चीन के राष्ट्राध्यक्ष को लेकर संभ्रम कायम

बीजिंग – चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग को नज़रकैद में रखने की अफ़वाहें लगातार दूसरे दिन भी अपना प्रभाव दिखा रहीं थी। फिर भी चीन ने अधिकृत स्तर पर इसका खुलासा नहीं किया है। इसकी वजह से विश्व के माध्मयों को इस ‘अफवाह’ का संज्ञान लेकर इस विषय की खबरें प्रसिद्ध करनी पड़ीं। अब भी चीन से विश्वस्नीय खबरें विश्व के सामने नहीं आ रही हैं और अब तक चीन की कम्युनिस्ट हुकूमत ने खुलासा ना करना ही जिनपिंग के भविष्य को लेकर सबसे बड़ी संदिग्ध बात बनती है।

माध्यम एवं चीन में कुछ संदिग्ध हो रहा हैं, ऐसा कहनेवाले विश्लेषक अब तक इस पर पुख्ता जानकारी नहीं दे सके हैं। लेकिन, चीन की संदिग्ध गतिविधियाँ अधिक बढ़ी हैं और चीनी विदेश मंत्रालय ने इस सारी धांदली में मौन को सूचक माना जा रहा है। क्या चीन के ‘पीएलए’ के वरिष्ठ अधिकारी जनरल ली किओमिंग जल्द ही राष्टाध्यक्ष जिनपिंग के स्थान पर दिखाई देंगे? ऐसे सवाल सोशल मीडिया पर पूछे जा रहे हैं। क्योंकि, राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग अब पहले जितने पॉवरफुल नहीं रहे, यह दावा जोर पकड़ रहा है। कुछ समय पहले जिनपिंग ने हटाएँ हुए सेना अधिकारी अब ‘पीएलए’ की बैठकों में दिखाई देते हैं, यह बात ही स्थिति को बयान कर रही है, ऐसा कई लोग सोशल मीडिया पर कह रहे हैं।

चीन से इतना धूँआ उठ रहा है कि, इसका मतलब है कि, कहीं पर बड़ी आग लगी है, यह तय है, ऐसा चीनी वंशी अमरिकी विश्लेषक गॉर्डन चैंग ने कहा है। लेकिन, वे भी इस आग से जुड़ी अधिक जानकारी साझा नहीं कर पाए। लेकिन, जिनपिंग की सत्ता का इस तरह से अन्त होना, इतनी अच्छि बात नहीं होगी क्योंकि, वे सत्ता से हटते हैं तब भी चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की सत्ता बनी ही रहेगी। जिनपिंग के स्थान पर दूसरा नेता पर इससे चीन की मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था में बदलाव नहीं होगा, ऐसा दावा गॉर्डन चैंग ने किया है। इसे कुछ विश्लेषक समर्थन दे रहे हैं।

जिनपिंग की सत्ता का तख्ता पलटने में कामयाब हुआ चीन का दूसरा नेता ताइवान को लेकर आक्रामक निर्णय कर सकता है और अपना नेतृत्व स्थापित करने की कोशिश कर सकता है। यह बात विश्व के लिए घातक साबित हो सकती है क्योंकि, इससे युद्ध छिड़ने का खतरा बढ़ेगा, ऐसा इशारा विश्लेषक दे रहे हैं। जिनपिंग चीन में खास तौर पर उनके कम्युनिस्ट पार्टी के पोलिटब्युरो में अप्रिय थे। इसके पीछे उन्होंने ताइवान पर अपनाई भूमिका ही प्रमुख कारण बताया जा रहा है। ताइवान खुलेआम चीन को चुनौती दे रहा है और इसके लिए अमरीका ताइवान की सहायता कर रही है और ऐसे में राष्ट्राध्यक्ष जिनपिंग ने इसके खिलाफ आक्रामक भूमिका नहीं अपनाई है, ऐसी आपत्ति चीन में जतायी जा रही थी। इसके अलावा लद्दाख के एलएसी पर भारत के खिलाफ हुए संघर्ष में भी जिनपिंग चीन की प्रतिष्ठा संभालना नहीं पाए, ऐसी आपत्ती उन पर जतायी जा रही थी।

इस सबसे जिनपिंग की प्रतिमा को नुकसान पहुँचा और इस वजह से वे अधिक मुश्किल में घिर गए, ऐसे दावे किए जा रहे हैं। इसी वजह से उनका स्थान पानेवाला नया नेता चीन में आता है तो वह अधिक आक्रामक ही होगा, विश्लेषकों के इस दावे में बड़ा दम लग रहा है।

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