‘क्वाड’ के सहयोग से चीन की असुरक्षा बढ़ाई

नई दिल्ली – भारत, अमरीका, ऑस्ट्रेलिया और जापान इन ‘क्वाड’ सदस्य देशों की बैठक ६ अक्तुबर को होगी। इस बैठक पर चीन ने चिंता व्यक्त की है। इन दिनों  विकास और सहयोग को असाधारण अहमियत बनी है और ऐसे में कुछ देशों के खास गुट तैयार करके इसका अन्य देश के खिलाफ़ इस्तेमाल करना चिंता की बात साबित होती है, यह बयान चीन के विदेश मंत्रालय ने किया है। इसकी वजह से हमारे खिलाफ़ खड़े हो रहा ‘क्वाड’ का सहयोग चीन के लिए ड़रावना साबित होगा, यह सामरिक विश्‍लेषकों ने किया दावा सच साबित होता हुआ दिख रहा है। इसी कारण इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी लष्करी और आर्थिक ताकत का प्रदर्शन करनेवाला चीन विकास, सहयोग और शांति की भाषा बोलने लगा है।

चीन की असुरक्षा

भारत के विदेशमंत्री एस.जयशंकर ६ अक्तुबर के दिन हो रही ‘क्वाड’ की बैठक के लिए जापान पहुँच रहे है। चीन की आक्रामकता की वजह से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में निर्माण हुई अस्थिरता और असंतुलन दूर करने के लिए भारत, अमरीका, ऑस्ट्रेलिया और जापान इन चार देशों ने ‘क्वाड’ सहयोग स्थापित किया है। इसके बावजूद भारत ने चीन के खिलाफ पूरी तरह से जाना टाल दिया था। अपनी विदेश नीति का संतुलन और तटस्थता इससे प्रभावित होगी, यह भारत की भूमिका थी। इसके कारण ‘क्वाड’ का सहयोग अपेक्षित गति प्राप्त नहीं कर सका था, ऐसे दावे सामरिक विश्‍लेषक कर रहे थे और कुछ भारतीय विश्‍लेषकों ने भी इसकी पुष्टी की थी। लेकिन, बीते कुछ वर्षों से चीन ने लगातार भारत के खिलाफ़ भूमिका अपनाके भारत के सामने कोई विकल्प शेष नहीं रखा। इसी कारण पहले के दौर में ‘क्वाड’ को लेकर कुछ सावधानी से भूमिका अपनानेवाला भारत अब इस मोर्चे पर अधिक सक्रियता दिखा रहा है।

कुछ भी हो फिर भी भारत अपनी विदेश नीति में बदलाव करके ‘क्वाड’ के लिए योगदान नहीं देगा, यह भरोसा चीन रख रहा था। इसी कारण चीन भारत के खिलाफ निर्णय करता रहा। लद्दाख की सीमा से हिंद महासागर के क्षेत्र तक हो रही चीन की घुसपैठ इसी तर्क पर निर्भर थी। बल्कि अमरीका, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने कितनी भी कोशिश करने पर भी भारत चीन के खिलाफ़ जाने का खतरा नहीं उठाएगा। इसके लिए आवश्‍यक राजनीतिक और लष्करी साहस ही भारत नहीं रखता, यह बात चीन को साबित करनी थी। इसी वजह से चीन अलग अलग मोर्चों पर भारत को उकसाने की हरकतें करता रहा। लेकिन, अब चीन को अपनी गलती का अहसास होने लगा है। पहले कभी नहीं हुआ इतनी बड़ी मात्रा में चीन ‘क्वाड’ देशों के सामरिक सहयोग की वजह से बेचैन है और इसके गंभीर परीणाम उसे भुगतने पड़ेंगे, इस बात का पुख्ता अहसास चीन को हुआ है।

चीन की असुरक्षा

चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वैंग वेनबिन ने क्वाड का सहयोग दूसरे किसी भी देश के खिलाफ नहीं होना चाहिए, यह आवाहन करके यह बात विकास, समृद्धी और पारदर्शी सहयोग के लिए मारक साबित होगी, ऐसा कहा है। उनका यह बयान चीन की बेचैनी दिखा रहा है। लेकिन, अब क्वाड के सहयोग पर आपत्ति जता रहे चीन ने ही अपनी अनियंत्रित हरकतों के साथ क्वाड का सहयोग और भी मजबूत किया है, ऐसे दावे पश्‍चिमी माध्यमों ने किए हैं। खास तौर पर भारत की क्षमता को लेकर चीन ने बनाए रखे अंदाज पूरी तरह से गलत थे। क्योंकि, चीन ने भारत की ओर आवश्‍यकता के अनुसार गंभीरता से नहीं देखा, यह आलोचना भारत के सामरिक विश्‍लेषक कर रहे हैं। इस बात का अहसास होने के बाद भी चीन अपनी गलती सुधारने की कोशिश नहीं कर रहा है, बल्कि भारत को ही युद्ध की नई नई धमकियां देकर अपनी ही अधिक से अधिक घेराबंदी कर रहा है, ऐसा निष्कर्ष सामरिक विश्‍लेषकों ने व्यक्त किया है।

लद्दाख की प्रत्यक्ष नियंत्रण रेखा पर भारत को उकसाकर दबाव बनाने की कोशिश भी चीन ने की। लेकिन, गलवान में किया हुआ कायराना हमला और इसके बाद चीन ने की हुई सभी साज़िशें नाकाम करके भारतीय सेना ने पूरी तरह से चीन को ही धूल चटाई है। इसके बाद लद्दाख की ‘एलएसी’ पर लष्करी तैनाती बरकरार रखकर चीन अधिक से अधिक नुकसान करवा रहा है। लेकिन, अब भारत को धमकियां और चुनौतियां देने के बाद यहां से पीछे हटने पर अपनी प्रतिष्ठा भी मिट्टी में मिल जाएगी यह ड़र चीन को सता रहा हैं। इसी कारण यहां से सेना को पीछे हटाने के लिए चीन सम्मानजनक हल निकालने की कोशिश कर रहा है। लेकिन, भारत ने चीन को ऐसा अवसर नहीं देना चाहिए। क्योंकि, ऐसा होने पर चीन दुबारा अवसर पाकर भारत को चुनौती देगा, ऐसे इशारे पूर्व लष्करी अधिकारी दे रहे हैं। इसी कारण युद्ध का खतरा होने के बावजूद भारत ने इस बार चीन को सबक सीखाना होगा, इस निर्धार के साथ ही अपनी नीति तय करनी होगी और गतिविधयां करनी होंगी, यह इशारा सेना अधिकारी लगातार दे रहे हैं। ब्रह्मोस, आकाश और निर्भय जैसे मिसाइल लद्दाख की ‘एलएसी’ पर तैनात करके भारत ने अपने इसी निर्धार का प्रदर्शन किया हुआ दिख रहा है।

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