अफगानिस्तान की अन्तर्राष्ट्रीय सहायता ना रोकें – तालिबान की विनती

काबुल – ‘अफगानिस्तान आर्थिक दृष्टि से टूटने की कगार पर है। ऐसी परिस्थिति में अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय अफगानिस्तान की अर्थसहायता ना रोकें। अमरीका ने फ्रीज की हुई अफगानिस्तान की तकरीबन ९.५ अरब डॉलर्स की निधि भी वापस लौटाएँ’, ऐसा आवाहन तालिबानी नियुक्त किए अफगानिस्तान के अस्थाई प्रधानमंत्री को करना पड़ा है। इसके साथ ही अफगानिस्तान के अस्थाई प्रधानमंत्री ने अपने पहले ही सार्वजनिक भाषण में, तालिबान किसी भी देश के अंतर्गत व्यवहार में दखलअंदाजी नहीं करेगा, ऐसा आश्वासन दिया है। मुल्ला अखुंद के इस आश्वासन से स्पष्ट रूप में दिखाई देने लगा है कि अफगानिस्तान की सरकार चलाते समय तालिबान की अवस्था मुश्किल बनी है।

afghan-international-aid-2तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद पिछले तीन महीनों में इस देश की अर्थव्यवस्था रसातल को पहुँची होकर अफगानिस्तान पर दुनिया की सबसे बड़ी मानवीय आपदा मंडरा रही है। अमरीका, युरोपीय महासंघ, जागतिक बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष तथा अन्य वित्तसंस्थाओं ने अफगानिस्तान को दी जानेवाली सहायता फ्रीज की है। तालिबान के शासन काल में अफगानिस्तान जागतिक बैंकिंग व्यवस्था से अलग हुआ होकर, उसके भयंकर परिणाम इस देश को भुगतने पड़ रहे हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय सहायता बंद होने के कारण अफगानिस्तान में अनाज और ईंधन की भारी मात्रा में किल्लत महसूस हो रही होकर, मार्केट में उपलब्ध होनेवाले अनाज की कीमतें भी भड़की हैं। इस कारण इस वर्ष के अंत तक अफगानिस्तान में ३२ लाख बच्चों पर भूखमरी का संकट आ धमकेगा, ऐसी चेतावनी जागतिक स्वास्थ्य संगठन ने दी है। फिलहाल अफगानिस्तान में नगद पैसे की किल्लत महसूस हो रही है और बैंकों समेत उद्योगधंधे बंद पड़ने लगे हैं।

अगले साल के जून महीने तक अफगानिस्तान की ९७ प्रतिशत जनता दारिद्रय रेखा के नीचे चली जाएगी, ऐसी चेतावनी ‘युनायटेड नेशन्स डेव्हलपमेंट प्रोग्राम’ ने दी थी। इसका हवाला देकर संयुक्त राष्ट्र संगठन ने अफगानियों के लिए सहायता करने का आवाहन अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को किया था।

कुछ हफ्ते पहले अमरीका और युरोपीय महासंघ ने अफगानिस्तान के लिए १.२९ अरब डॉलर्स की नीति घोषित की थी। लेकिन उसका इस्तेमाल अफगानिस्तान से विस्थापित हुए तथा पड़ोसी देशों में स्थानांतरित हुए अफगानियों के लिए किया जानेवाला है। इस कारण तालिबान की हुकूमत को उसका कुछ भी फायदा नहीं मिलेगा।

afghan-international-aid-1अफगानियों के लिए सहायता प्रदान करने का फ़ैसला हालांकि किया गया है, फिर भी तालिबान की हुकूमत को हम मान्यता नहीं देंगे, ऐसा युरोपीय महासंघ ने घोषित किया है। अन्य देश भी तालिबान के हाथ में निधि देने के बजाय अफगानी जनता को ठेंठ सहायता पहुँचाने पर विचार कर रहे हैं।

ऐसी परिस्थिति में, तालिबान का प्रधानमंत्री मुल्ला अखूंद ने, अफगानिस्तान सभी देशों से अच्छे संबंध चाहता है यह बताकर अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को सहायता का आवाहन किया है। उसी समय, तालिबान दूसरे देश में दखलअंदाजी नहीं करेगा, ऐसा आश्वासन भी मुल्ला अखुंद ने दिया। लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय तालिबान के शब्दों पर नहीं, बल्कि कृति पर नजर रखे है। अफगानिस्तान की सत्ता हाथ में लेने के बाद, तालिबान ने मानवाधिकारों का हनन करके निर्ममता से अपने विरोधकों को रास्ते से हटाया था। साथ ही, अफगानी जनता पर प्रतिबंध लगाकर तालिबान ने कट्टरवादी नीतियों पर अमल किया था।

इस कारण अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय तालिबान पर भरोसा करने के लिए तैयार नहीं है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तालिबान के विरोध में वातावरण निर्माण होने के कारण, तालिबान से सहयोग करने के लिए पहल करनेवाले पाकिस्तान और चीन ये देश भी इस हुकूमत को मान्यता देने के लिए तैयार नहीं है। इसके भयंकर परिणाम तालिबान के सामने आए होकर, आनेवाले समय में अफगानिस्तान का शासन चलाना तालिबान के लिए अधिक से अधिक मुश्किल बनता जाएगा, ऐसी चेतावनी विश्लेषक दे रहे हैं।

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