अस्थिसंस्था (भाग-३)

boneहमारे शरीर की हड्डियाँ अथवा अस्थियाँ यानी क्या? ये किससे बनती हैं? इनकी बुद्धी कैसे होती है? इत्यादि देखेंगे। अपनी हड्डियाँ यानी क्या? यदि इसका उत्तर एक ही वाक्य में देखा हो तो यह कहा जा सकता है कि हड्डी एक ऐसा संघिनी पेशी समूह (Connective tissue) है जो  सजीव है, जिसमें रक्तवाहिनियों को भरपूर जाले हैं। जिससे रक्ताभिसरण उत्तम है, जिस में क्षारों का एक बड़ा भंड़ार है व जो सतत बदलता रहता है। यह ऐसा एक संघिनी समूह है यह पेशी समूह वैशिष्टता पूर्ण है। इसकी प्रमुख विशेषतायें इस प्रकार हैं –

१)कठोरता

२)किसी भी बाह्य शक्ते अथवा बल के विरोध में मजबूती से डटें रहना उसका योग्य प्रतिकार करना (resistence)

३)नयी पेशियों की पूर्ननिर्माण नये जोश के साथ करने की क्षमता। (Regenerative Capcity)।

४)गर्भावस्था से लेकर पूरी वृद्धी की उमर तक होनेवाली वैशिष्ट्यपूर्ण वृद्धि। अन्य किसी भी संघिनी पेशी समूह की तरह ही अस्थि में  भी अस्थि पेशी व अस्थिपेशी के चारो ओर का आवरण मैट्रिक्स ये दो प्रमुख चीजें होती हैं। इस मैट्रिक्स का लगभग ४० % भाग कोलॅजेन तंतु का बना होता हैं। शेष भाग मुख्यत: कॅलशियम व फॉस्फोरस नाम क्षारों का बना होता है। इसमें सभी जगहों पर रक्तवाहिनियाँ पहुँचती हैं। प्रत्येक हड्डी के ऊपर एक मोटा बाहरी आवरण होता है। इसे थेरिऑस्टियम कहते हैं। हड्डियों के अन्दर भी एक पतला आवरण होता है जिसे एंडऑस्टियम कहते हैं। इन दोनों आवरणों के बीचेबीच में ही सभी अस्थि पेशियाँ रहती है। हमारे शरीर की कुल कॅलशियम की मात्रा का लगभग ८८ % हिस्सा  हमारी हड्डियों में होता हैं। इससे पहले हमने देखा है कि हमारी लगभग सभी हड्डियाँ बाहर से कठोर तथा अन्दर से खोखली होती हैं। परन्तु इसी खोखले हिस्से में ट्रॅबॅक्युली होती हैं। अन्य रिक्त स्थानों पर अस्थिमज्जा (Bone marrow)होती है।

इससे हम यह समझ सकते हैं कि हमारी हड्डियों में भी दो प्रकार की अस्थियाँ होती हैं। ऊपरी कठोर भाग को लॅमेलर अस्थि तथा अंदरुनी हिस्से में मधुमक्खियों के जाले की तरह ट्रबॅक्युली अस्थी को ट्रॅबॅक्युलर अथवा कॅव्हनरस अथवा स्पँजी अस्थि कहा जाता है। हमारे शरीर की सभी लम्बी अस्थियों अर्थात हाथ-पैर की हड्डियाँ, एड़ी व अस्थि तलुओं, अंगुलियों की हड्डियाँ, पसुडियों में उपरोक्त प्रकार पाया जाता है।

हमने देखा कि हड्डी के लॅमेलर भाग अस्थि पेशिया होती है। इनके पाँच प्रकार हैं –

१)ऑस्टिओ प्रोजेनेटर पेशी – यह पेशी हड्डियों की अन्य पेशियों को जन्म देती हैं।
२)ऑस्टिओ ब्लास्ट पेशी – हड्डियों की रचना करनेवाली पेशी।
३)ऑस्टिओसाईट्स – हड्डियों की पेशी
४)हड्डियों के बाहरी भाग की पेशी (अंदर व बाहर दोनों की तरफ)
५)आरिस्टोक्लास्टस् – अस्थियों को खानेवाली अथावा कुतरनेवाली पेशियाँ

उपरोक्त में से प्रथम चार पेशियाँ एक-दूसरे से संबंधित हैं। परन्तु अंतिम ऑस्टिओक्लाइटस हड्डियों के बाहर से हड्डियों में आती हैं।

पहली ऑस्टिओ प्रोजेनेटर पेशी से ऑस्टिओबाल्स्ट पेशी का निर्माण होता है। ऑस्टिओब्लास्ट पेशी हड्डियों को विकसित करती है। हड्डियों की सभी प्रकार की मॅट्रीक्स का निर्माण करती हैं। साथ ही साथ शरीर की आवश्यकतानुसार ऑस्टिओब्लास्ट पेशीयों के कार्यों का विरोध करती है। अथवा उत्तेजन प्रदान करती है। अ‍ॅस्टिओक्लाइट्स नामक हड्डी की पेशी जिस मॅट्रिक्स में फैली रहती है वे पेशियों को ऑस्टिओब्लास्ट ही होती हैं। परन्तु ये ऐसी पेशियाँ होती है जिन्होंने हड्डियों के विकास का कार्य बंद कर दिया होता है। हड्डियों का सबसे बाह्य आवरण चौथे प्रकार की पेशियों का होता है जो लॅयेलर अस्थि के दोनों कि ……….? होती हैं। ये पेशियां भी ऑस्टिओबाल्स्ट पेशियों से हे बनती है। आवश्यकता पड़ने पर इन पेशियों का पुन: रुपांतरण ऑस्टिओबाल्स्ट पेशियों में हो जाता है। अंतिम ऑस्टिओबाल्स्ट पेशी जो शरीएर की अन्य पेशी समूहों से अस्थि में प्रवेश करती हैं, ये पेशियां हड्डियों को कुतरती है अर्थात हड्डियों में मैट्रीक्स कम कर देती हैं। मैट्रिक्स में उपस्थित कॅलशियम, फॉस्फेट इत्यादि कम कर देती हैं? अब तक हमने देखा कि अपनी हड्डियां क्या है और कैसे बनती हैं। अब अगले लेख में हम देखेंगे कि हड्डियों किस प्रकार तयार होती है? किस तरह बढ़ती हैं?

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