रेजिनाल्ड फ़िसेन्डन

अमरीका के मॅसॅच्युसेट्स राज्य के किनारे से कुछ ही दूरी पर कुछ नौकाएँ अपने अपने मार्ग पर स्थिर खडी थीं। नौकाओं में रेडिओ ऑपरेटर्स अपने-अपने काम में मग्न थे। वह १९०६ की ख्रिसमस ईव्ह थी। सब में उत्साह की लहर दौड रही थी कि तभी सेंट ल्युक के द्वारा लिखी गई बायबल की काव्यपंक्ति उन्हें सुनायी दी और साथ ही शुभ संदेश भी दिए गए।

Fessenden

रेजिनाल्ड फ़िसेन्डन नाम के एक प्राध्यापक की यह आवाज थी। प्राध्यापक रेजिनाल्ड ये उस देश में बनाये गए इस रेडिओ के प्रवर्तक थे।

इस प्रथम रेडिओ प्रक्षेपण के लिए ब्रॅट रॉकबंदरगाह के नॅशनल इलेक्ट्रिक सिग्नलींग कंपनी के ४२० फीट की ऊँचाई वाली रेडिओ प्रक्षेपण मीनार का उपयोग किया था। किनारे से केवल आठ किलो मीटर इतनी ही प्रक्षेपण मर्यादा थी। बायबल में दिए गए काव्य के साथ ही प्राध्यापक रेजिनाल्ड ने अपनी व्हायोलीन पर ‘ओ होली नाईट’ गाने की धुन बजाकर दिखलाई। इसके पीछे पीछे खलाशियों का और भी अधिक मनोरंजन करने के लिए उस समय के एक प्रसिद्ध लोकप्रिय गाने का रिकार्ड भी सुनाया गया।

प्रक्षेपित करनेवाली विद्युत्-चुंबकीय लहरों का ऑॅटिट्यूड (आयाम) ध्वनि लहरों के अनुसार बदलने पर संभाषण एवं संगीत दूर तक प्रक्षेपित किया जा सकता है, इस बात का पता रेजिनाल्ड ने अपने संशोधन के आधार पर लगाया था। इस प्रकार से बदलाव लायी गयी विद्युत्-चुंबकीय लहरों को ‘अ‍ॅम्लिटयूट मॉड्युलेटेड वेव्हज’ कहा जाता है। आज भी इसी पद्धति के अनुसार रेडिओ कार्यक्रमों को प्रक्षेपित किया जाता है। अन्य लोगों के सामने अपने संशोधन की सत्यता सिद्ध करने के लिए रेजिनाल्ड ने रेडिओ प्रक्षेपण का उपयोग किया।

रेजिनाल्ड एक कैनडियन संशोधक थे। ६ अक्तूबर १८६६ के दिन क्युबेक के बोस्टन नामक स्थान पर इनका जन्म हुआ था। कुछ ही वर्षों पश्‍चात् उनका समस्त परिवार ओंटॅरीओ में आकर बस गया। बचपन से ही उन्हें गणित विषय काफ़ी पसंद था। इस विषय में वे काफ़ी चतुर और प्रतिभा संपन्न थे। उनकी इस प्रतिभा को देखते हुए उनके माता-पिता ने उन्हें उत्तम शिक्षा हासिल करवायी। उम्र के अठारहवे वर्ष ही बर्म्युडा के एक स्कूल में उन्हें मुख्यध्यापक का पद प्रदान किया गया। ग्रॅहॅम बेल की टेलिफ़ोन की खोज से वे प्रभावित हुए थे। इलेक्ट्रिशियन का काम भी उन्होंने सीखा और इसके पश्‍चात् थॉमस एडिसन नामक संशोधक के साथ मिलकर इलेक्ट्रिक वायर के इनस्युलेशन संबंधित काम करने का अवसर रेजिनाल्ड को प्राप्त हुआ। पेनिनसिव्हानिया (वर्तमान का पिटसबर्ग विद्यालय) विद्यालय में इलेक्ट्रिक इंजीनिअरिंग विभाग के प्रमुख पद पर पदोन्नति मिली। संशोधन करने के लिए आवश्यक आर्थिक सहायता नहीं मिल रही थी।

१९०० में उन्होंने विश्‍वविद्यालयीन नौकरी छोड़कर युनायटेड स्टेट व्हेदर ब्युरो में दाखिला प्राप्त किया, उनके मन में आस थी कि संशोधन कार्य को आगे बढाने का अवसर यहाँ पर मिलेगा। पेनसिल्व्हानिया के दो धनी व्यावसायिकों ने नेशनल इलेक्ट्रिक सिग्नलिंग कंपनी (नेसको) शुरु करने में रेजिनाल्ड की मदद की। वहाँ पर प्राध्यापक रेजिनाल्ड के प्रयोगों को गति प्राप्त हुई। १९०५ से १९१२ इस दरमियान रेजिनाल्ड स्वयंचलित वायरलेस यंत्रणा विकसित करने में सफल हुए। उन्होंने गोताखोरों के लिए (सबमरीन) बगैर वायर की एक यंत्रणा की खोज की, जिससे वे एक-दूसरे के साथ संपर्क कर सकते थे। उन्होंने एक ऐसा उपकरण बनाया, जिसका उपयोग करके रेडिओ लहरों से अनेकों मील की दूरी से हिमनगों का पता लगाया जा सकता था। इस के द्वारा भविष्य में ‘टायटॅनिक’ जैसी दुर्घटना को टाला जा सकने की उम्मीद जाग उठी।

प्रथम महायुद्ध के दौरान उन्होंने कनाडा सरकार से निवेदन किया कि वे स्वेच्छा से युद्धकालीन सेवा देने के लिए तैयार हैं। इस अवसर पर भी उन्होंने रात के समय में तोपखाने, पनडुब्बियाँ आदि को ढूँढ़ निकालनेवाले उपकरण की खोज की।

रेजिनाल्ड को यदि ढूँढ़ना हो तो वे नदी, तालाब में आकाश की ओर मुख करके पीठ के बल तैरते हुए नज़र आते थे। उनके मुख में सिगार और आँखों पर उनकी हैट हुआ करती थी। इस तरह से वे काम की थकान दूर करते थे। साथ ही नयी नयी कल्पना भी उन्हें इसी तरह एकांत में ही सूझती होगी, ऐसा मजाक ही मजाक में कहा जाता है।

रेजिनाल्ड के नाम पर कम से कम पाँच सौ पेटंट जमा हैं। १९१५ में उन्होंने फ़ॅथोमीटर नाम के सोलार उपकरण की खोज की, जिसका उपयोग पानी की गहराई में साऊंड वेव्हज् ढूँढ़ने में किया जाता है। इस शोध के लिए उन्हें १९२९ में सायंटिफ़िक अमेरिकन्स का गोल्ड मेडल प्राप्त हुआ। इन्स्टिट्यूट ऑफ़ रेडिओ इंजीनिअर की ओर से उन्हें पुरस्कार एवं नकद रकम पारितोषिक के रूप में देकर गौरवान्वित किया गया। बर्म्युडा के घर में जहाँ वे रहते थे, वहाँ बाईस जुलाई १९३२ में उनका देहांत हो गया। मॅसच्युसेट्स में उनका जो मकान था, उसका राष्ट्र की धरोहर के रूप में जतन किया गया।

न्युयॉर्क हेराल्ड नामक वृत्तपत्रिका में लिखा गया है – इस संशोधनकर्ता को उनकी प्रत्यक्ष कार्यक्षमता के बारे में बिलकुल मामूली महत्त्व दिया गया। उन्हें अकेले ही अपने संशोधन के लिए संघर्ष करना पड़ा। परन्तु महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि दुनिया के लोगों का साथ न हो, तब भी विज्ञान के क्षेत्र में अकेला व्यक्ति भी संशोधन कर सकता है और कोई उसे न भी माने तब भी समय की कसौटी पर उसका संशोधन कार्य खरा उतरता ही है।’

रेजिनाल्ड इसी श्रेणी के वैज्ञानिक थे। वे ऐसे व्यक्ति थे, जिनके द्वारा की गयी अपार खोज इस दुनिया के लिए अत्यधिक लाभदायक साबित हुई।

Leave a Reply

Your email address will not be published.