अफगानिस्तान के संदर्भ में सावधानीपूर्ण नीति अपनाने के अलावा और कोई चारा नहीं है – भारत के पूर्व राजनीतिक अधिकारियों का मशवरा

नई दिल्ली – अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत के संदर्भ में भारत ने ‘वेट अँड वॉच’ की नीति अपनाई है, ऐसा विदेश सचिव हर्ष वर्धन श्रिंगला ने कहा था। पूर्व राजनीतिक अधिकारी भी यही सिफारिश कर रहे हैं कि अफगानिस्तान के संदर्भ में भारत सावधानीपूर्ण नीति अपनाएँ। तालिबान के संदर्भ में अभी से कोई भी भूमिका अपनाना उचित नहीं होगा, तालिबान का प्रशासन देखकर ही फिर इस बारे में फैसला करना श्रेयस्कर होगा, ऐसा पूर्व राजनीतिक अधिकारियों का कहना है।

सावधानीपूर्ण नीतिपिछले कुछ दिनों से, भारत तालिबान की हुकूमत को मान्यता दें, इसके लिए तालिबान ने गतिविधियाँ शुरू कीं थीं। भारत इस क्षेत्र का बहुत ही महत्वपूर्ण देश है और तालिबान को भारत के साथ उत्तम संबंध रखने हैं, ऐसा तालिबान के नेताओं ने घोषित किया था। इतना ही नहीं, बल्कि तालिबान पाकिस्तान की इशारे पर नहीं नाचेगा, ऐसा आश्वासन तालिबान के नेताओं ने भारत को दिया। उसे भारत से प्रतिसाद मिल रहा है। लेकिन तालिबान को मान्यता देने के मोरचे पर जल्दबाज़ी नहीं की जाएगी, ऐसा भारत के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया था।

अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार कैसी होगी, इसकी रूपरेखा अभी भी स्पष्ट नहीं हुई है। तालिबान की सरकार कट्टरवादी होगी या यहाँ पर महिला और धार्मिक अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा की जाएगी, यह बताना मुश्किल बना है। क्योंकि तालिबान के नेता इस संदर्भ में परस्पर विरोधी घोषणाएँ और हरकतें कर रहे हैं। यह अफरा-तफरी का माहौल जारी रहते समय, किसी को भी तालिबान की हुकूमत के संदर्भ में स्पष्ट भूमिका लेना संभव ही नहीं है। लेकिन कुछ समय बाद तालिबान की भूमिका में उदार बदलाव आ सकता है, ऐसा दावा कुछ विश्लेषकों द्वारा किया जा रहा है। भारत के विदेश सचिव ने भी अपने अमरीका दौरे में, तालिबान से कुछ सकारात्मक संदेश मिल रहे हैं, ऐसा कहा था।

अफगानिस्तान में सर्वसमावेशक सरकार स्थापन करने का यकीन तालिबान ने दिलाया था। अपनी सरकार में सभी समाजगुट और अल्पसंख्यकों के भी प्रतिनिधि होंगे, ऐसा तालिबान का कहना था। लेकिन तालिबान के कुछ गुटों को यह बात मान्य नहीं है । इससे निर्माण हुई अनिश्चितता को मद्देनजर रखते हुए भारत ने सावधानीपूर्ण नीति अपनाई है। पूर्व राजनीतिक अधिकारी भी यही बता रहे हैं कि ऐसी सावधानीपूर्ण नीति अपनाने के अलावा भारत के सामने फिलहाल तो और कोई चारा नहीं है। तालिबान को मान्यता देकर बाद में उस पर पछतावा करने की बारी आ सकती है, यह अनुमान इस सावधानी बरतने के मशवरे के पीछे है।

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