कोलंबो में रणनीतिक नज़रिये से अहम कंटेनर टर्मिनल का ठेका भारतीय कंपनी को प्रदान

नई दिल्ली – भारतीय कंपनी ने चीन को झटका देकर रणनीतिक नज़रिये से बड़े अहम कोलंबो बंदरगाह के नए कंटेनर टर्मिनल निर्माण करने का ठेका प्राप्त किया है। इसके लिए ७० करोड़ डॉलर्स का समझौता हुआ है। इस टर्मिनल का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद ३५ वर्षों तक भारतीय कंपनी के हाथ में रहेगा। कोलंबो का यह डीप सी कंटेनर टर्मिनल श्रीलंका में चीन ने निर्माण किए हुए और चीनी कंपनी द्वारा नियंत्रित हो रही जेट्टी के करीब है। इस वजह से इस टर्मिनल की रणनीतिक अहमियत अधिक बढ़ रही है।

कंटेनर टर्मिनलश्रीलंका पोर्ट ट्रस्टर्स ऑथॉरिटी (एसएलपीए) और भारत के अड़ानी ग्रूप के बीच इस टर्मिनल के निर्माण कार्य का समझौता हुआ है। श्रीलंकन कंपनी की भागीदारी में अड़ानी ग्रूप इस कंटेनर टर्मिनल को चलाएगी। इसमें श्रीलंका की जॉन कील्स नामक स्थानीय कंपनी का ३४ प्रतिशत हिस्सा होगा और अड़ानी ग्रूप ५१ प्रतिशत हिस्से की मालिक होगी। १.४ किलोमीटर लंबाई और २० मीटर गहराई का यह कंटेनर टर्मिनल सालाना ३२ लाख कंटेनर की आवाजाही संभालेगा। दो वर्षों में इस टर्मिनल का निर्माण कार्य पूरा होगा और इसके बाद ३५ वर्षों तक यह टर्मिनल भारतीय कंपनी के हाथ में रहेगा।

भारत को रणनीतिक नज़रिये से अहम कोलंबो पोर्ट में एक टर्मिनल प्रदान करने के मुद्दे पर बीते कुछ वर्षों से चर्चा हो रही थी। लेकिन, इस वर्ष फ़रवरी में कोलंबो बंदरगाह के टर्मिनल का आंशिक कब्ज़ा भारत को प्रदान करने हेतु वहां की कामगार संगठनों ने विरोध किया था। इस वजह से आखरी क्षण में श्रीलंकन सरकार ने चीन द्वारा संचालित ‘इंटरनैशनल कंटेनर टर्मिनल’ (सीआयसीटी) के बगल में नए स्वतंत्र टर्मिनल का निर्माण करने का प्रस्ताव भारत के सामने रखा था।

वर्ष २०१४ में श्रीलंका के ‘सीआयसीटी’ बंदरगाह में ही चीन की दो पनडुब्बियों ने प्रवेश किया था। इस पर भारत ने तीव्र आपत्ति जताई थी और चिंता भी व्यक्त की थी। इसके बाद श्रीलंका ने चीन की पनडुब्बियों को अपने बंदरगाहों में रुकने की दोबारा अनुमति देने से इन्कार किया था। इसी ‘सीआयसीटी’ के बगल में भारतीय कंपनी द्वारा निर्माण हो रहे कंटेनर टर्मिनल की रणनीतिक नज़रिये से अहमियत रेखांकित हो रही है।

श्रीलंका ने चीन और भारत दोनों को लेकर संतुलित नीति अपनाई हुई दिख रही है। चीन ने बीते कुछ वर्षों में भारत को घेरने की महत्वाकांक्षी योजना के तहत भारत के पड़ोसी देशों में बड़ा निवेश किया और अपना प्रभाव बढ़ाया। इनमें श्रीलंका का भी समावेश था। प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के पांच वर्ष पहले के राष्ट्राध्यक्ष पद के कार्यकाल में उनकी नीति चीन समर्थक रही थी। इसी दौर में कोलंबो बंदरगाह का ठेका चीन ने प्राप्त किया था। साथ ही चीन से प्राप्त किए गए भारी कर्ज़ के बदले में श्रीलंका को रणनीतिक नज़रिये से अहम अपने बंदरगाह का कब्ज़ा ९९ वर्षों के लिए चीनी कंपनी को देना पड़ा था। इस पर अमरीका और जापान ने भी तीव्र चिंता व्यक्त की थी।

लेकिन, हंबंटोटा जैसा बंदरगाह खोने के बाद श्रीलंका की नीति में बदलाव दिखाई दिया। अगले दिनों में हंबंटोटा के करीब स्थित मटाला राजपक्षे हवाई अड्डे का नियंत्रण भारत को सौंपकर श्रीलंका ने संतुलन बनाए रखने की कोशिश की। बीते वर्ष श्रीलंका के विदेश सचिव जयनाथ कोलंबेज ने चीन को हंबंटोटा देकर भूल करने की बात स्वीकारी थी। इसी बीच श्रीलंका के राष्ट्राध्यक्ष गोताबाय राजपक्षे ने संयुक्त राष्ट्रसंघ की आम सभा में बोलते सयम यह बयान किया था कि, इसके आगे श्रीलंका की नीति का झुकाव किसी भी विशेष देश की ओर नहीं रहेगा।

साथ ही, हिंद महासागर क्षेत्र में किसी भी विशेष देश के वर्चस्व के खिलाफ श्रीलंका रहेगी, ऐसा कहकर गोताबाय राजपक्षे ने चीन पर अप्रत्यक्ष निशाना साधा था। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था फिलहाल संकट में है और कोरोना के संकट काल में भारत ने उसकी बड़ी सहायता की है। साथ ही श्रीलंकन सरकार अब भी भारत से सहायता की उम्मीद लगाए बैठी है।

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