गलवान संघर्ष के तीन वर्ष बाद भारत-चीन के ‘एलएसी’ की स्थिति पुरी तरह से बदली – विश्लेषकों का अनुमान

नई दिल्ली – भारतीय सेना और चीन की सेना के बीच हुए गलवान संघर्ष के तीन वर्ष बुधवार को पूरे हो रहे हैं। वर्ष २०२० में लद्दाख की गलवान घाटी में हुए इस संघर्ष के बाद दोनों देशों के बीच काफी तनाव बढ़ा था। इसके बाद एलएसी पर अभी तक मुठभेड़ नहीं हुई है, फिर भी भारत-चीन के बीच बना तनाव भी कम नहीं हुआ है। गलवान संघर्ष के बाद भारत का चीन पर बिल्कुल भरोसा नहीं रहा। इसी वजह से चीन की आक्रामक हरकतों को रोकने के लिए भारत ने चीन से जुड़ी लगभग ३,५०० किलोमीटर की सीमा पर सेना के लिए भारी मात्रा में बुनियादी सुविधाओं का निर्माण किया है। इसका असर दिखने लगा है और पहले के दौर में भारत पर सैन्यकी दबाव बनाने की कोशिश में रहा चीन अब भारत अपने सरहदी क्षेत्र में विकसित कर रहे बुनियादी सुविधाओं पर अब चिंता जताने लगा है।

कर्नल संतोष बाबू के साथ २० सैनिकों को गलवान संघर्ष में वीरगति प्राप्त हुई। १५ जून, २०२० के दिन हुए इस संघर्ष के बाद भारत में चीन विरोधी गुस्से की लहर उठी थी। तीन वर्ष बाद भी भारतीय नागरिकों में चीन विरोधी असंतोष कम नहीं हुआ है। दोनों देशों के संबंधों पर इसका विपरित परिणाम हुआ है। भारत थोड़े दिन बाद गलवान संघर्ष भूल जाएगा और भारत सरकार हमारे विरोध में सख्त कार्रवाई नहीं कर सकेगी, इस विचार में चीन था। लेकिन, चीनी कंपनियां, चीनी एप्स पर प्रतिबंध लगाकर भारत सरकार ने चीन का यह भ्रम तोड़ दिया। इसके साथ ही चीन के साथ भारत के संबंध अभी भी सामान्य नहीं हैं, दोनों देशों के ‘एलएसी’ पर अभी भी तनाव कायम है, ऐसा बयान भारतीय नेता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुलेआम कर रहे हैं।

चीन से भारत पहुंच रहे कच्चे सामान पर भारतीय उद्योग पहले से निर्भर होने से अभी भी भारत को चीन से भारी मात्रा में आयात करनी पड़ रही है। इस वजह से दोनों देशों के व्यापार पर इस तनाव का उतना असर नहीं हो सका। भारत अभी भी द्विपक्षीय व्यापार में १०० अरब डॉलर से भी अधिक घाटा भुगत रहा है। लेकिन, आगे के समय में भारत की यह आयात कम होगी और इसके बाद चीन को इससे भारी नुकसान पहुंचेगा, ऐसा विश्लेषक कह रहे हैं। इसके साथ ही आगे के समय में ‘एलएसी’ पर भारत को चुनौती देने से पहले चीन को एक बार नहीं कई बार सोचना पड़ेगा, ऐसी स्थिति बनी होने की बात सुत्र कह रहे हैं।

एलएसी पर भारत ने पिछले तीन सालों में काफी बड़ी संख्या में हेलिपैडस्‌‍, रनवे, पूल, सुरंग, सैनिकों के लिए अड्डे एवं सेना के लिए अन्य सुविधाओं का बड़ा निर्माण किया है। इसके साथ ही इस क्षेत्र में सड़क निर्माण को सबसे अधिक अहमियत दी जा रही है और इससे सेना की यातायात का समय काफी कम हुआ है। चीन की किसी भी हरकत पर शीघ्रता से प्रत्युत्तर देने की बड़ी तैयारी भारत ने जुटाई है और भारतीय सेना को उन्नत हथियार और रक्षा सामान प्राप्त हुआ है।

गलवान संघर्ष के बाद चीन ने लद्दाख के ‘एलएसी’ के करीब ५० हज़ार से भी ज्यादा सैनिक तैनात करके भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की थी। लेकिन, उतने ही सैनिक तैनात करके भारत ने चीन को मुंहतोड़ प्रत्युत्तर दिया था। इसके बाद चीन ने तिब्बत के दक्षिणी हिस्से में तैनाती बढ़ाकर और युद्धाभ्यास करके भारत को धमकाने की कोशिश की थी। लेकिन, भारतीय सेना और वायु सेना इस क्षेत्र पर वर्चस्व बनाए होने की बात कई बार स्पष्ट हुई थी। इस वजह से गलवान संघर्ष छेड़ कर चीन ने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारी हुई दिख रही है।

मौजूदा दौर में भारत के साथ हमारे अच्छे ताल्लुकात होने का दावा चीन कर रहा हैं। लेकिन, चीन के यह दावे झूठे हैं और दोनों देशों के संबंधों में तनाव होने की बात भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्पष्ट कर रहा हैं। गलवान संघर्ष के बाद चीन संबंधित भारत की नीति बिल्कुल स्पष्ट हुई है और इसके आगे चीन का भरोसा नहीं कर सकते, इसका अहसास भारत के रनणनीतिकारों को हुआ है, यह अनुमान पश्चिमी विश्लेषकों ने दर्ज़ किया है। इस वजह से चीन अधिक से अधिक बेचैन हो रहा है और भारत संघर्ष से ज्यादा सहयोग की नीति अपनाए, इसी में दोनों देशों का हित है, यह संदेश चीन लगातार भारत को दे रहा है। लेकिन, चीन के बयान और हरकतों में मेल नहीं हैं, ऐसी आलोचना भारत ने की है। चीन के अलावा अन्य सभी प्रमुख देशों के साथ हमारे देश के अच्छे ताल्लुकात है, ऐसा भारतीय नेता कह रहे हैं। इसके अलावा चीन के बिगड़े संबधों के लिए भारत नहीं, बल्कि चीन ने किया विश्वासघात ज़िम्मेदार है, इसपर भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित कर रहा हैं।

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