एडमंड हैले

Edmund Halley मानव जीवन तेजी से बदल रहा है। इसका श्रेय विज्ञान एवं उस के प्रचार को दिया जाता है। संशोधकों में गणित की सहायता से सिद्धांतों द्वारा कुदरति घटनाओं का कारण जानने की मिमासा है। एक समय ऐसा था कि लोगों के मन में धूमकेतु का बहुत डर हुआ करता था। वैज्ञानिक जानकारी उपलब्ध न होने की वजह से संपूर्ण विश्व में गलत धारणाएँ एवं भय की स्थिति थी।

विशेष धूमकेतु का बारीकी से अध्ययन करनेवाले संशोधक के रूप में एडमंड हैले को जाना जाता है। ८ नवम्बर १६५६ को लंदन में एडमंड हैले का जन्म हुआ। उनकी शिक्षा ऑक्सफर्ड युनिर्व्हसिटी में हुई। बाद में उन्होंने खगोलशास्त्र की शिक्षा पाई। सन १६९७ को हैले लंदन लौटे। किसी भी परिक्षा के बिना उन्हें एम.ए. की डिग्री दी गई।

उनके खोज निबंधों से खगोल शास्त्र के गहरे ज्ञान का अंदाजा होता है। ज्वार-भाटा, बहती हुई हवाओं की दिशाएँ, धरती की उम्र का अंदाजा, धरती के चुंबकीय क्षेत्र का परिवर्तन, विश्वशास्त्र, प्रस्तर विज्ञान, मौसमविज्ञान, प्रकृति का इतिहास, जीवनमृत्यु का प्रमाण ऐसी विभिन्न शाखाओं में उन्होंने संशोधन किया।

वे सन १६८५ से १६९६ तक रॉयल सोसायटी के मासिक, ‘फिलॉसॉफिकल ट्रान्झॅक्शन’ के संपादक थे। सन १६९६ से १६९८ के दौरान वे इंग्लंड के टकसाल के उपनियंता के रूप में कार्यरत थे। सन १६९८ में उन्हें एक युद्धनौका का कप्तान नियुक्त किया गया था। उन्हें धरती की चुंबकता के नकाशे से संबंधित कार्य के लिए कप्तानपद का उपयोग हुआ। वे ऑस्ट्रिया की राजधानी विएन्ना में राजदूत के पद पर भी थे। वे सन १७२० में इंग्लंड स्थित ग्रीनविच इस प्रसिद्ध वेधशाला के प्रमुख थे। ऐसी विविधता से परिपूर्ण कार्यकाल वाले हैले को विश्व प्रमुखता से धूमकेतु के संशोधन की वजह से जानता है।

सन १६८२ में हैले ने पहली बार ही धूमकेतु देखा, उसका अध्ययन किया। धूमकेतु की लंबी पूंछ की वजह से इसे चोटी नक्षत्र भी कहा जाता है। उन  (धूमकेतु) की गतिविधि दृष्य स्वरूप में एवं वैशिष्ट्यपूर्ण है तथा वे अकस्मात दिखाई देते हैं। इसलिए वे सब को आकर्षित करते हैं। इसे देखने पर ऐसा लगता है जैसे किसी तारे की लंबी पूंछ है और वह बादलों की छटा से ढ़का हुआ है। केंद्र में स्थित तारे की भाँति दिखाई देनेवाले भाग को ‘सारभाग’ कहते हैं। सारभाग, शिखा, चंचु धूमकेतु के कुछ भाग हैं। वैदिक साहित्य में धूमकेतुओं का वर्णन मिलता है। पाँचवीं शताब्दी के अंत में आये हुये वराहमिहिर की बृहत्संहिता में इन के वर्णन मिलते हैं। चीनी साहित्य, ग्रीक, रोमन, जपानी, कोरिया के भी ग्रंथों में धूमकेतु के उल्लेख हैं।

सोलहवीं शताब्दी में पश्चिमी लोगों का मानना था कि, धूमकेतु तो वायुमंडल का आविष्कार होगा। बाद में टायको ब्राहे, मिस्टलिन आदि वैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया कि धूमकेतु धरती से बहुत दूर अर्थात चंद्रमा से भी परे होना चाहिए। न्युटन ने गणित की सहायता से साबित कर दिखाया कि धूमकेतुओं का दायरा गुरुत्वाकर्षण पर निर्भर है।

हैले और न्युटन इन दोनों संशोधकों में घनिष्ट दोस्ती थी। सर आयजैक न्युटन ने हैले के समर्थन की वजह से ग्रहों की गति के बारे में संशोधन लिखा (प्रिन्सिपिया) एवं हैले ने अपने खर्च पर उसे प्रकाशित किया।

एडमंड हैले ने गणित की सहायता से कई धूमकेतुओं के दायरे निश्चित किए। हैले ने निष्कर्ष निकाला कि, सन १३७८, १४५६, १५३१, १६०७ में दिखा हुआ तेजस्वी धूमकेतु ही सन १६८२ में भी दिखाई दिया होगा। इस के फेरे का समय ७५ बरसों का है। यही १७५८ में भी दिखाई देगा। उन की यह बात सच साबित हुई।

धूमकेतुओं के अध्ययन में हैले का कार्य एक महत्वपूर्ण चरण है। यह सितम्बर १९०९ में यह दिखाई दिया। १९१० के मई महीने में बडा दिखाई दिया, जून १९११ तक वह दिखाई देता रहा।

Halley enquiring of Newton

सन १९१० में हैले का आगमन डरावना था। धरती इस धूमकेतु की पूंछ से गुजरेगी इस खबर की वजह से घबराहट फैल गई थी। उस के विशैले वायु से धरती पर विशैला माहौल छा जाएगा ऐसी विचित्र सोच से लोग घरों के दरवाजे आदि बंद करके बैठे थे। खान मजदूरों ने खानों में जाने से मना इन्कार कर दिया था। अत्युक्ति तो यह है कि, कहा जाता है कईयों ने यहां तक जानना चाहा कि, क्या ‘धूमकेतु प्रतिबंधक गोलियों’ की सहायता से बचाव हो पाएगा?

सन १९५५ के बाद इस शास्त्र में बहुत बडी उन्नति हुई। नकली उपग्रहों की वजह से अध्ययन सरल, सुलभ हो गया। सन १९८६ में हैले का पुनरागमन हुआ। बीसवीं शताब्दी में लोगों को धूमकेतु के स्वरूप की जानकारी थी। सन १७४२ में धूमकेतुओं के रहस्यभेद में महत्वपूर्ण योगदान देनेवाले ‘एडमंड हैले’ का निधन हो गया।

आजकल धूमकेतु जिसे दिखाई देता है उसी का नाम धूमकेतु को दिया जाता है। सन १९९४ में बहुत प्रसिद्ध हुआ ‘शूमेकर लेव्ही’ धूमकेतु पहले देखा (खोजा) था जीन एवं कैरोलिन शूमेकर नामक दंपत्ति और डैविड लेव्ही नामक खगोलशास्त्रज्ञ ने। कहा गया था कि यह धूमकेतु गुरु ग्रह से टकराएगा जिससे  बडा विनाश होगा। मगर गुरु से टकराने से पहले ही धूमकेतु के टुकडे हो गए थे। इस से दो वर्ष पूर्व सन १९९२ में स्विफ्ट-टट्ल धूमकेतु आया था। कहा गया है कि, यह फिर से सन २१२६ में दिखाई देगा।

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