संघ का नेटवर्क

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ – भाग ५२

देश भर के एक लाख स्वयंसेवकों के जेल में होने के बावजूद भी संघ इमर्जन्सी के दौरान प्रभावशाली रूप से काम कर रहा था। संघ के कड़े विरोधक भी इससे आश्‍चर्यचकीत हो गये थे। पुलिस का दमनतंत्र जितनी मात्रा में बढ़ रहा था, उतनी ही मात्रा में संघ का कार्य और भी तेज़ होता जा रहा था। इससे सरकार हैरान हो गयी थी। लेकिन लाख कोशिशें करने के बावजूद भी संघ को रोकना मुमक़िन नहीं है, इसका एहसास सरकार को हो गया था। समाज संघ के साथ था, इसी कारण यह संभव हो सका। उसी समय स्वयंसेवक जिस चतुराई से पुलिस को चकमा देते थे, उसका कोई जवाब नहीं था। मेरे ही घर का उदाहरण देता हूँ।

RSS - Rameshbhai Mehta- संघइमर्जन्सी के समय मेरी गिरफ़्तारी का वॉरंट निकला था। उस समय मैं शिवाजीपार्क में रहता था और मेरा जुहू का घर बनकर तैयार हो रहा था। लेकिन मैं मेरे परिवार के साथ जुहू स्थित घर में रहने के लिए गया। पुलिस को इस घर की जानकारी मिलना मुमक़िन नहीं था। इसीलिए संघ के ज्येष्ठ स्वयंसेवक इमर्जन्सी के दौरान इस घर में रह रहे थे। सुंदरसिंह भंडारीजी, सरकार्यवाह माधवराव मुळेजी यहाँ पर थे। संघ की गुप्त मिटींग्ज् इस घर में हुई थी। मोरोपंत पिंगळेजी, यादवरावजी जोशी, भाऊराव देवरसजी, दत्तोपंत ठेंगडीजी, डॉ. आबा थत्तेजी, केदारनाथ सहानीजी, बापूराव मोघेजी इनकी मिटींग्ज् में, भूमिगत रहकर इमर्जन्सी का विरोध किस तरह करना है, इसकी देशव्यापी रणनीति यहाँ पर तय होती थी। इस घर में बहुत लोग एक साथ आये हुए है, इस बात का भी किसी को पता न चले, यह एहतियात हम बरत रहे थे।

उस समय मुंबई के जुहू इलाके में आज की तरह घनी आबादी नहीं थी। इसी कारण किसी घर के बाहर चपलें देखकर पुलिस पूछताछ करेंगे, इस बात की संभावना थी। इसलिए चपलें घर में ही रखी जाती थी। इतना ही नहीं, बल्कि यह सरकार का समर्थन करनेवालों का घर है, यह जताने के लिए ‘संजय गांधी’ का चित्र रहनेवाला कॅलेंडर घर में लगाया जाता था। देश भर में इस तरह चतुराई से स्वयंसेवक पुलिस को चकमा दे रहे थे और इमर्जन्सी के विरोध में जनजागृति कर रहे थे। इसलिए स्वयंसेवकों ने बहुत तकली़फें उठायी। लेकिन जनतंत्र को बचाने के लिए यह ज़रूरी है, इसका एहसास स्वयंसेवकों को था।

इमर्जन्सी के खिलाफ़ जनता में गुस्से की लहर उठी थी। लेकिन प्रसारमाध्यमों का साथ न होते हुए, स्वयंसेवकों द्वारा भूमिगत रहकर अपने प्रभावी जनसंपर्क के द्वारा इमर्जन्सी के खिलाफ़ लिये गये कार्य के परिणाम अब जनता के असंतोष के द्वारा दुनिया के सामने आने लगे। लेकिन यह संघ को गाड़ देने के लिए नामी अवसर हाथ आया है, ऐसे कुछ लोगों को लग रहा था। साम्यवादी और समाजवादी विचारधारा के लोग निरंतर संघ से विद्वेष करते रहे हैं। इमर्जन्सी के दौरान यह विद्वेष और भी तेज़ हो गया।

साम्यवादी विचारधारा के लोगों ने सरकार से आग्रह किया कि वे सरकार संघ को ख़त्म कर दे। इसी विचारधारा के लेकिन इमर्जन्सी के खिलाफ़ रहनेवाले लोगों ने संघ से सहायता ली थी। क्योंकि उनके सामने दूसरा कोई विकल्प नहीं था। विचारधारा के मतभेदों को दूर रखकर, देश के हित के बारे में सोचकर  संघ ने इन लोगों की सहायता की थी। इस बात का उन्होंने स्मरण नहीं रखा, यह अलग ही बात हो गयी।

२० महिनों के इमर्जन्सी के मुश्किल हालातों में संघ ने कई स्तरों पर कार्य किया। संवेदनाशून्य बन चुकी सरकार को चुनौति देकर, सरकार को जनतंत्र का गला नहीं घोटने देंगे, ऐसा संदेश स्वयंसेवकों ने पूरी दुनिया को दिया। भूमिगत रहकर भी सरकार के दमनतंत्र को प्रत्युत्तर देने का धीरज और साहस हमारे पास है, यह संघ ने दिखा दिया। इतना ही नहीं, बल्कि देश के हित के लिए घर-परिवार की परवाह न करते हुए जेल जानेवालों के परिवारों की यथा संभव खयाल रखने की जिम्मेदारी भी संघ ने निभायी। गिरफ़्तार हुए स्वयंसेवकों के परिवारों ने भी इस दौरान धीरज से काम लिया और देश के लिए हसते हसते तकली़फें सही। लेकिन यह सब कुछ करते समय हमने कुछ महाना कार्य किया है, यह भाव उस समय भी स्वयंसेवकों में नहीं था और आज भी नहीं है। इसके बात के लिए संघ के संस्कार और अनुशासन जिम्मेदार है।

‘हमने इस दौरान जो कुछ किया, जो तकली़फें उठायी, वह सब देश के लिए था। उसका ढ़िंढोरा मत पीटना, उससे मिलनेवाले फायदों का लोभ मत रखना,’ ऐसा संदेश सरसंघचालक के द्वारा दिया गया था। हमने हमारा कर्तव्य किया है, इतनी ही भावना स्वयंसेवकों में थी, यह विशेष बात है। देश के लिए किये गये काम के ढोल पीटनेवाले और उसका कई गुना मोल वसूलनेवाले तो हम हमेशा ही देखते है। लेकिन इस बात के लिए संघ अपवाद है। इमर्जन्सी के विरोध में देश भर में भरात एक लाख ३०  हजार लोगों ने सत्याग्रह किया। इनमें एक लाख के आसपास स्वयंसेवक शामिल हुए थे। लेकिम इमर्जन्सी के दौरान किये गये इस कार्य का  श्रेय और लाभ संघ ने नहीं उठाये। क्योंकि यह संघ के उसूलों के खिलाफ़ था।

दर असल इमर्जन्सी और उस दौरान संघ के द्वारा किया गया कार्य, यह एक स्वतंत्र लेखमाला का विषय हो सकता है। लेकिन इमर्जन्सी के बारे में सविस्तार लिखने की आवश्यकता नहीं है। देश के इतिहास के इस कालेकलूटे अध्याय के बारे में सभी जानते है। सिे फिर से दोहराना बेमतलब है। फिर भी संघ के द्वारा इस दौरान किये गये काम की थोड़ी बहुत जानकारी देने के उदेश्य से कुछ बातें आप के सामने रखी। संघ समाज और राष्ट्र के प्रति ही समर्पित है। संघ के द्वारा क्या किया गया? संघ क्या करता है? ऐसे ताने देनेवाले इमर्जन्सी में संघ के द्वारा किये गये काम को बारीकी से देखे, उन्हें संघ का ध्येय और उसकी नीतियों के बारे में जानकारी मिलेगी और हो सकता है उन्हें संघ के सामर्थ्य का भी अनुभव होगा।

इमर्जन्सी के विरोध में खड़े हुए स्वयंसेवक समाज के विभिन्न स्तरों से आये हुए थे। इनमें किसान, मजदूर, दुकानदार, अध्यापक, छात्र, सरकारी नौकरी करनेवाले लोग, डॉक्टर, वकील और उद्योजक भी शामिल थे। इस समय गिरफ़्तारी के कारण कईयों की नौकरियाँ चली गयी। छात्रों की पढ़ाई अधूरी रह गयी। कुछ लोगों के व्यवसाय बंद हो गये। लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की। इस दौरान पुलिस द्वारा किये गये अत्याचारों की आप तो कल्पना तक नहीं कर सकते। लेकिन अँग्रेज़ों को पीछे छोड़ दे, ऐसे अत्याचार इसी दौरान कुछ स्थानों पर पुलिस के द्वारा किये गये थे। जेल में कुछ लोगों की मौत हो गयी। कुछ लोग जीवन भर के लिए अपाहिज हो गये। इनमें महिलाएँ भी शामिल थी। हमारे द्वारा ही चुनी गयी सरकार ने पुलिस दल का इस्तेमाल करके ये अत्याचार किये थे। इसलिए पुलिस पर दोष लगाना से कुछ हासिल नहीं होगा।

संघ का नेटवर्क जबरदस्त था। इसलिए एक ही उदाहरण काफ़ी होगा। इमर्जन्सी के दौरान संजय गांधी और राष्ट्रपति ‘ङ्गक्रुद्दीन अली अहमद’ की राष्ट्रपति भवन में मुलाकात हुई। संजय गांधी नाराज थे क्योंकि कि उनके द्वारा भेजे गये कागज़ों पर राष्ट्रपति हस्ताक्षर नहीं कर रहे थे। नाराजगी जताने के लिए वे राष्ट्रपति भवन पहुँचे। इस समय संजय गांधी ने क्या कहा और राष्ट्रपति से उन्हें क्या जवाब मिला, यह पूरा संभाषण कुछ ही समय में संघ तक पहुँच चुका था। उसके तफ़सील (डिटेल्स) देना गलत साबित होगा। लेकिन उम्र और प्रतिष्ठा में बहुत ही बुजुर्ग़ रहनेवाले फकरुद्दीन अली अहमद को यह एहसास हुआ की उनका सम्मान नहीं किया जा रहा है। उसका दुख उनके चेहरे पर दिखायी दे रहा था।

चाहे यह जानकारी हो या इससे भी अधिक संवेदनशील जानकारी संघ को प्राप्त हो, लेकिन संघ कभी भी उसका गलत इस्तेमाल नहीं करता। क्योंकि संघ सर्वोपरी देशहित की रक्षा करते आया है। इसलिए सरकार का विरोध करते हुए, इमर्जन्सी के खिलाफ़ छेड़े गया आंदोलन देश के खिलाफ़ न हो, इसलिए संघ हमेशा सतर्क था। सरकारे आती है और चली जाती है। देश हमेशा के लिए रहता है, यह संघ का मानना है। इसलिए इस दौरान भी संघ ने अपने विधायक कार्य को नहीं छोड़ा था। देश में अराजकता फैलाना, यह संघ का ध्येय था ही नहीं। जेल में बंद स्वयंसेवक वहीं पर शाखा का आयोजन करते थे। विभिन्न उत्सव भी मनाते थे। स्वयंसेवकों के इस धैर्य को देखकर और का यक़ीन बढ़ गया था। इस कारण संघ की आलोचना करनेवाले प्रशंसा से देखने लगे थे।

(क्रमशः)

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