भारत और चीन के संबंध तनावपूर्ण – अमरिकी गुप्तचर विभाग के अधिकारी का दावा

वॉशिंग्टन – भारत और चीन की सेनाओं में गलवान वैली में हुए संघर्ष के दो साल पूरे हो रहे हैं। फिर भी यहाँ का तनाव खत्म नहीं हुआ है, ऐसा अमरिकी गुप्तचर विभाग से जुड़े अधिकारियों का कहना है। अमरिकी सीनेट की ‘आर्म्ड सर्व्हिसेस कमिटी’ के सामने हुई सुनवाई में, गुप्तचर विभाग के अधिकारियों ने यह निष्कर्ष दर्ज़ किया। इन दो परमाणुअस्त्रधारी देशों के बीच के संघर्ष के कारण अमेरिकन्स की जानें और अमरीका के हितसंबंध खतरे में पड़ सकते हैं, ऐसा कहकर, इस संघर्ष को टालने के लिए अमरीका की मध्यस्थता की आवश्यकता पड़ेगी, ऐसे बढाईखोर दावे अमरिकी अधिकारियों ने किए हैं।

युक्रेन का युद्ध भड़कने के बाद, रशिया के विरोध में जाने से इन्कार करनेवाले भारत पर अमरीका अलग-अलग मार्गों से दबाव डाल रही है। भारत को अगर अमरीका से सहयोग नहीं मिला, तो चीन उसका फ़ायदा उठाकर भारत की सीमा में सेना घुसाएगा और उस समय रशिया भारत का साथ नहीं देगा, ऐसी धमकियाँ अमरीका दे रही है। उसके बाद के समय में, चीन भारत की सीमा में घुसपैठ की तैयारी कर रहा है, ऐसी भारत को डराने की कोशिश करनेवाली रिपोर्ट अमरीका ने प्रकाशित की थी। उसी प्रकार अमरिकी सीनेट की आर्म्ड सर्व्हिसेस कमिटी के सामने ताज़ा सुनवाई में, भारत और चीन के तनाव का नए से जिक्र करके, दोनों देशों के बीच संघर्ष की संभावना जताई गई है। उसी के साथ, भारत के पाकिस्तान के साथ बने तनाव का भी उल्लेख इसमें किया गया है।

भारत और चीन के पास होनेवाले परमाणु अस्त्रों का भी ज़िक्र इसमें किया गया है। साथ ही, दोनों देशों के बीच के संघर्ष के कारण अमरीका के हितसंबंध खतरे में पड़ जाएंगे, इसलिए अमरीका को भारत और चीन के संघर्ष में हस्तक्षेप करना ही पड़ेगा, ऐसा दावा अमेरिकन गुप्तचर संगठन के अधिकारी कर रहे हैं। लेकिन भारत और चीन के बीच का सीमा विवाद चाहे कितना भी क्यों न बिगड़ जायें, तो भी अमरीका जैसे देश को उसका फायदा उठाने ना देने जितनी प्रगल्भता अब तक भारत और चीन ने भी दिखाई थी। भारत अमरीका का एजेंट बना होने का आरोप करनेवाले चीन को, युक्रेन के युद्ध के संदर्भ में भारत ने अपनाई भूमिका की सराहना करनी पड़ी थी। भारत की विदेश नीति स्वतंत्र होने की बात इससे साबित हो रही है, यह चीन ने भी मान्य किया था।

अमरीका के दबाव के बावजूद भी रशिया के साथ अपनी मित्रता साबित करनेवाले भारत ने, चीन से भी सहयोग करके सीमा विवाद का मुद्दा फिलहाल बाजू में रखना चाहिए, ऐसी उम्मीद चीन द्वारा जताई जा रही थी। उसके लिए चीन के विदेश मंत्री वँग ई भारत दाख़िल हुए थे। लेकिन भारत ने कुछ ख़ास महत्त्व नहीं दिया था। फिलहाल चीन का सारा ध्यान ताइवान की ओर लगा होकर, वर्तमान समय में चीन से भारत को खतरा होने के अमरीका के दावे यानी दबाव तंत्र का ही भाग साबित होता है।

चीन के साथ संघर्ष भड़कने की संभावना होते समय, भारत को अमरीका के सहयोग की आवश्यकता है, यह बात बायडेन प्रशासन बार बार भारत से कहना चाहता है। लेकिन अमरीका अथवा अन्य किसी भी देश का सहयोग हालाँकि महत्त्वपूर्ण है, फिर भी भारत किसी और के बलबूते पर अपने फ़ैसलें नहीं करता, ऐसा सुस्पष्ट संदेश भारत द्वारा दिया जा रहा है। इस कारण, दबाव बढाने की अमरीका की नयीं कोशिशों को भी भारत सरकार द्वारा कुछ ख़ास महत्त्व दिया जाने की कोई गुंजाईश नहीं है। उल्टा इसका भारत-अमरीका संबधों पर विपरित असर होने की गहरी संभावना है।

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