परमहंस – ४५

शादी हो जाने के बाद रामकृष्णजी लगभग डेढ़ साल कामारपुकूर में अपने घर रहे। उनकी पत्नी शारदामणि के चाचा गुस्सा होकर उसे मायके ले गये थे। उसकी स्वयं की ऐसी कोई तक़रार थी ही नहीं। इस कारण, उसके कुछ ही दिनों में रामकृष्णजी उसके घर जाकर, उनके ससुरजी को समझाबुझाकर, उसे पुनः वापस ले आये थे।

इस बीच वहाँ दक्षिणेश्‍वर कालीमंदिर में राणी राशमणि एवं मथुरबाबू के हालात रामकृष्णजी के बिना बहुत ही मुश्किल हुए थे। राशमणि को तो ऐसा लग रहा था कि मानो मंदिर में से चेतना ही चली गयी हो। इतना ही नहीं, बल्कि रामकृष्णजी के जाने से राशमणि को कालीमाता भी कुछ उदास-सी महसूस हो रही थी।

दक्षिणेश्‍वर कालीमंदिर

कुछ महीनों बाद जब उन दोनों से बिलकुल भी रहा नहीं गया, तब उन्होंने कामारपुकूर पत्र भेजकर रामकृष्णजी को पुनः दक्षिणेश्‍वर भेज देने की विनति की थी। लेकिन चूँकि चंद्रादेवी को रामकृष्णजी की चिन्ता हो रही थी और उनकी तबियत को पुनः पहले जैसी बनाने की उसने ठान ली थी; वे पुनः तंदुरुस्त हो गये हैं इसका यक़ीन हो जाने तक वह उन्हें पलभर के लिए भी अपनी नज़रों से ओझल नहीं होने देती थी।

लेकिन कुछ ही महीनों में रामकृष्णजी को ही दक्षिणेश्‍वर की, माताकाली की याद ज़ोर से सताने लगी। अब उनका मन कामारपुकूर में बिलकुल भी नहीं लग रहा था। माँ, पत्नी, भाई इनका विचार अब पीछे हटकर, उसका स्थान अब दक्षिणेश्‍वर मंदिर के विचारों ने ले लि।

आख़िरकार लगभग अठारह महीनों के कामारपुकूर के वास्तव्य के बाद, अपने परिजनों से बिदा लेकर रामकृष्णजी पुनः दक्षिणेश्‍वर मंदिर लौट आये।

दक्षिणेश्‍वर में पुनः उनका पहले का ही कार्यक्रम नये सिरे से शुरू हुआ। कालीमाता के नित्यपूजन की ज़िम्मेदारी हालाँकि पुनः नये सिरे से से उनपर सौंपी गयी थी, मग़र फिर भी उनकी पहले की अनोखी पूजनपद्धति में कुछ भी बदलाव नहीं हुआ था। वही माता के दर्शन की आर्तता उनकी हर एक गतिविधि में से, आचरण में से नज़र आ रही थी और पुनः उनकी वह ऐसी स्थिति, ‘पागलपन का लक्षण’ क़रार देकर अन्य लोग उनका मज़ाक उड़ा रहे थे।

राशमणि तथा मथुरबाबू को हालाँकि उनकी आध्यात्मिक ऊँचाई के बारे में कोई सन्देह नहीं था, मग़र फिर भी इन सब बातों का रामकृष्णजी की तबियत पर होनेवाला परिणाम उनकी चिन्ता बढ़ा रहा था। इस कारण, कम से कम उनकी तबियत का तो इलाज़ करें, उस हेतु से वे दोनों, उस ज़माने के मशहूर वैद, डॉक्टर आदि को रामकृष्ण की जाँच करने के लिए बुलाकर ले ही आ रहे थे; मग़र अ़फसोस! किसी को भी उनकी स्थिति का कारण समझ में नहीं आ रहा था, ना ही किसी की दवाई काम कर रही थी।

उनमें से केवल एक ने ही सारे लक्षण सुनने के बाद – ‘इनकी तबियत को कुछ भी नहीं हुआ है, इनके सिर पर प्रायः ईश्‍वरप्राप्ति का ज़ुनून सवार है और ईश्‍वरीय साक्षात्कार होने के लिए वे विभिन्न मार्गों से जो क्रियाकलाप कर रहे हैं, उसीके परिणामस्वरूप उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया है; अतः यहाँ पर दवाइयाँ अंशमात्र भी काम नहीं करेंगी’ ऐसा कहा।
‘इस एक ही आदमी ने मेरी उस समय की स्थिति का अचूकतापूर्वक निदान किया था’ ऐसा रामकृष्णजी ने आगे चलकर अपने शिष्यों के साथ किये वार्तालाप में, उन दिनों की स्थिति का वर्णन करते हुए कहा था।

नामचीन वैद, डॉक्टरों को भी सफलता नहीं मिल रही है, यह देखकर राशमणि की चिन्ता और भी बढ़ गयी थी। आख़िरकार उसने रामकृष्णजी के खयाल हेतु मथुरबाबू को कुछ दिन कालीमंदिरपरिसर में ही जाकर रहने के लिए कहा था। ताकि – यदि कुछ अनर्थ घटित हुआ, तो उसका फ़ौरन इलाज किया जा सके। असके अनुसार मथुरबाबू रामकृष्णजी के नज़दीक के ही एक कमरे में जाकर ठहरे थे।

लेकिन एक दिन एक अजीबोंग़रीब वाक़या घटित हुआ….

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