ग्लेन सीबोर्ग

नेपच्युनियम का र्‍हास होकर अनुक्रमांक ९४ वाला एक नया मूलद्रव्य का निर्माण हुआ है, इस बात का पता चला। प्रचंड विध्वंसक शक्तिवाले इस नये मूलद्रव्य का नामकरण ‘प्लुटोनियम’ किया गया।

ग्लेन सी बोर्ग

प्लुटोनियम यह नया मूलद्रव्य युरेनियम-२३४ की तुलना में तीन गुना विच्छेदनशील है। अति विध्वंसक अणुबम तैयार करने के लिए प्लुटोनियम -२३९ मूलद्रव्य का अधिकांश (सर्रास) उपयोग करने की शुरुआत हो गई है। नागासाकी शहर पर फ़ेका गया अणुबम यह प्लुटोनियम से बनाया गया था। सिद्धांत की दृष्टि से देखा जाये तो सिर्फ़ ३०० ग्राम प्लुटोनियम में से मुक्त होनेवाली ऊर्जा २०,००० टन ‘टीएनटी’ रासायनिक विस्फ़ोट के बराबर होती है। अणुबम का प्राण प्ल्युटोनियम में छिपा है, यही सच है।

अतिशय घातक होनेवाले प्लुटोनियम मूलद्रव्य के कुछ कण यदि साँस के जरिए शरीर में चले जाएँ तो मृत्यु का कारण बन जाते हैं। ये मूलद्रव्य आत्यंतिक किरणोत्सर्गी होते हैं और हमेशा तप्त अवस्था में रहते हैं। २,४०० वर्षों के बाद मूल प्लुटोनियम में से आधा प्लुटोनियम शेष रह जाता है।

प्लुटोनियम की कुल छ: अवस्थाएँ हैं। एक अवस्था से दूसरी अवस्था में जाते समय उसकी घनता कम अधिक होती रहती है। चौथी अवस्था के प्लुटोनियम का नाम ‘डेल्टा’ है। इसी अवस्था के प्लुटोनियम का उपयोग अणुबम बनाने के लिए किया जाता है।

अणुबम के अलावा और दीर्घकालीन प्रवास करनेवाले अवकाशयान के लिए आवश्यक ऊर्जा का निर्माण करने के लिए प्लुटोनियम का उपयोग किया जाता है।

अणुभट्टी में जलाये गए युरेनियम से प्लुटोनियम तैयार होता है।

नैसर्गिक रूप में मिलनेवाले युरेनियम मूलद्रव्य पर न्युट्रॉन कणों का आघात करने पर युरेनियम के दूसरी ओर के, निसर्ग में प्राप्त होनेवाले जड़ मूलद्रव्य का निर्माण होना चाहिए – ऐसा सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एंटिको गर्मी का कहना है। हान और स्ट्रासमन इन जर्मन संशोधकों को इस मत की जाँच करके देखना था किन्तु वे सिर्फ़ युरेनियम का विच्छेद करने तक ही यशस्वी हुए।

सन् १९४० साल में कॅलिफ़ोर्निया विद्यापीठ में ऑरोहान ने किया हुआ प्रयोग फ़िर से करके देखा। किन्तु यहाँ पर उन्हें स़िर्फ़ इतना ही पता चला कि न्यूट्रॉन कण आत्मसात करके युरेनियम के अणुकेंद्र हमेशा दुभंग नहीं होते, वैसे ही कई बार युरेनियम का रूपांतर होकर नये मूलद्रव्य का निर्माण होता है। इसी तरह के प्रयोग वर्कले विश्‍वविद्यालय में भी चल रहे थे। वहाँ के संशोधकों ने युरेनियम के न्यूट्रॉन कण से बने निर्माण होनेवाले मूलद्रव्य को नेपच्युनियम नाम दिया। इसके बाद संशोधक ग्लेन सी बोर्ग ने नेपच्युनियम स्थिर न होने का संदेह व्यक्त किया और इसी नेपच्युनियम का र्‍हास होकर अणुक्रमांक ९४ वाला एक नया मूलद्रव्य निर्माण होता है यह साबित किया।

सन् १९४० वर्ष में युरेनियम के परे दूसरे मूलद्रव्य की खोज की। किन्तु इस मूलद्रव्य का अधिकृत नाम देने के लिए दो वर्ष लग गए। इसके पहले सन् १७८९ वर्ष में ९२ क्रमांक की खोज करनेवाले जर्मन शास्त्रज्ञ मार्टिन क्लॅप्रॉथ ने इस मूलद्रव्य को युरेनियम यह नाम दिया था। इसके पीछे का कारण यह है कि ‘१७८१ वर्ष में हर्शल ने युरॅनस इस ग्रह की खोज की थी। उस युरॅनस से युरेनियम यह नाम आया था। उसी प्रकार से सन् १९३० वर्ष में प्लुटो नाम के नौंवे ग्रह की खोज की गई थी, तब यही प्रेरणा लेकर सीबोर्ग ने स्वयं संशोधित करके खोज किए गए मूलद्रव्य के लिए प्लुटोनिअम इस नाम का चुनाव किया।

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