भारतविरोधी व्यूहरचना का महत्त्वपूर्ण हिस्सा रहनेवाला, चीन का श्रीलंका में किया जानेवाला निवेश ख़तरे में

कोलंबो, दि. २५ : ‘कोई भी नकारात्मक शक्ति चीन और श्रीलंका के बीच का सहयोग रोक नहीं सकती| यदि हालात उत्तम रहे, तो आनेवाले तीन से पाँच साल में चीन श्रीलंका में करीब पाँच सौ करोड़ डॉलर का निवेश करेगा| इससे श्रीलंका में लगभग एक लाख लोगों को रोज़गार मिलेगा,’ ऐसा दावा श्रीलंका में चीन के राजदूत ‘यी शियानलियांग’ ने किया| लेकिन चीन श्रीलंका में कर रहे निवेश के कारण अपना देश चीन के अधिकार में आयेगा, इस ड़र से श्रीलंकन जनता इस निवेश का कड़ा विरोध कर रही है| इसलिये चीन ने श्रीलंका में हाथ में लिए विकास प्रकल्प ख़तरे में आए हैं|

श्रीलंका के हंबंटोटा बंदरगाह का विकास करने के लिए चीन ने यह निवेश शुरू किया है| इस बंदरगाह के नज़दीक चीन ‘इंडस्ट्रियल पार्क’ विकसित कर रहा है| इस प्रकल्प को स्थानिक लोगों का विरोध है| यहाँ के लोकप्रतिनिधी भी चीन के इस प्रकल्प के विरोध में उतरे हैं| श्रीलंका स्वतंत्र होकर ६९ साल हुए हैं| ‘इसके बाद श्रीलंका की आज़ादी को दूसरे देश के पास गिरवी नहीं रखने देंगे’ ऐसा प्रतिपदित कर श्रीलंकन संसदसदस्य डी. व्ही. चानका ने, ‘चीन के निवेश से श्रीलंका की संप्रभुता को ख़तरा है’ ऐसा स्पष्ट किया|

चानका ने चीन के विरोध में स्थानीय लोगों को जागृत करते हुए प्रदर्शनों का भी आयोजन किया है| शुरूआत में चीन के हंबंटोटा में निवेश करने का विरोध करनेवाली राष्ट्राध्यक्ष सिरीसेना की सरकार, कुछ समय के बाद चीन के निवेश के पक्ष में खड़ी हुई है, ऐसा दिख रहा है| ऐसा होते हुए भी, स्थानिकों के विरोध के सामने श्रीलंका की सरकार विवश होती नजर आ रही है| यह विरोध यदि बरक़रार रहा, तो चीन का श्रीलंका स्थित यह महत्त्वाकांक्षी प्रकल्प ख़ारिज हो जायेगा, ऐसा दावा किया जा रहा है|

श्रीलंका में हो रहे इस विरोध के पीछे भारत का हाथ है, ऐसा आरोप चीन की सरकारी मीडिया कर रही है| भारत श्रीलंका में हस्तक्षेप कर चीन के प्रकल्प को ना रोकें, ऐसी चेतावनी चिनी मीडिया द्वारा दी जा रही है| साथ ही, श्रीलंका स्थित चीन के राजदूत ने दी प्रतिक्रिया भी भारत की तरफ निर्देश करनेवाली दिखाई दे रही है| भारत और जापान इन देशों की सहायता से श्रीलंका चीन के निवेश के खिलाफ कड़ा रूख़ अपनायेगी, ऐसी चर्चा भी श्रीलंकन अखबार में शुरू हुई है|

हंबंटोटा बंदरगाह का विकासप्रकल्प हाथ में लेने के पीछे चीन का हेतु केवल आर्थिक न होकर, भारत के विरोध में रहनेवाली चीन की व्यूहरचना में हंबंटोटा को महत्त्वपूर्ण स्थान रहने की बात इससे पहले भी सामने आयी थी| इसलिए अपने इस प्रकल्प को हो रहे विरोध के पीछे भारत का हाथ है, ऐसा दावा चीन द्वारा किया जा रहा है| लेकिन चीन के निवेश से सहमी श्रीलंकन जनता को आश्‍वस्त करने में चीन पूरी तरह से नाकामयाब हुआ है| भारत पर इल्ज़ाम लगाकर चीन अपनी इस असफलता को ढकने की कोशिश कर रहा है, ऐसा दिख रहा है|

Leave a Reply

Your email address will not be published.