रोहिंग्या शरणार्थीयों के बारे मे कायदे के दृष्टिकोन से विचार किया जायेगा – सर्वोच्च न्यायालय

नई दिल्ली: केंद्र सरकारने राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा होने की बात कहकर अवैध रूप से देश मे घुसे रोहिंग्या शरणार्थियों को बाहर खदेड़ने का निर्णय लिया था। इस पर दाखिल की गई याचिका पर १३ अक्टूबर के रोज सुनवाई होगी, ऐसा सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है। पर इस मामले मे भावनिक मुद्दे पर विचार नहीं किया जाएगा बल्कि कानूनन बातों का विचार होगा, ऐसा सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है। रोहिंग्या घुसपैठ का मानवतावादी दृष्टिकोण से विचार करें ऐसी मांग भी कुछ लोगों से की जा रही थी, उस पर सर्वोच्च न्यायलय ने इनकार जताने की बात दिखाई दे रही है।

भारत मे ४० हजार रोहिंग्या अवैधरूप से घुसपैठ करके निवास कर रहे है। जिसकी वजह से राष्ट्रीय सुरक्षा को गंभीर खतरा हो रहा है। इन रोहिंग्या शरणार्थियों को संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थियों का प्रमाण पत्र नहीं या कोई भी वैध दस्तावेज नहीं, इनमे से कुछ रोहिंग्याओ के संबंध देश के विरोध मे षडयंत्र करने वाले पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था ‘आयएसआय’ और ‘आयएस’ जैसे अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन से है। तथा कुछ लोग अपराधी कार्यवाहियों मे उलझे है। इस संदर्भ मे सबूत भी मिले है, ऐसा केंद्र सरकार ने १४ सप्टेंबर के रोज सर्वोच्च न्यायालय मे दाखिल किए हुए प्रतिज्ञापत्र मे कहा था। तथा घुसपैठ करनेवाले को भारत मे रहने की अनुमति नहीं दे सकते, ऐसी ठोस भूमिका इस प्रतिज्ञापत्र से केंद्र सरकार ने प्रस्तुत की थी।

कायदे के दृष्टिकोनइस १६ पन्नों के प्रतिज्ञापत्र मे घुसपैठ की वजह से निर्माण होनेवाला संकटपूर्ण जनसंख्या का बदलाव तथा उनकी सामाजिक समस्याओं का मुद्दा सरकार ने स्पष्ट किया था। केंद्र सरकार ने इस बारे मे ठोस भूमिका ली है। फिर भी देश के कुछ बुद्धिमान तथा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने उसका कड़ा विरोध किया है। रोहिंग्या शरणार्थियों का मुद्दा मानवतावादी दृष्टिकोण से देखना होगा एवं उन्हें भारत मे आश्रय देना होगा ऐसी मांग इस गट से की जा रही है।

तथा सभी रोहिंग्या शरणार्थी आतंकवादी नहीं ऐसा युक्तिवाद भी इस गट से कुछ लोगों ने किया है। केंद्र सरकार ने इस प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय मे प्रस्तुत किए प्रतिज्ञापत्र के विरोध मे सर्वोच्च न्यायालय मे याचिका दाखिल की गई है।

इन सारे याचिकाओं की एकत्रित सुनवाई की जाएगी और यह सुनवाई १३ अक्टूबर से शुरु होगी एसा न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा इनके अध्यक्षता मे सर्वोच्च न्यायालय के ३ सदस्य अदालत ने स्पष्ट किया है। याचिकाकर्ता अपने दावे का समर्थन करने वाले दस्तावेज तैयार रखें, ऐसी सूचना अदालत ने दी है। उस समय इस प्रश्न को सर्वोच्च न्यायालय भावनिक मुद्दे के तौर पर नहीं देखेगा बल्कि कानूनन पक्ष विचार का विचार होगा ऐसा भी अदालत ने कहा है।

मानवतावाद का मुद्दा एक दूसरे के बारे मे सम्मान यह निजी रूप से संबंधित होने की टिप्पणी सर्वोच्च न्यायालय ने की थी। इस संदर्भ मे अंतरराष्ट्रीय स्तर से भारत पर दबाव आ रहा है और भारत रोहिंग्या शरणार्थियों को आश्रय दे ऐसी मांग संयुक्त राष्ट्रसंघ से की जा रही है। जिन्होंने कानूनन तौर पर भारत से आश्रय मांगा है, ऐसे रोहिंग्या शरणार्थियों को बाहर नहीं निकाला जाएगा। पर जो अवैध रूप से भारत मे घुसे है ऐसे शरणार्थियों को भारत मे आश्रय नहीं दिया जायेगा, ऐसी केंद्र सरकार की भूमिका है। भारत के सार्वभौमत्व का सम्मान करनेवाले देश मे आश्रय न देने की केंद्र सरकार की भूमिका योग्य होने की बात कहकर देशभर से इसे समर्थन मिल रहा है। पर कुछ बुद्धिमान एवं मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की इस बारे मे भूमिका कुछ और होकर इस प्रश्न पर देश मे जोरदार विवाद शुरू होने के बाद दिखाई दे रही है।

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