श्रीलंका का चीन के साथ मुक्त व्यापार करार दूर जाने के संकेत

कोलंबो / बीजिंग: श्रीलंका में इस हफ्ते के आखिर में स्थानीय स्वराज्य संस्था के चुनाव हो रहे हैं। जिसमें चीन के प्रभाव का मुद्दा अग्रणी पर होने के संकेत मिले हैं। इस पृष्ठभूमि पर श्रीलंका सरकार ने चीन के साथ होने वाला मुक्त व्यापार करार दूर पर धकेलने का प्रयत्न शुरू किया है। चीन में श्रीलंका के राजदूत ने इस बारे में विधान करने की बात सामने आई है। पिछले महीने में श्रीलंका एवं चीन के दौरान हंबनटोटा बंदरगाह में ९९ वर्ष का करा हुआ था।

पिछले दशकभर में चीन ने श्रीलंका में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए आक्रामक प्रयत्न शुरू किए हैं और ‘हंबंटोटा’ का करार, हवाई अड्डे का निर्माण, कोलंबो बंदरगाह, कैंडी, जाफना हाईवे के साथ देश के अन्य भागों में चीन की सहायता से शुरू होने वाले प्रकल्प उसके उदाहरण माने जाते हैं। श्रीलंका के भूतपूर्व राष्ट्राध्यक्ष महिंदा राजपक्षे ‘चीनी’ निवेश के समर्थक होकर, उनके कार्यकाल में चीन ने श्रीलंका में कदम रखने की बात सामने आई थी। पर राजपक्षे इनके पराजय के बाद श्रीलंका में परिस्थिति बदल रही है और चीन के हस्तक्षेप को बडे तादाद में विरोध हो रहा है।

श्रीलंका का अग्रणी व्यापारी साझेदार और मित्र देश होने वाले भारत ने भी चीन के इरादों पर आक्षेप लिया था। भारत के रक्षा मंत्री ने हाल ही में इस संदर्भ में विधान करते हुए, हंबनटोटा में चीन के कार्रवाई ऊपर प्रश्नचिन्ह उपस्थित किया था। अमेरिका ने भी श्रीलंका में चीनी गतिविधियों पर नाराजगी व्यक्त की थी और सतर्कता की सलाह दी थी। श्रीलंका में राजनीतिक तथा सामाजिक गटने भी चीन के बढ़ते प्रभाव पर चिंता व्यक्त करके, लगातार उसके विरोध में प्रदर्शन किए थे।

इस पृष्ठभूमि पर चीन में श्रीलंका राजदूत ने किया विधान ध्यान केंद्रित करने वाला है। ‘चीन के साथ व्यापारी क़रार की प्रक्रिया थोड़ी अधिक दूर जा सकती है, ऐसा श्रीलंका को लगता है। चीन को यह मामला गतिमान रूप से पूर्ण करने की जल्दी है। श्रीलंका छोटी वित्त व्यवस्था होकर हमें अनेक गटो का मत सुनना पड़ता है। इसकी वजह से इस प्रक्रिया को अधिक समय लग सकता है, पर हम चीन के करार पर हस्ताक्षर करेंगे ऐसा हमें यकीन है’, ऐसे शब्दों में श्रीलंकन राजदूत ने करुणासेना कोदीतूव्क्कू ने करार दूर जाने के संकेत दिए थे।

श्रीलंका के लिए चीन के साथ व्यापार महत्वपूर्ण होगा, तो कम समय में महत्वपूर्ण क्षेत्र खुले करने के लिए स्थानिय कंपनियों के लिए कठिन होगा। इसके वजह से हमें योग्य संतुलन साधना होगा, इन शब्दों में श्रीलंकन राजदूत ने करार दूर जाने के मुद्दे का समर्थन किया है। श्रीलंका ने इस करार को दूर रखने के लिए प्रयत्न शुरू किए हैं और स्थानीय स्तर पर होने वाली नाराजगी दूर करने की गतिविधियां का भाग माना जा रहा है।

श्रीलंका में १० फरवरी को स्थानीय स्वराज्य संस्था के चुनाव होकर उस में चीन के हस्तक्षेप का मुद्दा प्रमुख माना जा रहा है। इस पृष्ठभूमि पर सरकार के सामने दो नए बाधाएं है, इसलिए करार को समय लेने के संकेत दिए गए हैं ऐसा दावा सानिया विश्लेषकों ने किया है।

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