डॉ. अशोक कोलासकर

राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुणे विश्‍वविद्यालय के कुछ वैज्ञानिकों का सम्मानपूर्वक उल्लेख किया जाता है। पुणे महाविद्यालय के भूतपूर्व उपकुलगुरु डॉ. अशोक सदानंद कोलासकर का भी अंतरराष्ट्रीय स्तर के वैज्ञानिकों में विशेष तौर पर उल्लेख किया जाता है।

आज के समय के वैज्ञानिक भी उनके संशोधनकार्य के साथ साथ अन्य प्रशासनिक कार्यों में भी जुटे दिखाई देते हैं। अनेक संशोधक प्रकल्प की रूपरेखा बनाकर उन्हें प्रत्यक्ष रूप में कार्यान्वित करने के काम में, विभिन्न प्रतिवेदन करने के काम में, प्रशासकीय एवं शैक्षणिक उपक्रमों के बड़े-बड़े पदों की ज़िम्मेदारी संभालने के काम में भी वे व्यस्त रहते हैं। डॉ. कोलासकर के बारे में भी कुछ ऐसा ही कहा जा सकता है।

३ सितम्बर १९५० के दिन जन्मे डॉ. कोलासकर ने प्राथमिक शिक्षा के पश्‍चात् नागपुर महाविद्यालय से भौतिक, रसायनशास्त्र, गणित आदि विषयों में उपाधि प्राप्त की। १९७१ में एम.एस.सी. परीक्षा में वे प्रथम क्रमांक में उत्तीर्ण हुए। १९७६ में ‘कन्फर्मेशन ऑफ पेपटाईड्स अँड पॉलिपेपटाईड्स’ में बंगलुरु के ‘इंडियन इन्स्टिट्युट ऑफ सायन्स’ इस राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित संस्था द्वारा उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।

मोलेक्युलर बॉयोफिजिक्स अर्थात् जैविक विज्ञान के संदर्भ में होनेवाला कार्य यह उनके संशोधन का क्षेत्र था।

डॉ. कोलासकर का इस क्षेत्र का अर्थात् ‘बायो-टेक्नॉलॉजी’ इस विषय का संशोधन यह अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त संशोधन है। आज दुनिया को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में जैविक तकनीकी ज्ञान के संशोधन संबंधित जानकारी हासिल करने की आवश्यकता निर्माण हो गई है। पुणे विश्‍वविद्यालय के बायोटेक्नॉलॉजी विभाग में डॉ. कोलासकर का कार्यक्षेत्र उल्लेखनीय लक्षणीय है। इस बात का विवरण वहाँ पर दर्ज कर रखा गया है।

बायोइन्फॉर्मेटिक्स (Bioinformatics) क्षेत्र में २० वर्षों से भी अधिक समय तक एक संशोधन-कर्ता के रूप में अनुभवी डॉ. कोलासकर ने भारत के शैक्षणिक क्षेत्र को एक महत्त्वपूर्ण दिशा प्रदान की है। अनेक वर्षों तक उन्होंने पुणे विश्‍वविद्यालय में प्रोफेसर साथ ही वहाँ के बायोइन्फॉर्मेटिक्स सेंटर के संचालक के रूप में वहाँ का कार्यभार संभाला। डॉ. कोलासकर के कार्यक्षेत्र के दौरान पुणे विश्‍वविद्यालय के इस विभाग की नॅक नामक इस संस्था की ओर से जाँच की गई तथा इसे उच्च दर्जा दिया गया। इससे पहले के कुलगुरु, उप-कुलगुरु, प्रशासक एवं प्राध्यापक वर्ग आदि सभी का इसमें महत्त्वपूर्ण योगदान अवश्य है, परन्तु डॉ. कोलासकर के कार्यकाल के दौरान पुणे विश्‍वविद्यालय ने यह सम्मान प्राप्त किया यह भी उतना ही सत्य है। अर्थात् डॉ. कोलासकर मूलत: संशोधनकर्ता के साथ-साथ उत्तम प्रशासक भी हैं। जैविक तकनीक, जैविक जानकारी का तकनीकी ज्ञान जैसे विषयों का विशेष अभ्यास करके उस पर उन्होंने कुछ ग्रंथों का संपादन भी किया है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ प्रबंध पठन आदि भी प्रसिद्ध किया है एशिया, यूरोप, उत्तर अमरीका, दक्षिण अमरिका के कुछ देशों से मुलाकात कर विविध परिसंवादों में भी भाग लिया हैं। अनेक व्याख्यान भी उन्होंने दिये हैं। विज्ञान साथ ही उनके संशोधन का विषय यह छात्र समाज-अभिमुख बन सके इसी लिए होनेवाले उपक्रम में उनका सहभाग होता है।

एम. बी. ए. बायोटेक्नॉलॉजी, एम. एस. सी. बायोइन्फर्मेटिक्स, एम. टेक. एनर्जी स्टडीज्, अ‍ॅप्लाईड जिओग्राफिकल इन्फर्मेशन सिस्टिम इस विषय में बी. एस. सी. इन्फर्मेशन एवं नेटवर्क सिक्युरिटी डिप्लोमा इस प्रकार के नये शैक्षणिक कोर्सेस उन्होंने पुणे विश्‍वविद्यालय से ही आरंभ कर दिए। बायोइन्फर्मेटिक्स इस विषय से संबंधित संशोधन के लिए और भी अधिक गति प्राप्त करने के लिए १९८० के दौरान (DICs) डिस्ट्रिब्युटेड इन्फर्मेशन सेंटर का जाल ही पूरे भारत में फैला दिया।

अमरीका एवं भारत सहित उनके संशोधन के पेटंट को यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, जापान से भी मान्यता दी जा चुकी है। २००२ में ‘शिक्षारत्न’ नामक पुरस्कार भी उन्हें प्रदान किया गया। इंटरनॅशनल इन्स्टिट्यूट ऑफ इन्फर्मेशन टेक्नॉलॉजी नामक इस संस्था की ओर से भारत के ही तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम के हाथों बायोइन्फर्मेटिक्स क्षेत्र से संबंधित विशेष कामगिरी के प्रति उनका गौरव किया गया। मॅन ऑफ अ‍ॅचिव्हमेन्ट, ‘परम’ पुरस्कार विविध प्रकार के पारितोषिक पदक (मेडल) और सम्मानप्रद डॉक्टरेट की उपाधि उन्हें प्रदान की गई। महाराष्ट्र अ‍ॅकॅडमी ऑफ सायन्स, इंडियन नेशनल सायन्स अ‍ॅकॅडमी साथ ही नॅशनल अ‍ॅकॅडमी ऑफ सायन्स (अलाहाबाद) यहाँ के भी वे मान्यवर सदस्य हैं।

डॉ. कोलासकर की विशेष पहचान यह बायोइन्फॉर्मेटिक्स इस शाखा के वैज्ञानिक के रूप में सदैव बनी रहेगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published.