भारत के साथ चर्चा के मुद्दे पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का नया यू-टर्न

पाकिस्तान के प्रधानमंत्रीइस्लामाबाद – कश्मीर को विशेष दर्जा देनेवाली धारा-३७० पुनः लागू किए बगैर भारत से चर्चा संभव नहीं, ऐसा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इम्रान खान ने घोषित किया। उनकी यह घोषणा यानी एक और यू-टर्न लेकर की लीपापोती होने का दावा पाकिस्तान के माध्यम कर रहे हैं। दो दिन पहले विदेश मंत्री शाह महमूद कुरेशी ने, धारा-३७० यह भारत का अंतर्गत मामला है, ऐसा कहा था। उसके बाद पाकिस्तान में कोहराम मचा और इम्रान खान की सरकार ने, भारत के साथ कश्मीर का सौदा किया होने के आरोप भी शुरू हुए। इसके बाद विदेश मंत्री कुरेशी और प्रधानमंत्री इम्रान खान को उसपर लीपापोती करनी पड़ी।

पाकिस्तान के लष्करप्रमुख जनरल बाजवा और प्रधानमंत्री इम्रान खान सऊदी अरब के दौरे पर गए थे। इस दौरे का विवरण सार्वजनिक नहीं हुआ है। लेकिन सऊदी अरब ने भारत की ओर से कश्मीर मसले पर सुलह करने का प्रस्ताव पाकिस्तान को दिया होने की चर्चा इस देश के माध्यमों में चल रही है। प्रधानमंत्री और लष्कर प्रमुख ने यह बात मान्य की। साथ ही, कश्मीर का मसला पीछे छोड़कर भारत के साथ सहयोग करने के लिए लष्करप्रमुख बाजवा और प्रधानमंत्री इम्रान खान तैयार हुए हैं, ऐसा पाकिस्तान के कुछ पत्रकार छाती ठोककर कह रहे हैं। उसी में विदेश मंत्री कुरेशी ने, धारा-३७० यह भारत का अंदरूनी मामला है, ऐसा बताकर पाकिस्तान में सभी को झटका दिया था।

एक न्यूज़ चैनल को दिए इंटरव्यू में कुरेशी ने किए ये बयान पाकिस्तान में विवादास्पद साबित हुए। इसका अर्थ यह होता है कि पाकिस्तान की सरकार ने कश्मीर का मुद्दा छोड़ दिया, ऐसा बताकर पाकिस्तानी माध्यमों ने उस पर हो-हल्ला मचाया। भारत और पाकिस्तान के बीच अघोषित तौर पर चर्चा जारी होने की खबरें आ रहीं हैं। ये चर्चाएँ सार्वजनिक रूप में क्यों नहीं कीं जातीं, ऐसा सवाल कुछ विश्लेषक पूछ रहे हैं। भारत के साथ कश्मीर की नियंत्रण रेखा पर संघर्षबंदी हुई, इसके अलावा इस अघोषित चर्चा से पाकिस्तान को क्या मिला? क्या भारत धारा-३७० पुनः लागू करने के लिए तैयार हुआ? ऐसे तीखे सवालों का सामना पाकिस्तान की सरकार को करना पड़ रहा है।

लेकिन अगर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और लष्करप्रमुख ने सऊदी अरब में जाकर कश्मीर के मसले पर समझौता किया होगा, तो उसके पीछे उनकी मजबूरी है। क्योंकि फिलहाल जब अर्थव्यवस्था रसातल में पहुँची है, अंतर्गत चुनौतियाँ तीव्र हुईं हैं, तब पाकिस्तान को अपने अस्तित्व के लिए ही संघर्ष करना पड़ रहा है। चीन समेत सभी देश पाकिस्तान पर नाराज़ हैं। ऐसी स्थिति में, भारत के साथ समझौता करके चर्चा शुरू किए बगैर पाकिस्तान को भविष्य हो ही नहीं सकता, इसका एहसास पाकिस्तान के लष्कर को भी हुआ है। इसी कारण भारत के साथ चर्चा का प्रस्ताव पाकिस्तानी लष्कर द्वारा अपनी सरकार को दिया जा रहा है।

पाकिस्तान ने भारत से चीनी और रुई की खरीद करने की तैयारी की थी। उसे पाकिस्तान के लष्कर का भी समर्थन था। इस प्रकार सहयोग बढ़ाते रहने की योजना इसके पीछे थी। लेकिन प्रधानमंत्री इम्रान खान ने इस संदर्भ में फैसला करते समय अपने सहकर्मियों को अंधेरे में रखा। इस कारण मंत्रिमंडल की बैठक में इस प्रस्ताव को कड़ा विरोध हुआ। उसके बाद मजबूर हुए इम्रान खान को भी यह फैसला ख़ारिज करना पड़ा। इससे पहले, धारा-३७० लागू किए बगैर भारत के साथ चर्चा संभव ना होने का किया हुआ दावा प्रधानमंत्री इम्रान खान पर ही बूमरैंग हो रहा है। इस कारण भारत के साथ सहयोग स्थापित करने की उन्हें जरूरत अथवा इच्छा होगी भी, तो भी वे वैसा फैसला नहीं कर सकते।

इसी कारणवश इम्रान खान की भारत के संदर्भ में नीति ढुलमुल बनी है। क्योंकि अगर कश्मीर का मसला पीछे छोड़कर भारत के साथ चर्चा की, तो उन्होंने ही पहले किए बयानों का हवाला देकर उनकी चारों ओर से आलोचना होगी, ऐसी चिंता इम्रान खान को लग रही है। उसी समय, भारत-पाकिस्तान संबंधों का यह मामला बहुत ही गलत तरीके से हैंडल करने के कारण पाकिस्तान का लष्कर भी इम्रान खान पर नाराज़ है। इसी कारण इम्रान खान को फिर से अपनी मूल भूमिका की ओर मुड़ना पड़ा और उन्होंने फिर एक बार धारा-३७० लागू करने की माँग पर पाकिस्तान अड़िग होने की घोषणा की। लेकिन वे इस घोषणा पर भी काफी समय तक अड़िग नहीं रह सकेंगे, दरअसल वैसा करना पाकिस्तान को महँगा पड़ेगा, ऐसी चेतावनी इस देश के जिम्मेदार विश्लेषक दे रहे हैं।

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