नेताजी-७०

नेताजी-७०

व्हाईसरॉय आयर्विन पर हुए हिंसक हमले का निषेध करनेवाले प्रस्ताव के पारित होने के बाद गाँधीजी फिर एक बार भाषण करने खड़े हो गये। अब गाँधीजी क्या कहनेवाले हैं? उपस्थितों की उत्सुकता चरमसीमा पर थी। उसके बाद गाँधीजी ने – ३१ दिसम्बर १९२९ की मध्यरात्रि को – स्वयं ही ‘सम्पूर्ण स्वराज्य’ का प्रस्ताव प्रस्तुत किया…. […]

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परमहंस- ११

परमहंस- ११

गदाधर का अध्यात्म की ओर, गूढता की ओर रूझान बढ़ता ही चला जा रहा था और वह अधिक से अधिक अंतर्मुख होने लगा था। उसका दिन का अधिकांश समय घर में ही या फिर गाँव के उसे प्रिय रहनेवाले स्थानों में व्यतीत होने लगा था। जब घर में रहता था, तब माँ का घर के […]

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क्रान्तिगाथा- २०

क्रान्तिगाथा- २०

अगस्त के अन्त में दिल्ली से पास रहनेवाले नज़फ़गढ़ में मिली जीत से अँग्रेज़ों का मनोबल का़फ़ी बढ़ गया था; वहीं इतने दिनों से अँग्रेज़मुक्त दिल्ली में रहनेवाली क्रान्तिकारियों की सेना को लगा हुआ यह पहला बड़ा झटका था। क्योंकि इस जंग में नीमच से आये हुए क्रान्तिकारी शहीद हो गये थे। अब दिल्ली को […]

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नेताजी- ६९

नेताजी- ६९

जतीन दासजी के शहीद होने से सुभाषबाबू के मन पर गहरा ज़ख्म हुआ। लेकिन भला समय किसके लिए रुका है? एक-एक दिन के पदन्यास से आगे बढ़ते हुए १९२९ का काँग्रेस का लाहोर अधिवेशन क़रीब आ रहा था। वैसे तो अधिवेशन था दिसम्बर में, लेकिन सुभाषबाबू का़फ़ी व्यस्त थे। उन्हें एक अलग ही मोरचे पर […]

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परमहंस- १०

परमहंस- १०

सात साल की उम्र में ही माथे पर से पिताजी का साया उठ चुके गदाधर का शरारतीपन थमकर वह अधिक ही अंतर्मुख हुआ था। उसे अब टकटकी भी बहुत बार लगने लगी थी और ऐसी टकटकी लगने के लिए – भगवान की कोई सुन्दर मूर्ति, यहाँ तक कि आसमान के बादल, पर्वत, बारिश, हरेभरे खेत, […]

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समय की करवट भाग १९- हम कब होंगे….क़ामयाब?

समय की करवट भाग १९- हम कब होंगे….क़ामयाब?

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। किसी देश के लिए, समाज के लिए ‘समय की करवट’ बदलने में, उस देश के लोग कितनी एकता की भावना से पेश आते हैं, इसका अहम हिस्सा होता है और यह बात केवल देश के लिए ही […]

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नेताजी- ६८

नेताजी- ६८

राजकीय कैदियों को जेल में मूलभूत सुविधाएँ तो दी जानीं चाहिए, इस उद्देश्य से लाहोर षड्यन्त्र के राजकीय कैदियों ने, ख़ास कर जतीन दासजी ने शुरू किये हुए अनशन ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचे रखा था। प्रसारमाध्यम भी सरकार की ही आलोचना कर रहे थे। सभाएँ, निदर्शन आदि के कारण सारा माहौल […]

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परमहंस- ९

परमहंस- ९

नन्हें गदाधर को कल हुआ क्या था, इसका अंदेशा किसी को भी, यहाँ तक कि गाँव के वैद्य को भी नहीं हो रहा था। अहम बात यह थी कि वह स्वयं जो कल की हक़ीक़त बयान कर रहा था, उसपर भी विश्‍वास रखने के लिए कोई तैयार नहीं था। ‘काले घने बादलों की पृष्ठभूमि पर […]

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क्रान्तिगाथा- १९

क्रान्तिगाथा- १९

दिल्ली! क्रान्तिकारियों के लिए दिल्ली जितनी अहमियत रखती थी, उतनी ही अँग्रेज़ों के लिए भी। अब दिल्ली के आसपास के छोटे बड़े इलाक़ों में से क्रान्तिवीर दिल्ली आने लगे। अपने शहर या गाँव की अँग्रेज़ हुकूमत का तख्ता पलट देने के बाद वहाँ के भारतीय सैनिक हाथ आये खज़ाने, शस्त्र-अस्त्रों को लेकर दिल्ली की ओर […]

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नेताजी- ६७

नेताजी- ६७

सन १९२८ का अन्तिम चरण और १९२९ यह पूरा वर्ष मशहूर हुआ, क्रान्तिकारी गतिविधियों के कारण। अप्रैल में दिल्ली की असेंब्ली में बम फ़ेकने के तथा अक्तूबर के साँडर्स वध के मामले में सरदार भगतसिंग, सुखदेव, राजगुरु और बटुकेश्‍वर दत्त इनके साथ ही सोलह क्रान्तिकारियों को गिऱफ़्तार किया गया। भगतसिंगजी ने अपने कार्य को क़बूल […]

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