परमहंस-१३२

श्यामापुकूर में अब रामकृष्णजी के रहने का तथा सेवाशुश्रुषा का प्रबंध अब सुचारू रूप से हो गया था और चूँकि शारदादेवी भी वहाँ रहने के लिए आयी थीं, परहेज़ के खाने की समस्या भी हल हो गयी थी।

लेकिन रामकृष्णजी की बीमारी सुधरने का नाम ही नहीं ले रही थी। पैसों का भी सवाल था। लेकिन गत कई वर्षों से रामकृष्णजी की सन्निधता में होनेवाले और रामकृष्णजी के दिव्यत्व को कई बार अनुभूत किये हुए और मुख्य बात, ‘कर्ता-करविता गुरु ही होते हैं और उनका सभी बातों पर नियंत्रण होता है’ इस बात का पूरी तरह यक़ीन हो चुके अनुभवी भक्तों को वैसे चिन्ता नहीं थी। हमें तो बस्स् सेवाशुश्रुषा में अपना सर्वस्व समर्पित करना है, बाक़ी की सारी अड़चनें रामकृष्ण ही दूर कर देंगे, यह उनका दृढ़ विश्‍वास था।

लेकिन नये से शामिल हुए शिष्यों की ऐसी बात नहीं थी। उनमें हालाँकि आध्यात्मिक रूझान था और उसके लिए रामकृष्णजी से मार्गदर्शन प्राप्त करने की तीव्र इच्छा थी, मग़र उनकी भूमिका अभी भी उपरोक्त पुराने शिष्यों की तरह पक्की नहीं हुई थी। इनमें से कइयों के घरों से, उनके रामकृष्णजी के पास आने के लिए विरोध था और वे कई बार घर में न बताते हुए ही चुपचाप रामकृष्णजी के पास आते थे। लेकिन ऐसी प्रतिकूल परिस्थिति में भी सेवा करने आने के लिए ऐसे भक्तों को प्रेरणा इन पुराने निष्ठावान् भक्तों से ही मिलती थी।

रामकृष्ण परमहंस, इतिहास, अतुलनिय भारत, आध्यात्मिक, भारत, रामकृष्णलेकिन जैसे जैसे दिन बढ़ते चले जाने लगे और बीमारी कम होने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे थे, वैसे वैसे इन नये से शामिल हुए शिष्यों को – रामकृष्णजी की बीमारी को लेकर, ईलाज़ के खर्चे को लेकर चिंता सताने लगी। इनमें से कई लोग छात्रदशा में ही थे और खुद के खर्चे के लिए भी अपने परिवारवालों पर निर्भर थे। इसलिए इस खर्चे में हाथ बटाना उनके लिए संभव नहीं था। लेकिन उनकी निष्ठा में किसी भी प्रकार की कमी नहीं थी। वे सेवाशुश्रुषा के रूप में अपना हाथ बटाते थे। इनमें से कइयों ने अपने दैनंदिन खर्चे में कटौती कर, पैसे बचाकर यहाँ खर्च किये थे। ज़ाहिर है, पारमार्थिक हेतु से की गयी इस सेवा का पारमार्थिक फल भी उन्हें प्राप्त हो रहा था। उनकी भी शिष्य की भूमिका धीरे धीरे उपरोक्त पुराने शिष्यों की तरह पक्की होती जा रही थी।

यहाँ तक कि, रामकृष्णजी का ईलाज़ करनेवाले डॉक्टर – डॉ. महेंद्रलाल सरकार भी उनकी ओर आध्यात्मिक दृष्टि से आकर्षित हो चुके थे। शुरू के कुछ दिन, बीमारी का निदान होने तक के समय में तो वे दिन में तीन-तीन बार आकर रामकृष्णजी की जाँच करते थे। साथ ही, समय समय पर रामकृष्णजी के स्वास्थ्य की प्रगति का ब्योरा उनके शिष्यों से सुनने के लिए उन्हें समय देते थे, वह अलग!

इस ईलाज़ के चलते होनेवाला – घर का किराया, परहेज़ का खाना, दवाइयाँ आदि खर्चा उठाना इन लोगों को भारी पड़ रहा है, यह देखते ही उन्होंने अपनी मेडिकल फ़ीज़् भी माफ़ कर दी थी।

दैनंदिन जाँच के बाद वे कई बार रामकृष्णजी के साथ आध्यात्मिक विषयों पर चर्चा करते बैठते थे। कभी कभी तो ये चर्चाएँ घण्टों तक चलती थीं। इन चर्चाओं के द्वारा ही डॉक्टर की भी मनोभूमिका पक्की होती जा रही थी और रामकृष्णजी की आध्यात्मिक ऊँचाई की पहचान उन्हें होने लगी। इस वैद्यकीय ईलाज़ के उपलक्ष्य में ऐसे महान व्यक्ति की सन्निधता मुझे प्राप्त हो रही है, इसका उन्हें एहसास होता गया।

एक बार, डॉक्टर जो ये सारी मेहनत कर रहे थे, उसके लिए जब रामकृष्णजी ने उनका दिल से शुक्रिया अदा किया, तब स्पष्टवक्ता होनेवाले डॉक्टर ने झट से कहा, ‘आपको क्या लगता है, यह मैं आपके लिए कर रहा हूँ। अरे नहीं….यह तो मैं अपने लिए ही कर रहा हूँ। आपकी सन्निधता में मुझे आनंद मिलता है, इसलिए मैं यह करता हूँ। आध्यात्मिक माने जानेवाले कई लोग मैंने देखे हैं, जो लोगों को सीख एक बात की देते हैं और खुद विपरित ही बर्ताव करते हैं। लेकिन आप ऐसे नहीं हो, इसका मुझे यक़ीन हो चुका है, इसलिए मैं बार बार यहाँ आना चाहता हूँ।’

ऐसे दो महीनें गुज़र गये; फिर भी बीमारी कम नहीं हो रही है यह देखकर डॉक्टर ने अब परहेज़ पर अधिक से अधिक ज़ोर देना शुरू किया। लेकिन अब उनका नाता केवल ‘डॉक्टर-पेशंट’ इतना ही नहीं रहा था। अतः कोई भी परहेज़ बताते हुए या दवाई बदलते हुए वे केवळ उसका प्रभावीपन ही नहीं देखते थे; बल्कि प्रभावीपन के साथ ही, ‘कहीं इससे रामकृष्णजी को पीड़ा तो नहीं होगी, या फिर कितनी पीड़ा होगी’ इसका भी अँदाज़ा वे लगाते थे और उसके बाद ही वह दवाई या वह परहेज़ वे बताते थे।

डॉ. सरकार दरअसल निर्गुण निराकार में विश्‍वास करते थे। रामकृष्णजी की आध्यात्मिक ऊँचाई के बारे में उन्हें हालाँकि एहसास था, फिर भी रामकृष्णजी के शिष्य उन्हें ‘अपना ईश्‍वर’ मानते हैं, यह बात उन्हें रास नहीं आती थी।

लेकिन इसी दौरान रामकृष्णजी की सन्निधता में घटित हुए कुछ वाक़यों से उनका मतपरिवर्तन होने की शुरुआत हुई थी….

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