डॉ. राजा रामण्णा

भारतीय परमाणु संशोधन क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण कार्य

राजस्थान सीमाक्षेत्र के सरहदी इलाके में पोखरण नामक स्थान पर किये गये देश के प्रथम एवं सफल परमाणु विस्फोट परीक्षण के कारण सदैव स्मरणीय रहनेवाले संशोधनकर्ता हैं, डॉ. राजा रामण्णा। सन १९७४ में किए गए इस यशस्वी परमाणु परीक्षण के पश्‍चात् पोखरण में भारत की भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के साथ साथ डॉ. रामण्णा और डॉ. सेठना इन दो संशोधक वीरों की तसवीरें देश-विदेश के सभी अखबारों में दिखाई दी थीं। इसके पश्‍चात् मुंबई हवाई अड्डे पर पत्रकारों को डॉ. होमी सेठना ने अपनी प्रतिक्रिया दी कि ‘पोखरण की सफलता प्राप्ति के बारे में प्रतिक्रिया डॉ. रामण्णा देंगे, क्योंकि इस संपूर्ण कार्य में एक समर्थ अणुसंशोधक होने वाले इस सहकर्मी का महत्त्वपूर्ण योगदान है।’ दुनिया की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण घटना घटित करने के पीछे कार्यरत डॉ. राजा रामण्णा के कर्तृत्व की भली-भाँति जानकारी हमें इसी के आधार पर प्राप्त होती है।

कर्नाटक राज्य के अनुसार टुमकूर नामक स्थान पर जन्मे डॉ. रामण्णा की प्राथमिक शिक्षा बंगलुरु में हुई और बी.एस.सी. की उपाधि उन्होंने उस समय के मद्रास के (आज के चेन्नई के) एक जाने-माने महाविद्यालय से प्राप्त की, वहीं, डॉक्टरेट की उपाधि उन्होंने लंडन महाविद्यालय से प्राप्त की।

१९४९ में मुंबई के ‘टाटा इन्स्टिट्युट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च’ नामक संस्था से उन्होंने अपने कार्य का आरंभ किया। १९५३ में भाभा अणुसंशोधन केंद्र में वे काम करने लगे। साथ ही वहाँ के प्रमुख पद पर उनकी नियुक्ति भी हो गई। १९७२-७८ इस अवधि के दौरान वे तुर्भे की इसी संस्था में संचालक पद पर कार्यरत थे। १९७८ में वे ‘केन्द्र सरकार के सुरक्षा विभाग के वैज्ञानिक सलाहगार’ इस महत्त्वपूर्ण पद पर काम करने लगे। भारत के अणुऊर्जा विभाग के सचिव एवं अणुऊर्जा आयोग के संशोधन एवं विकास कार्य के प्रमुख के रूप में कार्यरत थे।

अणुऊर्जा एवं विविध कार्यों के लिए उस ऊर्जा का उपयोग इस महान ध्येय को लेकर डॉ. राजा रामण्णा ने कार्य किया है। अत्यन्त सूक्ष्म होनेवाला अणु, उसका विभाजन तथा इसके आगे भी विभाजन कैसे करना है, इस विषय से संबंधित अधिकाधिक संशोधन उन्होंने किए हैं।

अणुभंजन के सिद्धांत को आगे बढ़ाते हुए, इसी विषय में आन्तरराष्ट्रीय दर्जा प्राप्त करने का संकल्प उन्होंने कर रखा था और उसे पूरा भी किया। १९७४ में शांतिमय सहजीवन एवं विकास इसके लिए भारत द्वारा किया गया अणु परीक्षण अर्थात् ‘ऑपरेशन स्माईलिंग बुद्धा’ उनके शास्त्रज्ञ-तकनीशन एवं वैज्ञानिक समूह के प्रमुख के रूप में यह जिम्मेदारी भी उन्होंने पूरी की है। अणुउर्जा का शांतिमय कार्य हेतु उपयोग कैसे करना है, इस संबंध में संयुक्त राष्ट्रसंघ के द्वारा आयोजित किए गए अनेक परिषदों में डॉ. रामण्णा का सहभाग था। १९६१ में नॉर्वे के अणु संशोधन प्रकल्प के वे अध्यक्ष थे। साथ ही १९६१ में विएन्ना के अणु संशोधन परिषद के अध्यक्ष पद पर वे विराजमान रह चुके हैं।

डॉ. रामण्णा कुछ समय तक राज्य सभा के सभासद भी रह चुके थे। सुरक्षा एवं संशोधन विकास नामक इस संघटना के महासंचालक के रूप में भी वे कार्यरत थे। भारत सरकार के पद्म पुरस्कार सहित ओमप्रकाश भसीन, पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ.बिर्ला जैसे पुरस्कारों द्वारा भी डॉ. रामण्णा को सम्मानित किया गया है। अनेक महाविद्यालयों की ओर से भी उन्हें सम्मानीय डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान कर गौरवान्वित किया गया है।

न्युक्लिअर, रिअ‍ॅक्अर फिजिक्स एवं डिझाईन इन विषयों का गहराई तक अध्ययन करनेवाले वैज्ञानिक डॉ. रामण्णा को भारतीय शास्त्रीय संगीत की भी अच्छी जानकारी थी। वे एक उत्कृष्ट पियानोवादक भी थे। इन सभी शौक एवं रुचि सहित उन्हें इग्लंड के रॉयल स्कूल ऑफ म्युझिक संस्था की ओर से भी प्रमाणपत्र प्राप्त हुआ था, यह भी एक विशेष बात है। ‘सादा जीवन उच्च विचार’ सहित मर्यादित ज़रूरतों को रखना यह उनकी तत्त्वप्रणालि थी।

किसी भी राष्ट्र को एक आदर्श महासत्ता बनाकर यदि सबसे आगे रहना है तो किसान, जवान, तकनीकी ज्ञान इन सबके साथ ऐसे संशोधनकर्ता द्वारा विकसित किया गया विज्ञान यह भी अत्यन्त आवश्यक है।

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