ईंधन की कमी यूरोपियन एकजुट को तोड़ देगी – ‘इंटरनैशनल एनर्जी एजेन्सी’ के प्रमुख की चेतावनी

पैरिस – ठंड़ के मौसम में महसूस होनेवाली ईंधन की किल्लत के मद्देनज़र यूरोपिय देशों के निर्णय यूरोपिय महासंघ की एकजुट को तोड़ सकते हैं, ऐसी चेतावनी ‘इंटरनैशनल एनर्जी एजेन्सी’ (आयईईए) के प्रमुख फातिह बिरॉल ने दी। ईंधन की कमी के कारण यूरोपिय देश व्यापार पर प्रतिबंध लगाना या पड़ोसी देशों के साथ सहयोग रोकने जैसे निर्णय ले सकते हैं, ऐसा इशारा बिरॉल ने दिया। ‘आईईए’ के प्रमुख ने इसकी तुलना अमरीका में सोने के लिए गिरोहों के संघर्ष (वाईल्ड वेस्ट) से की। इस चेतावनी की वजह से रशिया को नुकसान पहुँचाने की मंशा रखनेवाले यूरोपिय महासंघ को ईंधन संकट के साथ ही राजनयिक चुनौतियों के संकट का भी सामना करना पडेगा, ऐसे स्पष्ट संकेत प्राप्त हो रहे हैं।

‘ग्लोबल क्लीन एनर्जी ऐक्शन फोरम’ में दिए गए साक्षात्कार के दौरान ‘आईईए’ के प्रमुख ने यूरोप को करीबी दिनों में संकट की मालिका का सामना करना पडेगा, यह इशारा दिया। रशिया-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि पर यूरोपिय महासंघ ने रशियन ईंधन पर प्रतिबंध लगाए हैं। इस वजह से यूरोप में ईंधन की कीमतों में भारी उछाल आया है। ‘ईंधन की कीमतों में आए उछाल की वजह से यूरोप आज मंदी की दहलिज पर है। मंदी के संकट का मुकाबला करने के लिए कुछ देश रशिया के साथ ईंधन की आपूर्ति करने के मुद्दे पर स्वतंत्र समझौता करने की भूमिका भी अपना सकते हैं। कुछ देश पड़ोसी देशों को मिल रहे ईंधन के निर्यात पर प्रतिबंध लगा सकते हैं’, इस पर बिरॉल ने ध्यान आकर्षित किया।

महासंघ के देशों ने यदि सिर्फ अपनी ज़रूरतों के बारे में सोचने की भूमिका अपनाई तो यूरोपिय देशों की एकजुट में दरार निर्माण होगी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यूरोप की प्रतिमा पर गंभीर असर पडेगा, ऐसी चेतावनी ‘आईईए’ के प्रमुख ने दी। ईंधन के भंड़ार पर्याप्त मात्रा तक भर जाने के बाद यूरोपिय देशों की आत्मसंतुष्टता की वृत्ती की भी उन्होंने आलोचना की। ईंधन के भंड़ार अब भरे हुए हैं, लेकिन, आनेवाले समय में यूरोप को आर्थिक मंदी और ‘कॉस्ट ऑफ लीविंग क्राइसिस’ जैसे संकट से बचना मुमकिन नहीं होगा, ऐसा बिरॉल ने कहा। ईंधन बाज़ार की आपूर्ति अब भी सामान्य नहीं हुई है और नैसर्गिक ईंधन वायु के लिए एशियाई देशों की माँग भी बढ़ रही है। इससे यूरोप को साल २०२३ में भी ईंधन संकट का मुकाबला करना पडेगा, इसका अहसास ‘आईईए’ के प्रमुख ने इस दौरान कराया।

रशिया-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि पर यूक्रेन का समर्थन कर रहे यूरोपिय देशों ने रशियन ईंधन का आयात घटाने का निर्णय किया था। इसके अनुसार वर्तमान वर्ष के अन्त तक रशियन ईंधन का आयात ८० प्रतिशत घटाया जा रहा है। लेकिन, रशियन ईंधन बंद करने के लिए इसका सक्षम विकल्प तलाशने में यूरोपिय देश असफल हुए हैं। कच्चे तेल एवं नैसर्गिक ईंधन वायु का आयात बढ़ाने के लिए यूरोपिय देशों ने खाड़ी देश एवं अफ्रीकी महाद्वीप के देशों से चर्चा शुरू की थी। लेकिन, इन देशों ने, हम रशिया के लिए विकल्प नहीं दे सकते, ऐसी स्पष्ट भूमिका अपनाई है। साथ ही अमरिकी ईंधन उत्पादकों ने भी असमर्थता दर्शायी है और हम यूरोप की ज़रूरतें पूरी नहीं कर सकते, इसकी कबूली हाल ही में दी थी।

रशिया ही यूरोप का सबसे बड़ा ईंधन निर्यातक देश जाना जाता है। यूरोपिय ईंधन ज़रूरत में से कुल ३० प्रतिशत से अधिक ज़रूरत रशिया पूरी करती है। मौजूदा प्राप्त आँकड़ों के अनुसार यूरोपिय देश रशिया से हर दिन ३५ लाख बैरल्स कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादनों की आयात करते हैं। साल २०२१ में रशिया ने यूरोपिय देशों को भारी १५० अरब घनमीटर से अधिक नैसर्गिक ईंधन वायु निर्यात किया था।

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