नेताजी-१७५

नेताजी-१७५

१५ फ़रवरी १९४२ को सिंगापूर की पराजय होने के बाद, जर्मनी में घटित हो रहे धीमे घटनाक्रम की अपेक्षा अब महायुद्ध का पूर्वीय मोरचा सुभाषबाबू को अधिक महत्त्वपूर्ण प्रतीत हो रहा था। वैसे भी वे अपनी ‘ओर्लेन्दो मेझोता’ इस विद्यमान पहचान को त्यागकर सही पहचान ज़ाहिर करने के अवसर की ही तलाश में थे। ‘सिंगापूर […]

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परमहंस-११८

परमहंस-११८

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख सांसारिक इन्सानों के लिए रामकृष्णजी के उपदेश अत्यधिक सीधेसादे-सरल हुआ करते थे – ‘यह गृहस्थी भी उस ईश्‍वर ने ही उन्हें प्रदान की है, इस बात का एहसास सांसारिक लोग रखें और इस कारण विश्‍वस्तबुद्धि से (‘ट्रस्टीशिप’), लेकिन प्यार से गृहस्थी निभायें। अपने परिजनों के प्रति रहनेवाले अपने कर्तव्य प्रेमपूर्वक […]

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समय की करवट (भाग ७३) – क्रायसिस् आख़िरकार मिट तो गया, लेकिन….!

समय की करवट (भाग ७३) – क्रायसिस् आख़िरकार मिट तो गया, लेकिन….!

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

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नेताजी- १७४

नेताजी- १७४

मलाया के जंगल में अँग्रेज़ों की चौदहवी रेजिमेंट को जापानी सेना द्वारा गिऱफ़्तार किये जाने के बाद उस रेजिमेंट के मेजर मोहनसिंग आदि भारतीय सैनिकों के साथ, उनके ‘भारतीय’ रहने के कारण जापानी सैनिकों द्वारा मैत्रीपूर्ण सुलूक़ किया जा रहा था। वे भारतीय सैनिक ‘एशिया एशियाइयों को लिए’ इस जापान के ध्येय के लिए जापानी […]

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परमहंस-११७

परमहंस-११७

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख रामकृष्णजी के दौर में प्रायः भक्तिमार्गी समाज में होनेवाला प्रमुख विवाद था – निर्गुण निराकार ईश्‍वर सत्य है या सगुण साकार? इनमें से किसी भी एक संकल्पना को माननेवाले कई बार रामकृष्णजी के पास आते थे और रामकृष्णजी अपने तरी़के से, विभिन्न उदाहरण देकर उन्हें समझाते थे। ईश्‍वर मूलतः निर्गुण […]

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क्रान्तिगाथा-७४

क्रान्तिगाथा-७४

विदेशियों की गुलामी की ज़ंजीरों में जकड़ी अपनी मातृभूमि को आज़ाद करने के लिए उसके अनगिनत सपूत दिनरात तड़प रहे थे, दिनरात मेहनत कर रहे थे। भारत के किसी कोने के देहात में रहनेवाला कोई भारतीय हो या किसी शहर में रहनेवाला भारतीय, दोनों की परिस्थिति में चाहे कितना भी फर्क क्यों न हो, मग़र […]

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नेताजी-१७३

नेताजी-१७३

सुभाषबाबू यहाँ बर्लिन में ‘आज़ाद हिन्द सेना’ की भर्ती के लिए दिलोजान से कोशिशें कर रहे थे और वहाँ महायुद्ध के अतिपूर्वीय नये मोरचे पर मानो उनकी भावी कृतियोजना को फ़लित बनाने के लिए ज़मीन ही जोती जा रही थी! ७ दिसम्बर १९४१ को अमरीका के पर्ल हार्बर स्थित शक्तिशाली नौसेना अड्डे को जापान ने […]

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परमहंस-११६

परमहंस-११६

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख एक बार रामकृष्णजी से मिलने आये एक बैरागी से उन्होंने – ‘तुम कैसे भक्ति करते हो’ ऐसा पूछा। उसपर उसने – ‘मैं केवल नामस्मरण करता हूँ, क्योंकि हमारे शास्त्रों द्वारा कलियुग में ईश्‍वरप्राप्ति का वही प्रमुख साधन बताया गया है’ यह जवाब दिया। ‘सच कहा तुमने’ रामकृष्णजी ने कहा, ‘लेकिन […]

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समय की करवट (भाग ७२) – पकड़ने जाओ को काटता है, छोड़ दिया तो भाग जाता है

समय की करवट (भाग ७२) – पकड़ने जाओ को काटता है, छोड़ दिया तो भाग जाता है

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

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नेताजी-१७२

नेताजी-१७२

अ‍ॅनाबर्ग शिविर के भारतीय युद्धबन्दियों के दिल जीतकर, वहाँ की ‘आज़ाद हिन्द सेना’ भर्ती की प्रक्रिया शुरू करवाकर सुभाषबाबू सन्तोषपूर्वक बर्लिन लौट आये। २५ दिसम्बर को १५ लोगों की पहली टुकड़ी को सैनिक़ी प्रशिक्षण के लिए फ़्रॅंकेनबर्ग भेजा गया था। उन्हें क़सरत और युद्ध-अभ्यास के साथ ही, अत्याधुनिक शस्त्र-अस्त्रों को चलाना, आक्रमण एवं बचाव की […]

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