भारत की चीन संबंधित नीति में बदलाव की आवश्‍यकता – पूर्व राजनीतिक अधिकारी एवं विश्‍लेषकों की सलाह

नई दिल्ली – इसके आगे भारत के साथ हमें सौहार्दता की उम्मीद ना होने की बात चीन की हरकतों से स्पष्ट हुई है। इसी कारण भारत ने चीन संबंधित नीति में बदलाव करने की आवश्‍यकता निर्माण हुई है, ऐसा कहकर पूर्व राजनीतिक अधिकारी एवं विश्‍लेषकों ने इस नीति की कल्पना स्पष्ट करनेवाली रपट जारी की है। ‘स्ट्रैटेजिक पेशन्स ऐण्ड फ्लेक्सिबल पॉलिसीज’ नामक यह रपट प्रधानमंत्री एवं केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्यों को प्रदान की गई है, ऐसा कहा जा रहा है। भारतीय नागरिक चीन संबंधित नीति पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं, यह बात इस रपट से सामने आ रही है।

चीन संबंधित नीति

बीते वर्ष लद्दाख की गलवान घाटी में हुए संघर्ष के बाद भारत और चीन के संबंध पहले जैसे नहीं रहे। गलवान में हमला करके चीन ने हमें भारत के साथ शांति और सौहार्दता के साथ संतुलित संबंधों की उम्मीद ना होने की बात दिखाई है। ऐसी स्थिति में भारत को अपनी चीन संबंधित नीति का पुनर्विचार करना आवश्‍यक है, ऐसा कहकर पूर्व राजनीतिक अधिकारी और विश्‍लेषकों ने यह रपट जारी की। इसमें चीन में नियुक्त भारत के पूर्व राजदूत गौतम बंबावले, पूर्व केंद्रीय वित्त सचिव विजय केलकर, ‘सीएसआयआर’ के पूर्व प्रमुख रघुनाथ माशेलकर, अर्थशास्त्री अजित रानडे और ‘पुणे इंटरनैशनल सेंटर’ के अजय शहा का समावेश है।

चीन का मुकाबला करते समय भारत ने संकुचित राष्ट्रवाद का प्रायोजित करनेवाला नज़रिया रखना उचित नहीं होगा। बल्कि इसके लिए भारत को कई मोर्चों पर एक ही समय पर कोशिश करनी होगी। इसके लिए भारत को समान मूल्य और हितसंबंधों पर भरोसा रखनेवाले करीबन २० देशों के साथ गठबंधन करना होगा। इसमें विश्‍व के प्रमुख जनतांत्रिक देशों का समावेश है। साथ ही भारतीय उप-महाद्विप के देश और चीन से जुड़ी सीमा के देशों से भी भारत को अधिक सहयोग स्थापित करने की आवश्‍यकता है। इनमें रशिया का भी समावेश रहे, ऐसा सुझाव यह रपट दे रही है।

इसके साथ ही चीन के अड़ियलपन को प्रत्युत्तर देने के लिए भारत ने सजगता से नीति चलाना आवश्‍यक होने की बात इस रपट में स्पष्ट की गई है। चीन की सरकार द्वारा नियंत्रित हो रही कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने की आवश्‍यकता है। साथ ही चीन की तकनीक पर निर्भर वस्तूओं पर भी प्रतिबंध लगाना सुरक्षा के नज़रिये से अनिवार्य होने की बात पर इस रपट ने ध्यान आकर्षित किया है। साथ ही भारतीय नागरिकों पर चीन की जासूसी रोकने के लिए खास कोशिश की ज़रूरत है, ऐसा निष्कर्ष भी इस रपट ने दर्ज़ किया है।

कुछ मोर्चों पर भारत अब भी चीन से पिछड़ा हुआ है। यह बात स्वीकारनी ही होगी, ऐसा कहकर इस रपट में ऐसी बातों को बड़ी स्पष्टता से रखा गया है। इसके अलावा कुछ मोर्चों पर भारत चीन से भी आगे है, यह बात भी ध्यान में रखने की आवश्‍यकता होने की बात इस रपट में स्पष्ट की गई हैं। भारत की जनतांत्रिक व्यवस्था, स्पर्धा का माहौल अगले दिनों में निर्यात के लिए अधिक सहायक साबित हो सकते हैं। हज़ारों बहुराष्ट्रीय कंपनियां चीन में अपने निवेश पर पुनर्विचार कर रही हैं और ऐसे में भारत को अपने मज़बूत मुद्दों पर अधिक ध्यान देना होगा, इस ओर भी इस रपट में ध्यान आकर्षित किया गया है।

कर रचना में सुधार, विदेशी निवेश को रोकनेवाले अड़ंगे दूर करने जैसे मुद्दों का हल निकालने के लिए भारत ने तुरंत कदम उठाने होंगे, ऐसी सिफारिश इस रपट के माध्यम से की गई है। इसी बीच इस रपट की वजह से भारतीय विशेलषक देश के सामने खड़ी हुई चीन की चुनौती का मुक्त तौर पर चर्चा करने लगे हैं और इस मुद्दे पर सरकार को खुली सलाह देने की बात सामने आ रही है। पहले के दिनों में चीन को परेशान करनेवाली नीति पर बातचीत ना करने की कोशिश भारत करता था। लेकिन, अब स्थिति में स्पष्ट बदलाव होने की बात दिखाई दे रही है। गलवान में हुए संघर्ष के बाद अधिकृत स्तर पर चीन के विरोध में भूमिका अपनाने से भारत हिचकिचाएगा नहीं, इस बात का अहसास चीन को लगातार कराया जा रहा है। इसके साथ ही चीन संबंधित नीति पर पुनर्विचार किया जा रहा है, यह संदेश भी भारत से चीन को दिया जा रहा है।

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