से अधिक सैनिकों की तैनाती के बावजूद रशिया को अफ़गानिस्तान में स्थिरता और रशिया समर्थक हुकूमत स्थापित करने में सफलता हासिल नहीं हुई थी। उसी समय अमरीका ने पाकिस्तान की सहायता से अफ़गान विरोधी गुटों को भारी मात्रा में हथियार और आर्थिक सहायता प्रदान करके रशिया के खिलाफ मोर्चा खोला था। इस मोर्चे का सामना करने में असफल सोवियत रशिया ने मिखाईल गोर्बाचेव के नेतृत्व में समझौता करके वर्ष १९८९ में वापसी की थी। इस वापसी के बाद मात्र दो ही वर्षों में सोवियत रशिया को बटवारे का सामना करना पड़ा था।

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