भारतीय प्रधानमंत्री के जापान दौरे में परमाणु ऊर्जा समझौता संपन्न होगा

नई दिल्ली, दि. २५ (वृत्तसंस्था) – भारतीय प्रधानमंत्री की जापान यात्रा में दोनो देशों के बीच ‘नागरी परमाणु ऊर्जा समझौता’ संपन्न होगा, ऐसी गहरी संभावना जतायी जा रही है| इस संदर्भ में, दोनो देशों के बीच चर्चा चल रही थी और इसे जल्द ही अंतिम स्वरूप प्राप्त होगा, ऐसा विश्वास भारत की ओर से जताया जा रहा है| लेकिन परमाणु हमला सहनेवाला दुनिया का एकमात्र देश रहनेवाले जापान की अंतर्गत राजनीति इस ‘परमाणु सहायता’ में रोड़ा ड़ाल सकती है, ऐसी चिंता जताई जा रही है| अगर दोनो देशों के बीच यह समझौता संपन्न हुआ, तो इसके बहुत बड़े सामरिक नती़ज़े आनेवाले समय में सामने आयेंगे|

परमाणु ऊर्जापिछले साल के दिसंबर महीने में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो ऍबे भारत यात्रा पर आए थे| उस वक्त दोनो देशों के बीच, महत्त्वपूर्ण आर्थिक समझौते के साथ नागरी परमाणु समझौते पर भी चर्चा हुई थी| इस दिशा में हुए विकास पर दोनो देशों द्वारा संतोष ज़ाहिर किया गया था| इस पृष्ठभूमि पर, नवंबर महीने में भारत के प्रधानमंत्री की जापान यात्रा में यह परमाणु समझौता संपन्न होगा, ऐसी संभावना जतायी जा रही है| यदि यह समझौता हुआ, तो जापान की ओर से भारत को परमाणु ऊर्जा के मामले में प्रगत तकनीक़ मिलेगी| साथ ही, भारत के परमाणुऊर्जा क्षेत्र में निवेश का रास्ता जापान के लिए साफ़ होगा| ऊर्जा की मॉंग भारी मात्रा में बढ़ी होनेवाले भारत के लिए यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात साबित होगी; साथ ही, सामरिक रूप से इसके बहुत लाभ भारत के साथ जापान को भी मिलेंगे|

एशिया महाद्वीप के साथ पूरी दुनिया में ही, चीन सामर्थ्यशाली देश के तौर पर उभरकर आया है। ऐसे में, भारत और जापान के प्राकृतिक प्रभाव तथा आर्थिक हितसंबंधो को चीन की वजह से खतरा पैदा हुआ है| इसके साथ ही, चीन के बढ़ते आर्थिक एवं सेना सामर्थ्य के साथ इस देश की विस्तारवादी मानसिकता का झटका भी पड़ोसी देशों को बैठने लगा है| इसके अलावा भारत के कुछ भूभाग पर चीन ने दावा किया है| चीन ने हालाँकि अभी तक इन क्षेत्रों में खुलेआम संघर्ष का ऐलान नहीं किया है, लेकिन फिर भी इस संघर्ष के लिए चीन ने कड़ी तैयारी शुरू करके अपने सभी पड़ोसी देशों को धमकाना शुरू किया है|

ऐसे हालात में भारत और जापान इन एशियाई लोकतंत्रवादी देशों के आर्थिक, राजनयिक और सामरिक सहयोग का महत्त्व बढ़ता नज़र आ रहा है| इसीका एहसास रखते हुए भारत और जापान ने यह सहयोग दृढ़ करने का फ़ैसला किया है| जापान ने अपनी रक्षासंबंधित नीति बदलते हुए, हथियार और रक्षासामग्री के निर्माण का फ़ैसला किया है| इसके तहत जापान पहली बार ‘ऍम्फिबियस’ विमान ‘युएस-२’ भारत को देने के लिए तैयार हुआ है| यह विमान मामूली दामों में भारत को देने के जापान के फ़ैसले पर चीन ने सख़्त ऐतराज़ जताया था| यह रक्षासंबंधित सौदा यानी चीन के खिलाफ़ षड्यंत्र है, ऐसा आरोप चीन के विदेशमंत्रालय ने किया था|

इसी वजह से, भारत और जापान के सहयोग पर चीन की कड़ी ऩजर बनी हुई है| लेकिन ऐसा होते हुए भी जापान भारत के साथ नागरी परमाणु समझौते के बारे में सावधान भूमिका अपना रहा है| इस समझौते के बाद जापान की तरफ से मिलने वाले संवर्धित परमाणुईंधन का लष्करी इस्तेमाल नहीं किया जायेगा, ऐसा आश्‍वासन जापान को चाहिए| क्योंकि भारत ने अभी तक ‘परमाणुअस्त्र प्रसार प्रतिबंध’ समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं और जापान ने अब तक ऐसे किसी भी देश के साथ ‘परमाणुसहयोग समझौता’ नहीं किया है| यह बात भी दोनो देशों के परमाणु सहयोग समझौते के बीच आ रही है| लेकिन जापान के प्रधानमंत्री शिंजो ऍबे की विदेश नीति में भारत के साथ के सहयोग के लिए विशेष स्थान है और वे यह विरोध तोड़कर परमाणु सझमौते का रास्ता खुला करेंगे, ऐसी संभावना भी जतायी जा रही है|

भारत ‘साऊथ चायना सी’ मसले पर स्पष्ट भूमिका अपनायें : जापान का आवाहन

टोकिओ, दि. २५ (वृत्तसंस्था) – भारतीय उपमहाद्वीप क्षेत्र में सागरी सुरक्षा के महत्त्व को ध्यान में लेते हुए, भारत ने ‘साऊथ चायना सी’ के मसले पर स्पष्ट नीति अपनानी चाहिए, ऐसा आवाहन जापान ने किया है| पिछले महीने में हुए ‘ईस्ट एशिया समिट’ में सागरी सुरक्षा का मुद्दा समाविष्ट हों इसके लिए भारत और जापान ने एक-दूसरें को सहयोग किया था| इसका ज़िक्र करते हुए जापान के विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी युकि तामुरा ने भारत को, साऊथ चायना सी के मसले पर सहयोग का आवाहन किया|

भारत के प्रधानमंत्री जल्द ही जापान यात्रा पर जानेवाले हैं| उस समय जापान के प्रधानमंत्री शिंझो ऍबे के साथ उनकी महत्वपूर्ण बैठक होनेवाली है| टोकियो में होनेवाली इस बैठक में ‘साऊथ चायना सी’ के मसले पर भी चर्चा होगी, ऐसे संकेत मिलने लगे हैं| इससे पहले, भारत और जापान के प्रधानमंत्री के बीच नई दिल्ली में हुई बैठक में संयुक्त निवेदन में ‘साऊथ चायना सी’ का मसले का समावेश किया गया था|

भारत ने चीन से, ‘साऊथ चायना सी’ के मसले का एक-दूसरे के साथ चर्चा करके और समझदारी से हल निकालने का आवाहन किया है| वहीं, चीन ने भारत का इस मसले के साथ कोई भी संबंध न होकर, भारत को इससे दूर रहने का मशवारा दिया है| लेकिन भारत ने ‘साऊथ चायना सी’ के मसले में सहभागी रहनेवाले व्हिएतनाम के साथ सहयोग का हाथ बढ़ाया होकर, उसपर चीन ने सख़्त नारा़ज़गी जताई है|

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