प्रकल्प रद करके म्यानमार ने चीन को दिया झटका

नई दिल्ली – चीन ने दिए कर्ज़ के शिकंजे में फंसे श्रीलंका और पाकिस्तान से सबक सीखकर म्यानमार ने ‘चायना म्यानमार इकॉनॉमिक कॉरिडोर’ (सीएमईसी) प्रकल्प से पीछे हटना शुरू किया है। ‘सीएमईसी’ प्रकल्प चीन की ‘बेल्ट ऐण्ड रोड़ इनिशिएटिव’ (बीआरआय) का अहम अंग समझा जाता है। इसी कारण ‘सीएमईसी’ से म्यानमार का पीछे हटना चीन के लिए बड़ा झटका समझा जा रहा है। चीन पर अब भरोसा नहीं रहने से म्यानमार ने यह निर्णय किया है, ऐसा कहा जा रहा है।

Myanmar-china-OBR‘सीएमईसी’ के तहत चीन १०० अरब डॉलर्स का निवेश करने की तैयारी में था। इसके ज़रिए चीन और म्यानमार व्यापार के नज़रिए से एक-दूसरे से जुड़े थे। इसके अलावा इसी प्रकल्प के तहत चीन को अपने कायफुकू बंदरगाह का विकास करने का ज़िम्मा सौंपने की तैयारी म्यानमार ने दिखाई थी। इस बंदरगाह के ज़रिए चीन को बंगाल की खाड़ी में अपनी गतिविधियां बढ़ाना आसानी से संभव हुआ होता। लेकिन, श्रीलंका और पाकिस्तान से सबक सीखकर म्यानमार ने चीन के इस निवेश पर पुनर्विचार कर रहा है, यह दावा भी कुछ माध्यम कर रहे हैं।

जून महीने में म्यानमार में ऑडिट किया गया। इस दौरान चीन के प्रकल्पों में पारदर्शिता दिखाई नहीं दे रही है, इस बात पर ‘ऑडिटर जनरल’ ने म्यानमार सरकार का ध्यान आकर्षित किया था। साथ ही म्यानमार पर लगा चीनी कर्ज़ का फंदा अधिक कसता जाने की चिंता भी म्यानमार के ‘ऑडिटर जनरल’ ने व्यक्त की। चीन के कर्ज़ का भुगतान करना संभव ना होने से श्रीलंका को अपना हंबंटोटा बंदरगाह चीन के हवाले करना पड़ा था। इसी तरह चीन के कर्ज़ के शिकंजे में फंसे पाकिस्तान ने भी अपना ग्वादर बंदरगाह चीन के हवाले करने की बात दिखाई दे रही है। यही संकट अपने सामने खड़ा ना हो, इसलिए म्यानमार ने ‘सीएमईसी’ से पीछे हटने की तैयारी दिख रही है।

Myanmar-china-OBR‘सीएमईसी’ के तहत चीन ने म्यानमार में ३८ प्रकल्पों का निर्माण करने को अनुमति प्रदान की है और अन्य प्रकल्पों पर विचार करने के लिए म्यानमार की सरकार ने समिति गठित की है। साथ ही चीनी कंपनियों को इन प्रकल्पों का काम देने के बज़ाए विदेशी कंपनियों को म्यानमार में आमंत्रित करेंगे, ऐसा म्यानमार ने कहा है। म्यानमार ने ‘न्यू यांगून सिटी प्रोजेक्ट’ से पहले ही कदम पीछे हटाया है। इस प्रकल्प का कान्ट्रैक्ट एक चीनी कंपनी को प्रदान हुआ था। लेकिन, अब अरबों डॉलर्स के इस प्रकल्प के लिए विदेशी कंपनियों को आमंत्रित किया जा रहा है, यह बात भी म्यानमार ने स्पष्ट की। साथ ही म्यानमार ने कायफुकू जल परियोजना में चीन का निवेश ७.५ अरब डॉलर्स से १.३३ डॉलर्स तक कम किया गया है।

इसी बीच, म्यानमार ने चीन के साथ हो रहा प्रकल्प रद करने से भारत को अवसर प्राप्त होने की चर्चा हुई। भारतीय निवेशक म्यानमार में निवेश करने के लिए तैयार होने की बात प्रसिद्ध हुई थी। इसके अलावा भारत के ‘ऐक्ट इस्ट नीति’ के तहत म्यानमार को अहम स्थान दिया गया है। चीन की ‘शिकारी अर्थनीति’ और ‘लष्करी दबंग की नीति’ से स्वयं को बचाने के लिए आग्नेय एशियाई देश भारत के साथ सभी स्तरों पर सहयोग बढ़ा रहे हैं। म्यानमार भी इसी दिशा में आगे बढ़ने के संकेत प्राप्त हो रहे हैं।

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