‘ब्रिक्स’ डॉलर और ‘स्विफ्ट’ के विकल्प पर काम कर रही है – रशियन राष्ट्राध्यक्ष व्लादिमीर पुतिन

मास्को – ब्रिक्स देश आरक्षित अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा और पेमेंट सिस्टम के विकल्प पर काम कर रहे हैं,  ऐसा ऐलान रशिया के राष्ट्राध्यक्ष व्लादिमीर पुतिन ने किया। यूक्रेन युद्ध के बाद अमरीका ने रशिया पर लगाए प्रतिबंधों के बावजूद रशिया के अन्य देशों के साथ कारोबार पर रोक लगाने में अमरीका को प्राप्त हुई असफलता पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित कर रही है। इसी वजह से भारत जैसे देश रशिया के साथ ईंधन एवं अन्य क्षेत्र में सहयोग ना करें, ऐसी माँग अमरीका कर रही है। ऐसी स्थिति में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के तौर पर अमरीका के डॉलर को विकल्प साबित होनेवाली आरक्षित मुद्रा पर ब्रिक्स के सदस्य देश काम कर रहे हैं, यह रशियन राष्ट्राध्यक्ष का ऐलान काफी बड़ी उथलपुथल कर सकता है।

भारत, रशिया, चीन, ब्राज़िल और दक्षिण कोरिया के ‘ब्रिक्स‘ की बैठक शुरू हो रही है। इस दौरान रशियन राष्ट्राध्यक्ष ने आरक्षित अंतरराष्ट्रीय मुद्रा यानी ग्लोबल रिज़र्व करन्सी और पेमेंट सिस्टम के विकल्प पर ब्रिक्स काम कर रही है, यह ऐलान किया। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बने अमरिकी डॉलर के विकल्प के तौर पर इस आरक्षित मुद्रा का इस्तेमाल हो सकता है। इसके लिए रशिया और चीन पिछले कुछ सालों से लगातार कोशिश कर रहे हैं। लेकिन, संगठन के स्तर पर ब्रिक्स भी इसकी कोशिश में होने का बयान करके रशिया के राष्ट्राध्यक्ष ने इसकी गंभीरता  बढ़ाई है।

अमरिका डॉलर का इस्तेमाल  प्रतिद्वंद्वि देशों के विरोध में हथियार की तरह कर रही है। यूक्रेन युद्ध के बाद रशिया के डॉलर से कारोबार करने पर रशिया ने सख्त प्रतिबंध लगाए थे। लेकिन,  रशिया ने अन्य देशों के साथ कारोबार करने में अपने रुबल और दूसरे देशों के चलन से कारोबार करके अमरिकी प्रतिबंधों को प्रत्युत्तर दिया। साथ ही अमरीका और पश्चिमी देशों के प्रभाव वाले अंतरराष्ट्रीय स्विफ्ट पेमेंट सिस्टम का विकल्प साबित होनेवाली ‘सिस्टम फॉर ट्रान्सफरऑफ फायनान्शियल मेसेजेस्‌’ (एसपीएफएस) नामक यंत्रणा का रशिया ने निर्माण किया है। ब्रिक्स देशों के बैंक ‘एसपीएफएस’ से आसानी से जुड़ सकते हैं, ऐसा प्रस्ताव रशियन राष्ट्राध्यक्ष ने दिया है।

अमरीका अन्य देशों को परेशान करने के लिए डॉलर का इस्तेमाल कर रही है, लेकिन, इस वजह से डॉलर कमज़ोर हुआ, ऐसा इशारा अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने दिया था। यह इशारा वास्तव में उतरने लगा है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डॉलर की अहमियत कम होने के संकेत प्राप्त हो रहे हैं। अमरिकी प्रतिबंधों को सामना कर रहे रशिया और ईरान जैसे देश विभिन्न मार्गों से अन्य देशों से कारोबार कर रहे हैं और चीन भी अमरिकी डॉलर को चुनौती देनेवाले कदम उठा रहा है। ऐसी स्थिति में अमरीका को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के तौर पर डॉलर का स्थान कायम रखना हो तो सबसे पहले डॉलर का आर्थिक और राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करना छोड़ना होगा, ऐसा इशारा मुद्राकोष एवं आर्थिक विशेषज्ञ दे रहे हैं। लेकिन, फिलहाल अमरीका इसके लिए तैयार ना होने की बात दिख रही है।

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