लाझारो स्पॅलाँझॅनी (१७२९-१७९९)

गाँव के बाहरवाले वृक्ष के नीचे भीड़ इकट्ठा हुई थी। पंद्रह-सोलह वर्ष के लाझारो स्पॅलाँझॅनी उस भीड़ के बीच खड़े थे। इतने में मेयर आये और उन्होंने कहा कि जिन लोगों को डर लग रहा है, वे लोग यहाँ से वापस लौट जाये। महीने पूर्व एक हृष्ट-पुष्ट ऐसे मरे हुए बैल को गड्ढे में खड़ा करके उसे मिट्टी में गाड़ दिया गया था; केवल उसकी सींगे ही दिखाई दे रही थी। उस बैल की सींगों को काटकर बहर से मिट्टी हटाने पर हजारों कीटक उसमें से बाहर आए और कितने ही समय तक आते ही रहे। लाझारो वापस घर लौटनेवाले थे परन्तु उनके मस्तिष्क में हजारों विचारों की हलचल मची हुई थी कि आखिर ये कीटक आए कहाँ से? लोग रास्ते में बातें कर रहे थे। उस बैल की कब्र से कितने सारे कीड़े तैयार हो गए! अनेक लोगों से लाझारो ने यह प्रश्‍न पूछकर उत्तर प्राप्त करने की कोशिश की। परन्तु उन्हें संतुष्टि नहीं मिली। व्हॅलिस्निएरी नामक एक शास्त्र के गहरे अभ्यासक उस गाँव में थे। उन्होंने लाझारो को ल्युवेनहॉक का संशोधन अध्ययन करने को कहा। लाझारों ने कहा- ल्युवेनहॉक के निधन के छह वर्षों पश्‍चात् मेरा जन्म हुआ और उसे ये सूक्ष्म जन्तु कहाँ से कैसे आते हैं इस बात का पता न चला पाया।

लाझारो घर गए परन्तु उनकी आँखों के सामने कीड़े जा ही नहीं रहे थे। उन्हें यही लग रहा था कि अचानक ये कीड़े कैसे आ गए? अपने-आप! क्या इनके माता-पिता नहीं होंगे? यहीं से कीटकों की उत्पत्ति एवं सूक्ष्मजीव-जंतुओं पर उनका संशोधन कार्य शुरु हो गया। एक दिन रात्रि के समय रेडी नामक संशोधक की एक पुस्तक लाझारो के हाथ लग गई। मोमबत्ती के प्रकाश में रातभर पुन: पुन: वे पढ़ते रहे। रेडी द्वारा किए गए प्रयोग पर उन्होंने विचार किया। फिर लाझोर का विचारचक्र घुमने लगा। ‘अन्य कीटकों का जन्म भी इसी प्रकार से होता होगा। छोटे कीटकों के माँ-बाप तो होंगे ही और ल्युवेनहॉक की नयी सृष्टि का निर्माण इसी प्रकार से होता होगा, मुझे भी रेडी के समान प्रयोग करने चाहिए।’ और इसी तरह लाझोर का प्रयोग कार्य शुरु हो गया।

इटलीके स्कँडिआनो नामक स्थान पर जन्म लेनेवाले लाझोर स्पॅलाँझॅनी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा पूर्ण करके वे कानून की शिक्षा की ओर मुड़ गए, उसे छोड़कर वे पुन: विज्ञानशाखा की ओर मुड़कर लॉजिक, ग्रीक भाषा, दर्शनशास्त्र एवं अध्यात्मशास्त्र इनमें विशेष प्राविण्य प्राप्त किया। अध्यापक की नौकरी उन्हें मिल चुकी थी, वे धर्मगुरु बन गए परन्तु नैसर्गिक चीज़ों का निरीक्षण एवं प्रयोग इनमें वे मग्न रहते थे।

लाझोर ने अपनी स्वयं की स्वतंत्र प्रयोगशाला की निर्मिती की। काँच का पात्र, छोटे-बड़े लोटे वे ले आये, सूक्ष्मदर्शक यंत्र लाया। लाझारो दिन-रात अकेले ही काम करने लगे। कभी-कभी ये बरतन टूट जाने से उन्हें जखम हो जाती थी परन्तु उनका प्रयोग चलता ही रहा। उस समय कहीं न कहीं से समाचार मिलता ही रहता था। लाझारो अस्वस्थ हो जाते थे। परन्तु ऐसे शोध से उन्हें संतुष्टि नहीं मिलती थी।

लाझारो ने चार लोटे लिए (flask) लोटे में भरनेवाले द्रव्य के रुप में एक रस्सा (broth) लिया।

पहला लोटा खुला ही रखा। दूसरे को तुरंत ही पैक बंद किया। तीसरे लोटे के रस्से को उबालकर खुला ही रखा, चौथे लोटे के रस्से को उबालकर उसे पैक बंद कर दिया और केवल चौथे लोटे में होनेवाले द्रव्य में सूक्ष्मजन्तु दिखाई ही नहीं दिए। इस प्रकार के प्रयोग पुन: पुन: करके उन्होंने भली-भाँति अपनी शंका का समाधान कर लिया। फिर लाझोर ने अपना प्रबंध तैयार किया। जंतु अपने-आप ही तैयार होते हैं यह विधान गलत साबित करने के साथ-साथ यह भी सिद्ध किया कि, हर एक जीव-जंतु का जन्म शास्त्रीय नियमानुसार होता है। जीवशास्त्रज्ञ माने जानेवाले फादर स्पॅलाँझॅनी ने यह साबित कर दिखाया कि जीवजंतुओं को उबालनेवाली क्रिया से मारा जा सकता है। प्राणियों के प्रजोत्पादन संबंधित कुछ संशोधन भी किए तथा एकपेशीय जीवों के उत्पत्ति एवं वृद्धि के प्रति भी उन्होंने थोड़े-बहुत संशोधन किए।

१७९९ में ब्लॅडर कैन्सर के कारण स्पॅलाँझॅनी का देहांत हो गया। इटली के स्कॅडियानो नामक स्थान पर मेंढक का निरीक्षण करनेवाले स्पॅलाँझॅनी का पुतला रुप में स्मारक बनाया गया है।

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