श्रीलंकन संसद का चीन को तगडा झटका; राजपक्षे के खिलाफ अविश्‍वास प्रस्ताव पारित

कोलंबो – निर्वाचित प्रधानमंत्री रानील विक्रमसिंघे इन्हे हटा कर श्रीलंका के राष्ट्राध्यक्ष मैत्रिपाला सिरिसेना इन्होंने महिंदा राजपक्षे इन्हे प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त किया था| लेकिन, श्रीलंकन संसद ने राजपक्षे के खिलाफ अविश्‍वास प्रस्ताव पारित करके देश का लोकतंत्र और पुख्ता किया है| इस वजह से राष्ट्राध्यक्ष सिरिसेना और राजपक्षे इन्हें तगडा राजनीतिक झटका मिला है| इस के साथ ही अपने हितैषी राजपक्षे इन्हे श्रीलंका के प्रधानमंत्री पद पर बैठे देखने के लिये उत्सुक चीन को भी झटका मिला है| राजपक्षे इनके खिलाफ अविश्‍वास प्रस्ताव पारित हुआ है फिर भी श्रीलंका राजनीतिक स्थिरता बनी रहे, यह प्रतिक्रिया चीन ने हतबलता के साथ व्यक्त की है|

श्रीलंका के राष्ट्राध्यक्ष सिरिसेना इन्होंने पिछले महिने यकायक विक्रमसिंघे इन्हे प्रधानमंत्री पद से हटाया था और उनकी जगह राजपक्षे इन्हे नियुक्त करके श्रीलंका में बडा राजनीतिक तुफान लाया था| इसके साथ ही उन्होंने संसद भंग करके राजपक्षे इन्हे बहुमत सिद्ध करने की जरूरत ना रहे, इसके लिये सावधानी बरती थी| विक्रमसिंघे इनकी समर्थकों ने राष्ट्राध्यक्ष सिरिसेना के निर्णय के विरोध में जोरों से प्रदर्शन शुरू किये थे| साथ ही संसद के सभापति ने भी जबतक राजपक्षे बहुमत सिद्ध नही करते तब तक उन्हे प्रधानमंत्री समझना मुमकिन नही| विक्रमसिंघे इन्हें ही संसद की मान्यता है, यह ऐलान उन्होंने किया था| इस वजह से श्रीलंका में बडे तौर पर राजनीतिक टकराव हुआ था| राष्ट्राध्यक्ष सिरिसेना इनके उपर संसद का सत्र आमंत्रित करने के लिये दबाव बढा था| लेकिन उन्होंने संसद भंग करके जनवरी में चुनाव लेने का ऐलान किया था|

लेकिन मंगलवार के दिन इस विरोध में दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान श्रीलंका के सवोच्च अदालत ने राष्ट्राध्यक्ष सिरिसेना का संसद भंग करने का निर्णय रद्द किया| साथ ही संसद का सत्र बुलाने के लिये आदेश जारी करके सर्वोच्च अदालत ने सिरिसेना इन्हे झटका दिया| बुधवार के दिन संसद में राजपक्षे इनके विरोध में अविश्‍वास प्रस्ताव मंजूर होने से सिरिसेना-राजपक्षे इन्हे दोहरा झटका मिला है| अविश्‍वास प्रस्ताव के पक्ष में २२५ मत मिले, यह सभापती कुरू जयसूर्या इन्होंने घोषित किया|

राजपक्षे चीन के करिबी माने जाते है| प्रधानमंत्री बनने के बाद राजपक्षे की विदेश नीति में चीन के प्रति झुकाव दिखाई देता था| इस पृष्ठभुमि पर गैर लोकतांत्रिक तरीके से प्रधानमंत्री नियुक्त पर चीन ने राजपक्षे की नियुक्ती का स्वागत किया था| साथ ही श्रीलंका के अंदरूनी राजनीति से दूर रहे, ऐसी सलाह भी चीन ने अन्य देशों को दी थी| लेकिन, भारत, अमरिका और युरोपिय देशों ने श्रीलंका की गतिविधीयों पर चिंता जता कर लोकतंत्र का संरक्षण हो, ऐसी आशा व्यक्त की थी| बुधवार के दिन संसद में राजपक्षे इन्हे झटका मिला और उसके बाद चीन से प्रतिक्रिया सामन आयी है| इस दौरान चीन का सूर में नरमाई दिख रही है| श्रीलंका में राजनीतिक स्थिरता स्थापित होगी, यह आशा चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हुआ चुनयिंग इन्होंने व्यक्त की है|

चीन ने श्रीलंका को बडी मात्रा में कर्जा दिया है| इस में से अधिकतम कर्जा राजपक्षे इनके प्रधानमंत्री पद के कार्यकाल में लिया गया है| इस कर्ज के चंगुल में फंसे श्रीलंका को अपना हंबंटोटा बंदरगाह चीन के कंपनी के हाथ सौपना पडा था| पिछले चुनाव में राजपक्षे की हुई पराजय से श्रीलंका पर बनाया प्रभाव कम होने के बाद यह प्रभाव बढाने की चीन की कोशिश शुरू हुई थी| इसी दौरान श्रीलंका में राजनीतिक उथलपथल होने से चीन को दुबारा आस लग रही थी| लेकिन राजपक्षे इनके विरोध में अविश्‍वास प्रस्ताव मंजूर करके श्रीलंका के संसद ने चीन का षडयंत्र असफल किया है|

Leave a Reply

Your email address will not be published.