भारत की आपत्ति को ध्यान में रखते हुए ‘सीपीईसी’ का नाम बदलने को चीन राजी

नई दिल्ली: ‘चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर’ (सीपीईसी) प्रकल्प के बारे में भारत का आक्षेप ध्यान में रखकर इस प्रकल्प का नाम बदलने के संकेत चीन ने दिए हैं। चीन के भारत में स्थित राजदूत लुओ झाओहुई का यह प्रस्ताव चीन के विदेश मंत्रालय ने नहीं झुठलाया है। इसकी वजह से चीन इस प्रकल्प के बारे में समझौता करने के लिए तैयार होने के बात स्पष्ट हो रही है। भारत के सिवाय सीपीईसी सफल नहीं हो सकता, ऐसा विशेषज्ञों से पहले भी कहा गया है।

चीन राजी

पिछले हफ्ते में दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विद्यापीठ के एक कार्यक्रम में बोलते हुए चीन के राजदूत लुओ ने भारत की चिंता दूर करने के लिए चीन विकल्प मार्ग का विचार कर सकता है। तथा सीपीईसी नाम भी बदल सकता है, ऐसा कहा था। इस प्रकल्प की वजह से चीन की कश्मीर के बारे में भूमिका नहीं बदली है, ऐसा कहकर यह आर्थिक प्रकल्प है, ऐसा चीन बार बार कह रहा है। पर भारत ने इस पर ठोस भूमिका लेकर सीपीईसी पर आक्षेप कायम रखा है। अमरिका ने भी कुछ दिनों पहले सीपीईसी प्रकल्प कुछ देशों के सार्वभौमत्व को चुनौती देने वाली टिप्पणी की थी।

सीपीईसी प्रकल्प के द्वारा चीन पाकिस्तान में लगभग ५० अब्ज डॉलर्स से अधिक निवेश कर रहा है। इस निवेश का चीन को प्रतिफल मिलना अत्यंत कठिन होने की बात विश्लेषकों से कहीं जा रही है। पाकिस्तान की राजनीतिक एवं सामाजिक अस्थिरता यह सीपीईसी के सामने प्रमुख खतरा होने की वजह से अब चीनी विश्लेषक भी यही कह रहे हैं। पाकिस्तान की अस्थिरता से प्रकल्प पर परिणाम होने की टीका चीन ने हालही में की थी। इसकी वजह से पाकिस्तान को इस परिस्थिति में स्वयं चीन के कर्ज के चंगुल में फंसने की बात ध्यान में आ रही है।

पाकिस्तानी माध्यम एवं विश्लेषक चीन ने निगले हुए श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह का दाखिला देकर, चीन का निवेश पाकिस्तान को बहुत महंगी पड़ेगा, ऐसा इशारा दे रहे हैं। इसका परिणाम दिखाई देने की वजह से पाकिस्तान ने ‘डेमेर भाषा’ बांध के लिए चीन १४ अब्ज डॉलर्स का कर्ज ठुकराया है। तथा चीन विकसित कर रहे ग्वादर बंदरगाह पर उनके युवान चलन का व्यवहार करने की मांग को पाकिस्तान ने ठुकराया है। इसकी वजह से पाकिस्तान का सार्वभौमत्व खतरे में आया है, ऐसा पाकिस्तान का कहना है। अपने सार्वभौमत्व का एहसास पाकिस्तान को बहुत देरी से होकर यह देश चीन के चंगुल में फंसने की टीका विशेषज्ञों से किए जा रही है। ऐसी परिस्थिति में भारत को प्रकल्प में शामिल होने की मांग करके चीन द्वारा पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाने की बात दिखाई दे रही है।

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