जॉन हंटर (१७२८-१७९३)

एक विलक्षण संशोधक के द्वारा निर्माण किया गया, इंग्लैंड शहर का आभूषण माना जानेवाला अल्स कोर्ट का चिड़ियाघर। इस संग्रहालय में थी चिड़ियों की चहचहाट, पक्षियों का झुंड़, चमगादड़ों की बसती, उल्लुओं का आना-जाना, दौड़ने-भागनेवाले शुतुरमुर्ग, बतख़ों की बॅक बॅक की आवाज़, रेशम के कीड़े, मधुमख्खियों के छत्ते, हिरन और कंगारुओं का झुंड़, सियार, भेड़िये और कुत्तों का संचार, अनगिनत भेड़-बकरियाँ, रेंगनेवाले साँप, पेट के बल चलनेवाले मगरमच्छ, गिरगिट, मदमस्त जंगली भैंसें, भैंसें, बैल, मदमस्त हाथी, घोड़ों की घुड़दौड़, हिंसक बाघ, चित्ते एवं शेर इनके अलावा और भी बहुत कुछ…….. इन सभी का संग्रह एक विक्षिप्त ध्येयासक्त व्यक्ति ने व्यक्तिगत रूप में ही किया था। जॉन हंटर के इस संग्रहालय में इस प्रकार के पशु-पक्षियों के विच्छेदित पिंजर एवं मानवी शरीर के अनेक अस्थिपंजर थे।

जॉन हंटरअठारहवी सदी के मध्यकाल में जर्मनी, फ्रान्स, इंग्लैंड के विश्‍वविद्यालयों में शल्यशास्त्रों के अध्यापकों की नियुक्ति आरंभ हो गई थी और ‘सर्जन’ के स्कालपेल की तेज़ धार को मान्यता प्राप्त होने लगी। सर्जरी की शृंखला में एक सर्वकालीन रत्न थे जॉन हंटर। जॉन हंटर के द्वारा शास्त्रीय तत्त्वों में सुसूत्रता लायी गयी। तत्त्वों को उदाहरण सहित सिद्ध करके दिखानेवाले शास्त्रशुद्ध बंधन के ही कारण सर्जरी एक शास्त्र बन गई।

स्कॉटलैंड के एक छोटीसी बसती में हंटर परिवार के दस बच्चों में सबसे छोटे हंटर थे। स्कूल के बंदिस्त माहौल की अपेक्षा बाहर के प्राकृतिक वातावरण में घुलमिल जाना उन्हें अधिक पसंद था। पिता के निधन के पश्‍चात् तेरहवें वर्ष ही उनकी पढ़ाई छूट गई। इसके पश्‍चात् कुछ वर्षों बाद उनकी पशुपक्षियों से नज़दिकियाँ बढ़ गयीं। इसी दौरान उनका भाई डॉक्टर बन गया। उसी वक्त शवविच्छेदन, निर्जीव रूप में हुआ करता था तथा विच्छेदन किए गए शरीरों का विशेषज्ञ लोग व्यक्तिगत रूप में संग्रहित किया करते थे। इन सभी सामग्रियों का उपयोग वे दूसरे लोगों को सिखाने के लिए अथवा स्वयं के अध्ययन के लिए करते थे। जॉन के हाथों में यह कला थी। फिर भी शरीररचना शास्त्र की पारंपारिक शिक्षा जॉन को हासिल करनी चाहिए, इसी कारण से उनके भाई ने अर्थात डॉ. विल्यम ने उन्हें शिक्षा प्रदान कर चिकित्सालय में सीखने के लिए भेज दिया। मनुष्य की खोपड़ी के नीचले हिस्से में होनेवाले अनेक छिद्रों में से मस्तिष्क की ओर से चेहरे की ओर जानेवाली नसों का विच्छेदन जॉन ने कौशल्यपूर्वक किया और अनेक नसों के मार्गों के बारे में उन्हें ज्ञात हुआ। अभी भी इंग्लैंड के संग्रहालय में जतन करके रखा गया यह सब कुछ हम देख सकते हैं।

जॉन हंटरअपनी शिक्षा पूर्ण करने के पश्‍चात् उन्होंने मानवीय् ही नहीं बल्कि विविध प्रकार के जानवरों एवं जलचरों से संबंधित अध्ययन भी उन्होंने किया। विच्छेदन प्रक्रिया के माध्यम से शरीरशास्त्र की जानकारी (comparative anatomy) अधिक से अधिक स्पष्ट होने लगी है। इसी दौरान जॉन को निमोनिया हो गया। निमोनिया से ठीक होने के पश्‍चात् जॉन ने अचानक ही फौज में भर्ती होने का निश्‍चय कर लिया। कुछ महीनों तक युद्ध में घायल हुए सैनिकों का इलाज करते-करते बंदूक की गोली से होनेवाले जख्मों का, रक्तप्रवाह का एवं घाव लगने के कारण होनेवाले इंफेक्शन तथा जख्मों के कारण आनेवाली सूजन आदि का निरीक्षण जॉन ने किया। इसी निरीक्षण के ही आधार पर जॉन ने अपना प्रबंध प्रस्तुत किया। जॉन की जहाँ पर नियुक्ति हुई वह स्थान समुद्री सतह से १३० फीट की ऊँचाई पर होनेवाला बेलस्ते नामक रम्य टापू था। वृक्षों से समृद्ध होनेवाले इस प्रदेश में पुष्प, पर्ण, जानवर, संस्कृति एवं समुद्र सब कुछ अद्भुत था। इस खज़ाने के अध्ययन एवं संग्रह से जॉन को एक अनोखी दिशा प्राप्त हुई।

१७६३ में पेरिश में शांति करार किया गया। जॉन इंग्लैड में लौट आये और इस संपूर्ण खजाने का उपयोग करके उन्होंने एक संग्रहालय की निर्मिति की। हंटर के इस संग्रहालय में (हंटेरियन म्युझियम) रहने वाले १४,००० अस्थिपंजरों में ५०० से अधिक पंजर पशु-पक्षियों के हैं। इतनी अधिक संख्या में अध्ययन का भंड़ार रखनेवाले जॉन को एक विलक्षण व्यक्तित्व कहना यह अतिशयोक्ति नहीं होगी।

सर्जरी के अनेक विषयों में उन्होंने मूलभूत संशोधन किया। मानवी दाँत एवं दंतवैद्यक से संबंधित महत्त्वपूर्ण संशोधन भी उन्होंने किया। गुप्तरोगों से संबंधित जंतुओं (Venereal diseases) की खोज करते समय तो उन्होंने इस रोग से पीड़ित एक व्यक्ति को टिका लगाकर वही दूषित टिका स्वयं को भी लगाकर विभिन्न प्रकार की यातनाएँ भी सही। घुटने के पिछले खाँचे से जानेवाली पॉप्लिटिअल रक्तवाहिनी के रक्तस्राव को रोकने के बारे में उन्होंने संशोधन किया। प्राणियों की जनन संस्था से संबंधित सिद्धांत, पक्षियों के पंखों की रचना, उद्गम, देवमछली के अंतरंग की खोज इस प्रकार की अनेक बातें जॉन ने ढूँढ़ निकालीं। अनेक अस्तंगत हो चुके प्राणियों के अश्मस्थ अवशेषों का भी अध्ययन उन्होंने किया था।

१७६४ में जॉन हंटर ने अपना अनॉटॉमी स्कूल आरंभ किया। १७६७ में रॉयल सोसायटी की फेलोशिप उन्हें प्राप्त हुई। १७६७ में ‘नॅशनल हिस्टरी ऑफ ह्युमन टुथ’ नामक पुस्तक उन्होंने प्रसिद्ध की। इसके पश्‍चात् डेंटल पॅथॉलॉजी से संबंधित एक पुस्तक भी उन्होंने प्रसिद्ध की। १७८६ में ब्रिटिश आर्मी में एक सर्जन के रूप में वहीं १७८९ में सर्जन जनरल पद पर जॉन हंटर की नियुक्ति हुई। वे स्पष्टवक्ता थे और साथ ही एक उत्तम शिक्षक के रूप में भी उनकी ख्याति थी। विल्यम के कहेनुसार ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी से जॉन ने यदि अपनी अगली शिक्षा पूरी की होती तो शायद सर्जरी, मेडिसीन, विज्ञान आदि क्षेत्रों में उनकी प्रगति और भी अधिक हुई होती। बेंजामिन बेल, एडवर्ड जेन्नर के समान छात्र भी जॉन के देखरेख में तैयार हुए। १६ अक्तूबर १७७३ के दिन सेंट जॉर्ज चिकित्सालय में संचालक मंडल की मिटींग में हुए वादविवाद के पश्‍चात् जॉन हंटर का हृदयविकार के कारण निधन हो गया। ‘सर्जरी क्षेत्र के आद्यपुरुष’ यह विशेषण उनकी मजार पर अंकित किया गया है।

हंटर के निधन से लगभग १०० वर्ष पश्‍चात् उनके जीवनी पर आधारित एक कथानायक का जन्म हुआ। १४ पुस्तकों के कथासंग्रहों का सेट बनाकर ‘डॉ. जॉन डू लिटल’ नामक एक प्रसिद्ध फिल्म की भी निर्मिति की गई। ऐसे ये विलक्षण स्कॉटिश सर्जन डॉ. जॉन हंटर लोगों के मानसपटल पर चिरंतन काल तक बने रहे।

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