नेताजी- १०३

नेताजी- १०३

हरिपुरा अधिवेशन में अपने प्रागतिक एवं क्रान्तिकारी विचारों से भरे अध्यक्षीय भाषण को समाप्त कर सुभाषबाबू जब अपने आसन पर विराजमान हुए, तब का़फी देर तक तालियों की कड़कड़ाहट को साथ जयघोष के नारे गूँज रहे थे। बूढ़ी माँ-जननी तृप्त दृष्टि से उन्हें निहार रही थीं। गाँधीजी भी कौतुक के साथ उन्हें देख रहे थे। […]

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परमहंस-४४

परमहंस-४४

‘तुम लोग नाहक समय जाया कर रहे हो। मेरी नियत पत्नी, जयरामबटी गाँव में रामचंद्र मुखोपाध्यायजी के घर में मेरी राह देख रही है….!’ इस रामकृष्णजी के कथन से घर में एक ही सनसनी मच गयी। ‘ये क्या यह ‘पागलों जैसी’ बातें कर रहा है? एक तो इसी के ऐसे बर्दाव के कारण इसे कोई […]

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समय की करवट (भाग ३६) – ‘बर्लिन वॉल’ : बर्लिनवासियों के मन में दरार

समय की करवट (भाग ३६) – ‘बर्लिन वॉल’ : बर्लिनवासियों के मन में दरार

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

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क्रान्तिगाथा- ३७

क्रान्तिगाथा- ३७

भारत को आज़ाद करने के लिए भारत में ही जब तेज़ी से कोशिशें शुरू हो गयी थीं, तब भारत के बाहर रहनेवाले भारतीयों का ख़ून भी अपनी मातृभूमि को स्वतन्त्रता दिलाने के लिए खौलने लगा था। २० वीं सदी के प्रारंभ में ही ये कोशिशें शुरू हो गयी और थोडे ही समय में उन कोशिशों […]

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नेताजी- १०२

नेताजी- १०२

सुभाषबाबू को अपने साथ लेकर शोभायात्रा हरिपुरा में बसायी गयी ‘विठ्ठलभाई पटेल नगरी’ में आ गयी। परिपाटी के अनुसार वहाँ पर ध्वजवन्दन का समारोह हुआ। उस समय भूतपूर्व अध्यक्ष जवाहरलालजी ने अध्यक्षपद के सूत्र सुभाषबाबू को सौंप दिये। उसके बाद सुभाषबाबू ने विश्राम किया। उस दिन देर रात तक रेल्वे द्वारा मुहैया कराये गये डिस्काऊंट […]

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परमहंस- ४३

परमहंस- ४३

गदाई हालाँकि घर वापस लौटा था और माँ की प्यारभरी देखरेख में उसकी तबियत हालाँकि सुधरने लगी थी, मग़र फ़िर भी उसकी मानसिक स्थिति में कुछ भी बदलाव आने के आसार दिखायी नहीं दे रहे थे। जब वह हररोज़ उठकर स्मशान में जाकर बैठता है, इस बात का माँ को पता चला, तब उसके सीने […]

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क्रान्तिगाथा- ३६

क्रान्तिगाथा- ३६

भारतीयों की इस भारतभूमि को अनेक सहस्रकों की भक्ति की परंपरा है और भारतीयों की वीरता इस भक्ति की बुनियाद पर ही खड़ी है। देश की स्वतन्त्रता के लिए की जानेवालीं कोशिशों में भारतीय समाज को भक्तिमार्ग का मार्गदर्शन करनेवाले अनेक श्रेष्ठ मार्गदर्शक प्राप्त हुए थे। बंगाल में १९वी सदी में ही रामकृष्ण परमहंस ने […]

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नेताजी-१०१

नेताजी-१०१

११ फरवरी १९३८ को सुभाषबाबू बाँबे मेल से हरिपुरा जाने निकले। सुभाषबाबू इस रेलगाड़ी में स़फर कर रहे हैं, यह ख़बर आगे फैल चुकी थी। अतः वे जहाँ भी जाते, वहाँ लोग अपने इस नवनिर्वाचित ‘राष्ट्रपति’ को देखने के लिए बड़े प्यार से इकट्ठा होते, मार्गदर्शन के तौर पर चार लब्ज़ बोलने का आग्रह उनसे […]

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परमहंस-४२

परमहंस-४२

कालीमाता के पहले दर्शन के बाद रामकृष्णजी हालाँकि आध्यात्मिक ऊँचाई की एक एक पायदान चढ़ते हुए नये मुक़ाम हासिल कर रहे थे, मग़र फिर भी इस धुन में वे अपनी तबियत को अनदेखा कर ही रहे थे। राणी राशमणि, मथुरबाबू तथा हृदय इन रामकृष्णजी के तीनों सुहृदों का दिल इस बात से पल पल टूट […]

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समय की करवट (भाग ३५) – ‘बर्लिन वॉल’ के निर्माण की शुरुआत

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

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