भारत-श्रीलंका की कंपनियों ने ईंधन सुरक्षा से संबंधित अहम समझौता किया

नई दिल्ली/कोलंबो – दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौर में अंग्रेज़ों द्वारा श्रीलंका में निर्माण किए गए ‘ऑईल टैंक फार्म’ के आधुनिकीकरण के समझौते पर भारत और श्रीलंका की कंपनियों ने हस्ताक्षर किए हैं। इस सहयोग की वजह से भारत और श्रीलंका की ईंधन सुरक्षा तय होगी, यह विश्‍वास भारत के विदेशमंत्री एस.जयशंकर ने व्यक्त किया। इसके साथ ही आर्थिक संकट में फंसे श्रीलंका को भारत हर तरह की सहायता प्रदान करेगा, यह वादा विदेशमंत्री जयशंकर ने किया है।

ईंधन सुरक्षापिछले कुछ महीनों से भारत और श्रीलंका के बीच ‘त्रिंको आईल टैंक फार्म’ को लेकर सहयोग के लिए चर्चा हो रही थी। दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौर में ईंधन की किल्लत निर्माण ना हो इसके लिए अंग्रेज़ों ने भूतपूर्व सिलॉन और वर्तमान में श्रीलंका में तकरीबन ९९ ईंधन टैंक्स का निर्माण किया था। ‘त्रिंकोमाली’ में निर्माण किए गए इन टैंक्स में कुल ८० लाख बैरल्स ईंधन भंड़ारण की क्षमता है। मौजूदा समय में ईंधन सुरक्षा के लिए इसका इस्तेमाल करने का रणनीतिक निर्णय भारत और श्रीलंका ने किया है। इसके लिए इनईंधन टैंक्स का विकास करने पर दोनों देशों की सहमति हुई है।

वर्ष २००३ में इस सहयोग की नींव रखी गई थी। त्रिंकोमाली के ९९ में से १४ टैंक्स का इस्तेमाल ‘इंडियन ऑईल कॉर्पोरेशन’ (आईओसी) की उपकंपनी ‘एलआईओसी’ कर रही है। इससे संबंधित समझौते का नूतनीकरण किया गया है और अब शेष ६१ टैंक्स ‘एलआईओसी’ और श्रीलंका की ‘त्रिंको पेट्रोलियम टर्मिनल प्राइवेट लिमिटेड’ संयुक्त रूप से इस्तेमाल करेंगे। इस प्रकल्प का ५१ प्रतिशत हिस्सा श्रीलंका की ‘सिलॉन पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन’ के पास रहेगा एवं ४९ प्रतिशत हिस्सा भारत की ‘एलआईओसी’ के पास रहेगा।

भारत और श्रीलंका का यह ईंधन संबंधित सहयोग रणनीतिक नज़रिये से अहमियत रखता है। इस वजह से दोनों देशों की र्इंधन सुरक्षा तय होगी, ऐसा कहकर भारत के विदेशमंत्री ने इसकी अहमियत रेखांकित की है। साथ ही मौजूदा आर्थिक संकट में फंसे श्रीलंका को भारत हर तरह की सहायता प्रदान करेगा, ऐसा कहकर विदेशमंत्री जयशंकर ने इस देश को राहत दी है। इस वजह से चीन की बेचैनी के संकेत मिल रहे हैं। पूर्व में चीन की ओर झुकाव के कारण भारत के हितों के लिए खतरा साबित होनेवाले निर्णय करनेवाले श्रीलंका ने इसका हर्ज़ाना अपने हंबंटोटा बंदरगाह को खोकर चुकाया था। चीन के कर्ज का भुगतान करना मुमकिन ना होने से श्रीलंका को अपना यह बंदरगाह चीन को सौपना पड़ा था। इस पृष्ठभूमि पर श्रीलंका की नीति में बदलाव आया है और श्रीलंका ने भारत के साथ सहयोग बढ़ाया है।

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