‘मॉन्टगोल्फ़ियर ब्रदर्स’

एक मशहूर कंपनी के अध्यक्ष ने २६ नवम्बर २००५ के दिन गरम हवा के गुब्बारे से ६० हजार फीट की ऊँचार्ई साधते हुए जागतिक रिकार्ड दर्ज किया। मुंबई रेसकोर्स से उडान भरकर उन्होंने यह कार्य कर दिखाया। उनकी इस उडान से जागतिक रिकार्ड दर्ज होने तक दुनिया भर के उत्साही नागरिकों की धड़कनें तो मानों जैसे थम गई थीं। गर्म हवा के गुब्बारे से उडान भरने की उनकी इच्छा में दुनिया से कुछ अलग करने का जोश दिखाई दिया।

उनके इस साहस से सर्वसामान्य भारतीयों को गर्म हवा के गुब्बारे की जानकारी हासिल हुई। यह रिकार्ड हासिल करके वे लोगों के कौतुहल के लिए पात्र बन गए। यदि उडान भरने वाले को इतनी सराहना नसीब होती है तो इस गर्म हवा के गुब्बारे की खोज करनेवाले की बुद्धिमत्ता को भला क्या कहा जा सकता है! लेकिन इस गुब्बारे की खोज एक शास्रज्ञ द्वारा न की जाकर दो शास्त्रज्ञों के द्वारा इस गुब्बारे की खोज की गई है। हवा में उडान भरते हुए मीलों-मील की दूरी तक सहज ही दिखायी देनेवाले इस गरम हवा के गुब्बारे का उपयोग कभी विज्ञापन हेतु, तो कभी सूचना प्रसारण हेतु, तो कभी विशेष चिह्न के रूप में किया जाता है।

रंग-बिरंगी गुब्बारों का यह आकर्षण छोटे बच्चों को बहुत जल्द ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। परन्तु इस में भी संशोधन की दृष्टि से देखना यह बात अन्य लोगों से भिन्न और इसी लिए उल्लेखनीय भी साबित होती है। कागज की निर्मिति का व्यापार करनेवाले एक जानेमाने परिवार में जन्म लेने वाले जोसेफ़ एवं एटी ने इसी भाव के साथ गरम हवा के गुब्बारे की खोज की। जोसेफ़ का जन्म १८७० में हुआ इस के पाँच वर्ष बाद एटी का जन्म हुआ। कुल सोलह भाई-बहनों में से इन दोनों ने ही एक विशेष मार्ग अपनाने का हौसला बुलंद किया। जोसेफ़ एवं एटी इन दोनों की ही अपने खानदानी व्यवसाय में कोई दिलचस्पी नहीं थी।

आकाश की ओर देखते समय बादलों के समान उड़ने की कल्पना को केवल बचपन तक ही सीमित न रखते हुए इसी उत्सुकता से बड़े हो जाने पर अनेक प्रयोग किए। जोसेफ़ ने अपने पिता के पेपर कारखाने से एक बड़ा सा कागज लिया और उससे एक पॉकिट तैयार किया। इस पॉकिट में भाप को भर लिया और हवा में छोड़ दिया। लेकिन उनका यह प्रयोग सिद्ध नहीं हो सका। उसी समय एटी ने शास्त्रीय पुस्तक का अध्ययन करके उस पर थोड़ी गहराई से विचार किया। इस अध्ययन से ही हवा में उड़नेवाली थैली तैयार करने में उन्हें सफ़लता मिली। इस में सल्फ्युरिक अ‍ॅसिड एवं आयर्न फ़िलिंग्ज का उपयोग करके तैयार किया गया गैस भरा गया। परन्तु पुन: असफलता ही उनके हाथ आयी।

इस असफलता के पश्‍चात् और भी अधिक गंभीरतापूर्वक कोशिश करते हुए जोसेफ़ ने एक दिन बंद कमरे में प्रयोग किया। एक रेशमी कपड़े का गुब्बारा बनाकर उसमें उन्होंने गर्म हवा भर दी और इस गुब्बारे को कमरे की छत तक जाने दिया। इसके पश्‍चात् जोसेफ़ ने अपने भाई को बुलाकर और भी रेशमी कपड़ा ले आने को कहा। इस प्रयोग के रूप में दुनिया भर में एक अनोखा प्रयोग किया जा रहा था। इसी दरमियान इस प्रयोग के प्रस्तुतीकरण में भी उन दोनों ने परिवर्तन किये। गिले स्ट्रॉ तथा उनके टुकड़ों को जलाकर गैस तैयार की गई। इस गैस का उपयोग करके एक बहुत बड़ी कागज की थैली तैयार करके उसे सौ फीट की ऊँचाई पर छोड़ा गया।

उनका यह प्रयोग सफल हो गया। इसके पश्‍चात् उन्होंने पहली बार ही लोगों के समक्ष गाँव में यह प्रयोग किया। इसके लिए चुने गए मैदान में इस अनोखे दृश्य को देखने के लिए लोगों ने का़फ़ी भीड़ मचा रखी थी। इस बार एक बड़ी सी लकड़ी को चौकोन रूप में रचकर उसमें चालीस फीट लंबाई की पॉकिट तैयारी की गई थी। रेशमी कपडा एवं कागज़ चिपकाकर तैयार किए गये इस गुब्बारे के समान पॉकिट को उस नीचे रखें गये लकड़ी के चौकोन को बाँधकर रखने के लिए लगभग २,००० बटनों का उपयोग किया गया था।

सभी की नजरें उस गुब्बारे की ओर लगी हुई थी कि यह कैसे उड़ता है। ४ जून १७८३ के दिन इन दोनों भाईयों द्वारा किए गये प्रयोग ने आखिरकार गर्म हवा वाले गुब्बारे ने हवा में उड़ने में सफलता प्राप्त कर ही ली। इस बार कुछ ही मिनिटों में यह गुब्बारा दो हजार फीट की ऊँचाई तक उड़ता हुआ जा पहुँचा। इस बार उस गुब्बारे में गर्म हवा भरने के लिए जलाई गई आग का गैस जैसे-जैसे कम होता गया, वैसे-वैसे ही यह गुब्बारा नीचे की ओर उतरता चला आया। उड़ाने के स्थान से लगभग दो किलो मीटर की दूरी पर यह गुब्बारा नीचे आ पहुँचा। इसके पश्‍चात् कुछ ही कालावधि के अन्तर्गत अन्य मानवों को भी इस गुब्बारे की सहायता से उडान भरने के प्रयोग को सफ़लता प्राप्त हुई। इसके पश्‍चात् अनेक लोगों ने इसी प्रकार के प्रयोग अपने-अपने तरीके से किए परन्तु इस संशोधन का श्रेय मॉन्टगोल्फ़ियर बंधुओं को ही जाता है।

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