आल्बर्ट शेरबिअस

प्राचीन काल से ही मनुष्य के साथ-साथ धीरे-धीरे भाषा का भी विकास होने लगा। बोली भाषा, लिपि, शिलालेख, चिह्न या हावभाव के द्वारा अभिव्यक्त होनेवाली गूँगे-बहरों के लिए रहनेवाली भाषा, दृष्टिहीन लोगों के लिए स्पर्श की (ब्रेल) भाषा ऐसी अनेक प्रकार की भाषाएँ हमें पता हैं। किंतु युद्धभूमि के लिए और युद्ध लड़ने के लिए शत्रुसैन्य को पता न चलें, ऐसी सांकेतिक भाषा ज़रूरी होती है।

enigma- ‘आल्बर्ट शेरबिअस’

सांकेतिक भाषाओं का उपयोग करके गुप्त रखकर या सांकेतिक भाषा में संदेश का भेजा जाना और स्वीकार करना यह कोई नई बात नहीं है। इसवी सन के पूर्व से ही आज की जानकारी यांत्रिक ज्ञान के युग में भी गुप्त संदेश की लेन-देन (भेजना एवं स्वीकार करना) जारी है। यांत्रिक के विकास के कारण गुप्त संदेश का पता लगाने में अधिक समय नहीं लगता था। आजकल गुप्त संदेश बड़ी-बड़ी अविभाज्य संख्याओं की सहायता से तैयार किया जाता है।

इ.स. १९१८ वर्ष में मुख्य ‘एनिग्मा यंत्र’ ‘आल्बर्ट शेरबिअस’ नाम के संशोधक के द्वारा बनायी गयी यह मशीन प्लग बोर्ड, लाईट बोर्ड, की बोर्ड, रिफ्लेक्टर और रोटर के कुछ संच इन सबका समावेश करके बनाई गई थी। सांकेतिक भाषा का या गुप्त संदेश सामान्य भाषा में रूपांतरित करना एनिग्मा यंत्र की सहायता से करना संभव हो गया है। इस यंत्र में आल्बर्ट ने पहली बार ‘रोटर्स’ की सहायता से अक्षरों के अनगिनत कॉम्बिनेशन्स् बनाए। अपने इस यंत्र का जर्मन सेना को अच्छी तरह से उपयोग होगा ऐसा सोचकर शेरबिअस ने स्वयं का यह संशोधन जर्मन सेना को दे दिया। किन्तु जर्मन सेना के सेनाधिकारी ने शेरबिअस के यंत्र के बारे में ज़रा सी भी आस्था नहीं दिखाई। इसके बाद आल्बर्ट ने इस यंत्र का पेटंट ‘गेवेर्कशाफ्ट सेक्युरिटास’ कंपनी को बेचने का निश्‍चय किया। शेरबिअस के ढ़ाँचे के अनुसार १९२० के लगभग एनिग्मा के उत्पादन की शुरुआत हुई। सुधारित यंत्र में विद्युतप्रवाह की सहायता से सांकेतिक लिपि तैयार करने की सुविधा की गई थी। इसके कारण एनिग्मा अन्य यंत्रों की अपेक्षा क़ठीन और गुप्त संदेश तैयार कर सकता था। इस मशीन के संशोधकों को यह मशीन बड़ी कंपनियों को बेचने का उद्देश्य था। किन्तु १९३५ वर्ष में नाझी नौदल ने इस यंत्र का अधिकार खरीद लिया। नाझी नौसेना ने एनिग्मा का अधिकार लेने के बाद इस यंत्र की विक्री पर नियंत्रण लग गया। सिर्फ सेना के लिए ही इस यंत्र का उपयोग होने लगा। रेडिओ के द्वारा भेजे गए संदेश का पता लगाने के लिए जर्मन ङ्गौज़ में इस मशीन का बहुत अधिक उपयोग किया गया।

पहले विश्‍वयुद्ध के समाप्त होने के बाद जर्मन नौसेना ने पहली बार ही एनिग्मा का उपयोग किया। इस यंत्र की उपयोगिता के पहचानने के बाद जर्मन सेना ने इस यंत्र कोलेना शुरु किया। और इस यंत्र उन्होंने अपनी सुविधानुसार सुविधा किया। सितंबर १९३९ में जर्मनी ने पौलेंड पर हमला किया। एनिग्मा मशीन के द्वारा बनाई गई सांकेतिक लिपि का पता लगाने के काम में पुलिस शास्त्रज्ञ सफल हुए। इसमें यश मिलने के बाद पुलिस शास्त्रज्ञों ने ये यंत्र ब्रिटन को दे दिया। जर्मन सेना की सांकेतिक लिपि की खोज करने के लिए ब्रिटिशों ने ‘अल्ट्रा’ नामक एक गुप्त विभाग शुरु किया। युद्ध की शुरुआत होने पर अटलांटिक महासागर में जर्मनी की नौकाओं ने धूम मचा दी। ब्रिटिशों का काफी नुकसान होने लगा। माल लेकर जानेवाले जहाज समुद्र में डूबने लगे।

जर्मन पनडुब्बी U- ११० को ९ मई १९४१ के दिन समुद्र में जलसमाधि मिल गई। इसी के साथ ब्रिटन एके एच.एम.एस. ऑब्रेटिया विनाशिका ‘जर्मन जहाज’ का ताबा पाने में यशस्वी हो गया। इसी के साथ-साथ एनिग्मा मशीन पर भी ब्रिटिशों को अधिकार हो गया। मशीन के बारे में जानकारी वाले कागदपत्रक, पुस्तिकाएँ ब्रिटिशों के हाथ लग गई। इस सामग्री की सहायता से मशीन में कुछ परिवर्तन किया गया। परिवर्तित करके निर्माण किए गए उपकरण को आगे चलकर ‘बॉम्बा’ नाम दिया गया।
आज गुप्त संदेश का एक प्रगत शास्त्र विकसित हो गया है। गुप्त लेखन शास्त्र, ‘क्रिप्टॉलॉजी’ इस नाम से जाना जाता है। संगणक के द्वारा भी आज गुप्त संदेश भेजा जाता। गुप्तसंदेश को क्रिप्टोग्राफ कहा जाता है। महत्त्वपूर्ण राजकीय पत्र-व्यवहार, संदेश, वृतांत, आज्ञा इत्यादि जिस व्यक्ति के लिए होते हैं, उस व्यक्ति के अतिरिक्त अन्य किसी को भी मूल संदेश न समझे इसके लिए सांकेतिक या गुप्त शब्दों में या संख्या में किया गया रूपांतर यानी क्रिप्टालॉजी। सी.बी.आय., पुलिस, सेना यंत्रणा, बैकिंग, राजनीति, सुरक्षा संबंधित विभाग इन जैसे विविध क्षेत्रों में क्रिप्टालॉजी उपयोगी साबित हुआ है।

गुप्त लेखन में क्रिप्टो अ‍ॅनेलिसिस अर्थात संकेत का पृथक्करण करना महत्त्वपूर्ण है। दुश्मनों की संकेत लिपि को पहचानकर साधारण या ऊपर से निरर्थक समझे जानेवाले संदेश में से संकेत पूर्ण अर्थ पहचानना पड़ता है। सांकेतिक संदेश के लिए ऊपर से न दिखाई देनेवाली और उचित रासायनिक उपचार के द्वारा दिखाई देनेवाली पद्धति का कई बार उपयोग किया जाता है। अक्षर संकेत (सायफर) और शब्द संकेत (कोड्स्) इन दोनों का संयोग करके संदेश बनाने की पद्धति प्रचलित हुई है।
सभी देशों में प्राचीन काल से ही गुप्त लेखन का उपयोग अलग-अलग पद्धति से होता आया है। कौटिल्य का अर्थशास्त्र, वात्सायन का कामसूत्र और अर्थशास्त्र में गुप्तलेखन के निर्देश दिखाई देते हैं। संत रामदास ने शिवाजी महाराज के अफजल खान के आगमन का पद्य में भेजा संदेश, पेशवे शासनकाल के सांकेतिक लिपियों में भेजे गये कुछ संदेश ये गुप्तलेखन के ही उदाहरण हैं। औद्योगिक क्रांति के कारण व्यापार तेज़ी से बढ़ गया। तारा यंत्र का उपयोग शुरु हो गया, इसकी वजह से गुप्त लेखन की आवश्यकता बढ़ गई। गुप्त बातें कठिन बनाने के लिए गुप्त लेखन की आवश्यकता है। विश्‍व के सभी भागों में कृत्रिम ग्रहों के द्वारा संदेश-वहन की सुलभता होने के कारण गुप्तता रखने के लिए इस शास्त्र की आवश्यकता बढ़ गई है।

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