संयुक्त राष्ट्र संघ के सुधार अवरुद्ध कर रहे देशों की भारत के विदेश मंत्री ने की आलोचना

स्टॉकहोम – संयुक्त राष्ट्र संघ की रचना के लाभार्थी देश सुधार का विरोध कर रहे हैं। क्यों कि, इससे अपने अधिकार कम होंगे और अपना स्थान पहले से कमज़ोर होगा, इस चिंता ने उन्हें परेशान किया हैं, ऐसी फटकार भारत के विदेश मंत्री ने लगाई। स्वीडन दौरे पर पहुंचे विदेश मंत्री जयशंकर ने वहां पर भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के स्थानी सदस्य यानी ‘पी ५’ देशों की आलोचना की। कम-ज्यादा मात्रा में यह सभी सदस्य देश सुधार अवरुद्ध कर रहे हैं। लेकिन, इनमें से समज़दार देशों को स्थिति के अनुसार बदलना होगा, इसका अहसास होने का बयान भी जयशंकर ने किया। 

सुधार अवरुद्ध कर रहेवर्ष १९४० में संयुक्त राष्ट्र संघ गठित हुआ। इसके बाद सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों का चयन हुआ और आज भी वहीं पांच स्थायी सदस्य देश विश्व का कारोबार चला रहे हैं। ऐसे में अन्य देशों के हिस्से दो सालों की अस्थायी सदस्यता प्रदान हो रही है। अमरीका, रशिया, ब्रिटेन, फ्रान्स और चीन यह स्थायी सदस्य देश यानी ‘पी ५’ देश सुरक्षा परिषद में अपना नकाराधिकार इस्तेमाल करके कोई भी निर्णय रोक सकते हैं। अब तक इस तरह से निर्णायक अधिकारों का लाभ उठा रहे देश दूसरों को यह अधिकार देने के लिए तैयार नहीं हैं। भारत और अन्य देशों को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता देने की तैयारी इन देशों ने दर्शायी। लेकिन, नकाराधिकार बहाल करना मुमकिन नहीं होगा, ऐसा प्रस्ताव इन देशों ने दिया था।

इसपर भारत की तीखी प्रतिक्रिया सामने आयी थी। समानता के आधार पर संयुक्त राष्ट्र संघ का निर्माण हुआ हैं, उसकी याद भारत ने दिलाई। ऐसी स्थिति में पांच देशों को विशेष अधिकार देने की कल्पना ही गलत हैं। सभी स्थायी सदस्य देशों को यह अधिकार प्राप्त होना चाहिए, नहीं तो किसी को भी यह अधिकार नहीं मिलना चाहिए, ऐसा भारत ने कहा था। साथ ही सुरक्षा परिषद का विस्तार ना होने पर संयुक्त राष्ट्र संघ अकार्यक्षम एवं प्रभाव हीन होने की आलोचना भारत ने की थी। स्वीडन में बोलते समय विदेश मंत्री जयशंकर ने फिर से यह मुद्दा उठाकर ‘पी ५’ देशों की आलोचना की।

संयुक्त राष्ट्र संघ की पुरानी रचना के लाभार्थी बने यह देश उन्हें प्राप्त विशेष अधिकार दूसरों को देने के लिए तैयार नहीं हैं। ऐसा करने से अपना स्थान कमज़ोर होगा, यह चिंता उन्हें सता रही हैं। लेकिन, इनमें से कुछ समझदार देशों को स्थिति के बदलने के साथ हमें भी बदलना होगा, इसका अहसास हुआ हैं, यह कहकर जयशंकर ने भारत की स्थायि सदस्यता को हो रहा विरोध कम होने के संकेत दिए।

इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए यह देश तैयार हुए हैं। यह भी एक बड़ा बदलाव हैं, इसपर विदेश मंत्री ने ध्यान आकर्षित किया। इसी बीच, पिछले कुछ महीनों से भारत लगातार सुरक्षा परिषद की स्थायि सदस्यता पर अपने दावेदारी आक्रामकता से जता रहा हैं। चीन को पीछे छोड़कर भारत विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या का देश बना हैं और भारत की आर्थिक प्रगति पर गौर करे तो भारत को अनदेखा करना मुमकिन नहीं होगा, इसका अहसास सभी देशों को हुआ हैं। एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमरिकी देशों की आवाज़ बनकर भारत पश्चिमी देशों के सामने गरीब और अविकसित देशों का पक्ष उठा रहा हैं। इस वजह से भारत की स्थायी सदस्यता को प्राप्त हो रहा समर्थन भारी मात्रा में बढ़ा हैं। ऐसी स्थिति में भारत के नेता सुरक्षा परिषद के विस्तार का मुद्दा उठाकर ‘पी ५’ देशों पर अधिक दबाव बढ़ाते दिखाई दे रहे हैं। 

मराठी

Leave a Reply

Your email address will not be published.