पाकिस्तान के पास मुद्राकोश की शर्तें मानने के अलावा और कोई चारा नहीं – प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ की हताश प्रतिक्रिया

इस्लामाबाद – आन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोश की शर्तें मानने के अलावा हमारे देश के पास और कोई चारा नहीं बचा है, ऐसी स्वीकृति पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने दी। मुद्राकोश की शर्तें मानना, इसका मतलब, पाकिस्तान की सरकार को अपने राजस्व में वृद्धि करने के लिए टैक्सेस् बढ़ाने पड़ेंगे, बिजली, ईंधन की दरें अधिक ही बढ़ानी पड़ेंगी; साथ ही, कर्मचारियों की तनख़्वाह में भी कटौती करनी पड़ सकती है। इसीके साथ, जनता को दी हुईं सारी सहूलियतें भी हटानी पड़ेंगी। प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ यही बात हताश होकर पाकिस्तान की जनता के सामने रख रहे हैं।

मुद्राकोश की शर्तेंपाकिस्तान के फ़ोरेन रिज़र्व्ज़् में महज़ छह अरब डॉलर्स इतनी ही रक़म शेष है। इनमें से तीन अरब डॉलर्स सऊदी अरब से, इस्तेमाल न करने की शर्त पर पाकिस्तान को प्राप्त हुए थे। इस कारण, वास्तव में पाकिस्तान की तिजोरी में होनेवाली रक़म छह अरब डॉलर्स से बहुत ही कम होने का दावा किया जाता है। ऐसे में आन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोश से 1.1 अरब डॉलर्स की कर्जसहायता प्राप्त करना पाकिस्तान के लिए बहुत ही आवश्यक बना है। उससे कम से कम कुछ हफ़्तों की मोहलत तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को मिल सकती है। लेकिन मुद्राकोश से यह कर्जसहायता प्राप्त करना पाकिस्तान के लिए आसान नही रहा है।

इससे पहले कर्ज़ लेते समय पाकिस्तान ने मुद्राकोश को दिये आश्वासनों का पालन नहीं किया है। राजस्व बढ़ाने के लिए आर्थिक अनुशासन अपनाकर, टैक्सेस् में वृद्धि और ईंधन तथा बिजली की दरों में बढ़ोतरी करने की दिशा में पाकिस्तान की सरकार ने कदम नहीं उठाये हैं। इस कारण मुद्राकोश ने यह चेतावनी दी थी कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में किसी भी क़िस्म का अनुशासन बाक़ी नही रहा होकर, इस देश पर इसके आगे भरोसा नहीं किया जा सकता। वहीं, दूसरी ओर पाकिस्तान ने भी बड़ी अभिमानी दिखाने का दुस्साहस किया था कि मुद्राकोश की शर्तें मानना माकिस्तान के लिए मुमक़िन नहीं हैं। लेकिन अब यह दुस्सहस पाकिस्तान पर ही बूमरैंग हुआ है। इसलिए अब नाक मुट्ठी में पकड़कर फिर एक बार पाकिस्तान को मुद्राकोश की शर्तें माननी पड़ रही हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने यही बात जनता के सामने रखी दिख रही है।

पाकिस्तान में पहले ही महँगाई ने कहर ढ़ाया होकर, जनता इस महँगाई से बेहाल बन चुकी है। एक किलो गेहूँ के आटे के लिए पाकिस्तान में डेढ़सौ रुपये देने पड़ते हैं, ऐसी शिक़ायत जनता कर रही है। उसी में, पाकिस्तान में रोज़गारनिर्माण की प्रक्रिया बहुत ही धीमी पड़ चुकी है। इससे बहुत बड़ा आर्थिक संकट इस देश पर टूट पड़ा होकर, विदेशस्थित अपने दूतावासों में काम करनेवाले राजनीतिक अधिकारी और कर्मचारितों की तनख़्वाह भी पाकिस्तान की सरकार नहीं दे सकी है। इस कारण, अमरीका स्थित पाकिस्तानी दूतावास की जायदाद बेचना आरंभ किया है।

देश की ऐसी स्थिति होने तक पाकिस्तान की सरकार ने तथा उससे पहले सत्ता में होनेवाली सरकार ने भी आर्थिक अनुशासन का पालन करने की तैयारी नहीं दिखाई थी। उसके परिणाम आज पाकिस्तान को भुगतने पड़ रहे हैं। आर्थिक अनुशासन का पालन कर कठोर फ़ैसलें करना, यह पाकिस्तान में राजकीय खुदकुशी करने के बराबर है। इसी कारण पाकिस्तान की सरकार और नेता इसके लिए तैयार नहीं हो रहे थे, ऐसी आलोचना इस देश के बुद्धिमान लोग तथा पत्रकार कर रहे हैं।

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