लुई पाश्‍चर – रैबीज टीके का जनक

जीव वैज्ञानिकों ने टीका नामक अद्भुत रसायन का ज्ञान प्राप्त करके बीमारियों का जीवजंतुओं से लडने का उपाय ढूंढ निकाला| इस खोज की वजह से लोगों को खतरनाक बीमारियों से छुटकारा दिलाने का राजमार्ग मिल गया| इस खोज के जनक लुई पाश्‍चर को हमेशा सम्मान की नजर से देखा जाता है|लुई पाश्‍चर - रैबीज टीके का जनक

हमारे घरों में रोज आनेवाली दूध की थैली पर ‘पाश्‍चराईज्ड’ अर्थात ‘पाश्‍चराईज’ किया हुआ छपा होता है| यह पाश्‍चरीकरण की प्रक्रिया लुई पाश्‍चर की देन है| उनके नाम से इस प्रक्रिया को पाश्‍चराईजेशन या पाश्‍चरीकरण इन नामों से जाना जाने लगा| इस प्रक्रिया की वजह से सच्चे मानों में पाश्‍चर, इस महान ङ्ग्रेंच वैज्ञानिक का नाम अजरामर हो गया|

सन १८२२ में ङ्ग्रान्स के डोल में लुई पाश्‍चर का जन्म हुआ| लुई के पिताजी चमडे का व्यवसाय करते थे| साधारण से परिवार में जन्मे लुई का नाम अलेक्जेंडर फ्लेमिंग, एडवर्ड जेनर, रॉबर्ट कोच जैसे महान वैज्ञानिकों के साथ लिया जाता है|

लुई पाश्‍चर ने पैरिस में रसायनशास्त्र की शिक्षा पाई| सन १८४३ से पाश्‍चर रसायनशास्त्र पर संशोधन करने लगे| सन १८५४ अर्थात ३२ वर्ष की आयु से वे युनिवर्सिटी ऑङ्ग लिली इस विद्यापीठ के डीन बने| वेे संयुक्त या मूलद्रव्यों की रचनाओं के अध्ययन पर ध्यान देने लगे| जीवरसायनशास्त्र के संशोधन में उन्होंने बुनियादी सिद्धांत रखा| यह पुरानी सोच थी कि सूक्ष्म जीवों का स्वयंजनन होता है, वे अपनेआप निर्माण होते हैं| पाश्‍चर के संशोधन ने इस सोच को उखाड ङ्गैंका| जंतु या सूक्ष्म जीव सडनेवाले वनस्पति या प्राणियों में अपनेआप निर्माण होते हैं इस सोच को पाश्‍चर ने अपने प्रयोग द्वारा उखाड दिया|

कुछ अरसे बाद पाश्‍चर ने अपना ध्यान अन्य क्षेत्र की ओर मोडा| फ्रान्स में सन १८६४ में शराब और बिअर उद्योग को एक आपत्ति ने परेशान कर रखा था|

मद्यनिर्माण के प्रमुख व्यवसायवाले इस देश में शराब बोतलों में भरने के बाद खराब हो जाती थी| इसकी वजह से इस व्यवसाय को बडा धोखा था| लुई पाश्‍चर ने इस पर उपाय ढूंढ निकाला| शराब से भरी हुई बोतलों को ५५ डिग्री सेल्सिअस तापमान पर गरम करने से शराब में से प्रदूषक निकल जाते हैं यह साबित कर दिखाया और शराब दीर्घ समय तक टिकने लगी|

Louis_Pasteur_experimentदूध खराब होने से बचाने के लिए उसे ५५ डिग्री सेल्सिअस पर गरम करके ठंडा करने से दूध खराब नहीं होता, यह बात पाश्‍चर ने ही विश्‍व को समझाई| बाद में इस प्रक्रिया को पाश्‍चराईजेशन कहा जाने लगा|

रेशम निर्माण करनेवाले और रेशम का व्यवसाय करनेवाले उत्पादक पाश्‍चर के पास अपनी समस्या ले आए| रेशम के कीडों को अज्ञात बीमारी ने घेर लिया था| इसकी वजह से रेशम निर्माण करनेवाले कीडे मरने लगे और रेशम के व्यसाय पर असर पडने लगा| पाश्‍चर ने इस संशोधन पर अपना ध्यान केंद्रित किया| तह तक संशोधन करने पर पाश्‍चर ने दो सूक्ष्मजीव ढूंढ निकाले| अंत में पाश्‍चर इस नतीजे पर पहुंचे कि, उन सूक्ष्मजंतुओं की संक्रामकता की वजह से रेशम के कीडों को पेंब्रिन नामक बीमारी लगती है| इस संशोधन की वजह से रशम उद्योग का नुकसान होने से बच गया|

अपने संशोधन का लाभ समस्त मानवजाति के लिए पाश्‍चर ने पहली बार जंतुसंशोधन के प्रयोग जानवरों पर करना शुरु किया| उस में से जंतुसंक्रामकता पर टीका ढूंढ निकालने में उन्हें कामयाबी हासिल हुई| सन १८८१ में पाश्‍चर ने टीका लगाने का प्रयोग सार्वजनिक तौर पर किया| इस प्रयोग की वजह से पाश्‍चर की लोकप्रियता बडे पैमाने पर बढ गई|

पागल कुत्ते के काटने से होनेवाली बीमारी पर पाश्‍चर ने टीका ढूंढ निकाला| रैबीज के मरीजों को पहले बहुत दर्द सहना पडता था और उसी से वे मर भी जाते थे| मगर पाश्‍चर के शोध की वजह से इस रोग पर उपाय होने लगा| इसकी वजह से पाश्‍चर की कीर्ति सारे विश्‍व में ङ्गैल गई| पाश्‍चर की मनषा थी कि वे संक्रामक बीमारियों पर संशोधन करनेवाली संस्था खोलें| सन १८८८ में उनकी यह मनषा पूरी हुई|

असीम कामयाबी पाए हुए इस वैज्ञानिक का निजी जीवन सुखी नहीं था| १८५९ से १८६५ के दौरान पाश्‍चर की तीन बेटियों में से दो ब्रेन ट्यूमर और टायफाईड की बीमारी से चल बसीं| सन १८६५ में कॉलरा की महामारी की वजह से कई लोग मर गए| पाश्‍चर ने कॉलरा की जंतुओं पर संशोधन किया मगर उन्हें सफलता नहीं मिली| सन १८६८ में पाश्‍चर को लकवा मार गया और उनके शरीर का बांया भाग नाकाम हो गया, मगर पाश्‍चर ने हार नहीं मानी| पत्नी की सहायता से उन्होंने अपने संशोधन के कार्य जारी रखे| सन १८९५ में इस विश्‍वविख्यात वैज्ञानिक ने आखरी सांस ली|

मानव की अनंत पीढियों के उपकार हेतु लुई पाश्‍चर का नाम इतिहास में अमर हो गया| अखिल मानव समाज के लिए अथक मेहनत करनेवालों को भारतीय तत्वज्ञान में ऋषि माना जाता है| इस बात में कतई संदेह नहीं है कि, पाश्‍चर इस उपाधि के पात्र हैं|

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