विचारधारा का दायरा तोड़कर भारत आत्मविश्वास से भरी नीति अपनाएँ – विदेशमंत्री एस.जयशंकर

अहमदाबाद – ‘भारत विश्व की पांचवे स्थान की अर्थव्यवस्था बना है। इसलिए, जब अर्थव्यवस्था २०वें क्रमांक पर थी, तब की सोच वर्तमान दौर में नहीं चल सकती। उस दौर में जिस तरह  सोचने की आदत हमें थी, वैसा किए बिना भारत को आत्मविश्वास से आवश्यक निर्णय करने पडेंगे। देश के हित का विचार करते हुए सिर्फ हिंद महासागर क्षेत्र के बारे में सोचना पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि पैसिफिक महासागर के क्षेत्र का भी देश को विचार करना पडेगा’, इन स्पष्ट शब्दों में विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने देश की विदेश नीति का बदलाव रेखांकित किया। अहमदाबाद में आयोजित पुस्तक प्रकाशन समारोह में विदेशमंत्री ने यह बयान किया।

हिंद महासागर क्षेत्र तक सीमित विचार किया जाए तो इस क्षेत्र से हो रही ५० प्रतिशत से अधिक सामान की यातायात पैसिफिक महासागर में होती है। इस वजह से हिंद महासागर और पैसिफिक महासागर को विभाजित करनेवाली रेखा सिअर्फ नक्शे पर ही दिखाई देती है। वास्तव में यह समुद्री क्षेत्र एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। इसलिए भारत को पैसिफिक क्षेत्र के बारे में सोचना नहीं चाहिये, इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये, यह सोच वर्तमान दौर के अनुरूप नहीं है। साल १९५०-६० के दशक में भारत के पास सीमित स्रोत और साधन थे। तब सीमित सोच हमारी मज़बूरी थी। लेकिन वर्तमान दौर में वैसी स्थिति नहीं है। इसलिए पिछले दौर में सोचने की आदतें छोड़कर भारत को आत्मविश्वास से निर्णय लेकर अपने हितों को सर्वाधिक प्राथमिकता देनी ही पडेगी, ऐसा विदेशमंत्री जयशंकर ने ड़टकर कहा।

अमरीका के साथ बातचीत करें, चीन को ‘मैनेज’ करें, यूरोप के साथ ताल्लुकात विकसित करें, रशिया को आश्वस्त करें, जापान के साथ नज़दिकीयाँ बढ़ाएँ, भारत की नीति ऐसी होनी चाहिये। यह भारत के लिए ‘सबका साथ और सबका विश्वास’ साबित होगा, यह दावा जयशंकर ने इस दौरान किया। साथ ही विदेशमंत्री नीति के मुद्दे पर कहा कि, जनता का प्राप्त हो रहा प्रतिसाद भी काफी बड़ी अहमियत रखता है क्योंकि, देश की नीति एक दिशा में और जनता की विचारधारा दूसरी दिशा में होना अच्छा नहीं हो होता। बेहतर प्रशासन के लिए जनता का प्रतिसाद ज़रूरी होता है, ऐसा विदेशमंत्री ने कहा।

चीन की अर्थव्यवस्था भारत से चौगुनी से अधिक है। इसलिए भारत को चीन की प्रगति से उचित शिक्षा लेनी होगी। इसे नकारात्मकता से देखे बिना भारत सकारात्मक नज़रिया रखे, ऐसा जयशंकर ने सुझाया है। इसी बीच, ‘आईएनएस विक्रांत’ का नौसेना में समावेश करने के समारोह में बोलते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का ज़िक्र किया था। पूर्व दौर में भारत ने इस समुद्री क्षेत्र से उभरते खतरों को नजरअंदाज किया था। लेकिन, अब ऐसा नहीं होगा। भारत अपनी नौसेना की क्षमता बढ़ाकर इस क्षेत्र पर भी ध्यान केंद्रीत करेगा, ऐसी गवाही प्रधानमंत्री ने दी थी। विदेशमंत्री जयशंकर के बयान से भी यही संकेत प्राप्त हो रहे हैं।

हिंद महासागर से पैसिफिक महासागर तक के क्षेत्र में भारत का प्रभाव इस क्षेत्र में यातायात की स्वतंत्रता के लिए जरुरी होने के दावे किए जा रहे हैं। विकसित देश भी भारत से यही उम्मीद रखते हैं। तथा इस क्षेत्र पर वर्चस्व बनाएँ रखने की महत्वाकांक्षा रखनेवाला चीन जैसा देश यहां पर भारत के प्रभाव का विरोध कर रहा है। इस क्षेत्र में चीन की अनियंत्रित कार्रवाईयाँ वहां के व्यापार और यातायात की स्वतंत्रता के लिए खतरा बन रही हैं और ऐसे समय पर भारत पहल करके इस क्षेत्र में चीन के वर्चस्व को चुनौती दे, ऐसा पश्चिमी देशों का कहना हैं। सिर्फ अमरीका ही नहीं बल्कि, फ्रान्स और ब्रिटेन जैसे यूरोपिय देशों ने भी इसके लिए भारत से सहयोग बढ़ाया है।

यह देश इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपने हित सुरक्षित करने के लिए भारत से सहयोग बढ़ा रहे हैं। उनकी बातों में आकर भारत चीन जैसे पड़ोसी के संबध ना बिगाड़े, ऐसा कुछ विश्लेषक कह रहे हैं। लेकिन, चीन ने सीधे भारत के हितों की सुरक्षा को चुनौती देने की नीति अपनाने के बाद भारत के सामने चीन के खिलाफ अन्य देशों से सहयोग बढ़ाने के अलावा विकल्प नहीं रहा। इसके अलावा भारतीय अर्थव्यवस्था पांच ट्रिलियन डॉलर्स की ओर बढ़ रही है और ऐसी स्थिति में अपनी समुद्री यातायात की सुरक्षा एवं हितों की सुरक्षा के लिए भारत को हिंद महासागर क्षेत्र के अलावा पैसिफिक महासागर पर भी ध्यान देना पडेगा, इस पर कूटनीतिक एवं सामरिक विश्लेषक ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में भारत के प्रधानमंत्री और विदेशमंत्री इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के मुद्दे पर कर रहे बयान देश की बदलती हुई नीति के स्पष्ट संदेश दे रहे हैं।

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