‘डीआरडीओ’ ने किया ‘एचएसटीडीवी’ का सफल परीक्षण – शत्रु के सुरक्षा कवच को आसानी से छेदना होगा संभव

नई दिल्ली – भारत के रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (डीआरडीओ) ने सोमवार के दिन ‘हायपरसोनिक टेस्ट डेमॉनस्ट्रेटर वीइकल’ (एचएसटीडीवी) यानी ‘हायपरसोनिक टेक्नॉलॉजी’ का सफल परीक्षण किया। ‘हायपरसोनिक क्रूज मिसाइल’ का निर्माण करने की दिशा में यह एक बड़ा अहम कदम है और इसकी वजह से भारत अगले पांच वर्षों में ‘स्क्रैमजेट इंजन’ की सहायता से ‘हायपरसोनिक मिसाइल’ का निर्माण कर सकेगा, यह विश्‍वास व्यक्त किया जा रहा है। इस सफलता के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने डीआरडीओ के वैज्ञानिकों की सराहना की। ‘एचएसटीडीवी’ के इस सफल परीक्षण से भारत का अमरीका, रशिया और चीन के ‘हायपरसोनिक मिसाइल क्लब’ में समावेश हुआ है।

‘एचएसटीडीवी’

सोमवार की सुबह ११.०३ बजे ‘डीआरडीओ’ ने ओडिशा के डॉ.अब्दुल कलाम द्विप पर ‘एचएसटीडीवी’ का सफल परीक्षण किया। अग्नी मिसाईल बूस्टर से ३० किलोमीटर उंचाई पर इस ‘हायपरसोनिक वीइकल’ ने उड़ान भरी। वैज्ञानिकों ने तय किए सभी निकष पूरे करके ‘एचएसटीडीवी’ ने ध्वनि की गति से छह गुना तेज़ गति से सफर किया। इस ‘एचएसटीडीवी’ के परीक्षण के लिए पहली बार देश में ही बनाए गए ‘प्रपल्शन सिस्टिम’ का इस्तेमाल किया गया। ‘एचएसटीडीवी’ ने ‘स्क्रैमजेट इंजन’ की सहायता से उड़ान भरी और भविष्य में यही ‘एचएसटीडीवी’ उपग्रह प्रक्षेपित करने के लिए भी उपयुक्त साबित होगा।

‘एचएसटीडीवी’

‘एचएसटीडीवी’ यानी ‘हायपरसोनिक टेक्नॉलॉजी’ के इस सफल परीक्षण की वजह से भारत को शत्रु के सुरक्षा कवच को छेदने की क्षमता प्राप्त हुई है। ‘बैलेस्टिक मिसाइलों’ के सुरक्षा कवच में छेद करना आसानी से संभव नहीं होता। ‘बैलेस्टिक मिसाइल’ प्रक्षेपित होने से ही उस पर नज़र रखना संभव होता है। साथ ही ऐसे मिसाइल पीछा करके नष्ट भी करना संभव होता है। लेकिन, हायपरसोनिक मिसाइलों का पीछा करना कठिन होता है। ऐसे मिसाइल निश्चित मार्ग से सफर नहीं करते। साथ ही यह मिसाइल्स ध्वनि से छह गुना तेज़ गति से सफर करने से उन्हें मार गिराना भी कठिन होता है। इसी वजह से शत्रु को पता चलने से पहले ही सुरक्षा कवच में छेद करने की क्षमता रक्षा बलों को प्राप्त होती है। चीन के साथ बने तनाव की पृष्ठभूमि पर ‘एचएसटीडीवी’ का परीक्षण अहमियत रखता है।

इस परीक्षण की वजह से भारत ‘हायपरसोनिक क्लब’ का चौथा देश बना है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘डीआरडीओ’ के वैज्ञानिकों की सराहना करते हुए कहा कि, ’काफी कम देश ऐसा सामर्थ्य रखते हैं’। तभी, ‘डीआरडीओ’ की यह सबसे बड़ी सफलता है और यह आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बढ़ाया गया पहला कदम होने की बात रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कही। काफी जटिल और कठिन तकनीक विकसित करके भारत ने अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है, ऐसा आत्मविश्‍वास भी रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने व्यक्त किया।

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