हंबंटोटा का भारत के खिलाफ़ उपयोग नहीं होने देंगे- श्रीलंका के प्रधानमंत्री का आश्वासन

कोलंबो: कोई दूसरा देश श्रीलंका के हंबंटोटा बंदरगाह का लष्करी अड्डे के तौर पर उपयोग नहीं कर सकता, यह आश्वासन श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने दिया है। रानिल विक्रमसिंघे से चीन को हंबंटोटा बंदरगाह के विकास का कॉन्ट्रैक्ट मिलने पर भारत ने उस पर आक्षेप लेकर, उससे अपनी सुरक्षा को खतरा होने की बात कह कर श्रीलंका को आगाह किया था। इस पृष्ठभूमि पर भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने श्रीलंका के दौरे पर होते समय, श्रीलंका के प्रधानमंत्री हंबंटोटा के बारे में भारत को आश्वस्त करते दिखाई दिए।

हंबंटोटा

गुरुवार के दिन श्रीलंका के कोलंबो में आयोजित किए ‘हिंद महासागर परिषद’ में बोलते समय भारत के विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भारत ‘हिंद महासागर’ क्षेत्र में सुरक्षा विषयक चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार होने की बात कही है। साथ ही इस क्षेत्र में शांति, स्थिरता और सुरक्षा की जिम्मेदारी इस क्षेत्र के निकटतम देशों की है, यह कहते विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने श्रीलंका अपनी भूमि इस्तेमाल भारत के विरोध में न होने दें, इसके संकेत दिए हैं।

विदेश मंत्री स्वराज ने स्पष्ट उल्लेख नहीं किया पर चीन भारत के विरोध में कर रहे व्यूहरचना को श्रीलंका सहायता न दे, यह बात उन्होंने राजनीतिक परिभाषा में कहते हुए श्रीलंका को आगाह किया है। चीन से ‘हिंद महासागर क्षेत्र’ में विकसित होनेवाले हंबंटोटा बंदरगाह के साथ अन्य परियोजनाओं के बारे में भारत की चिंता एवं आक्षेप विदेश मंत्री ने अपने भाषण से व्यक्त किया है। इस पृष्ठभूमि पर श्रीलंका के प्रधानमंत्री ने हिंद महासागर परिषद के इस सत्र में रहते हुए भारत को हंबंटोटा बंदरगाह से लगी चिंता दूर करने का प्रयत्न किया है।

श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना के कार्यकाल में श्रीलंका किसी भी देश के लश्करी गतिविधियों में सहयोग नहीं देगी। साथ ही किसी भी देश को अपने तल का उपयोग लष्करी अड्डों के तौर पर नहीं करने देगी, यह आश्वासन श्रीलंका के प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे ने दिए है। श्रीलंका अपने बंदरगाह के विकास के लिए बाहरी निवेशकारों के साथ काम कर रहा है पर इस बंदरगाह और हवाई अड्डे पर होनेवाली लष्करी गतिविधियों का अधिकार केवल श्रीलंकन सुरक्षादलों के पास ही रहेंगा ऐसा विक्रमसिंघे ने स्पष्ट किया है।

दौरान विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने शुक्रवार के दिन श्रीलंका के राष्ट्रपति सिरिसेना मुलाकात की। उस समय दोनों नेताओं में हुई द्विपक्षीय चर्चा में हंबंटोटा बंदरगाह, मछुआरों की समस्या के साथ विविध विषयों पर चर्चा हुई ऐसा वृत्त है। साथ ही भारत एवं श्रीलंका के बीच संयुक्त परियोजनाओ पर भी चर्चा होने की बात कही जा रही है। श्रीलंका की मैत्रीपाला सिरिसेना सरकार के पीछे भारत हमेशा समर्थन में रहेगा, ऐसा आश्वासन भी विदेश मंत्री स्वराज ने दिया है। स्वराज ने श्रीलंका के विदेश मंत्री तिलक मारापाना से भी मुलाकात की है।

श्रीलंका ने हंबंटोटा बंदरगाह ९९ साल के लिए चीन को किराये पर दिया है। पूर्व सरकार ने चीन से लिए कर्जे में फसने के बाद, हमें यह प्रिय निर्णय लेना पड़ा ऐसा स्पष्टीकरण राष्ट्रपति सिरिसेना एवं प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे की सरकार ने दिया है।

पर यह बंदरगाह भले ही चीन के पास सौंप दिए हो पर उसका चीन सामरिक उपयोग नहीं कर सकता एवं चीन के युद्ध नौका और पनडुब्बी यहां तैनात नहीं होंगे ऐसा श्रीलंका की सरकार से लगातार कहां जा रहा है। यह बात चीन को अस्थिर करने वाली होकर, भारत श्रीलंका पर दबाव डालते हुए अपनी बात मनाने के लिए विवश करने की टीका चीन से की जा रही है। चीन के अभ्यासक श्रीलंका के साथ अन्य दक्षिण आशियाई देशों पर भारत अपनी जबरदस्ती करने का आरोप कर रहे हैं। पर श्रीलंका का कर्जे के चंगुल में फंसने के बाद हंबंटोटा बंदरगाह का ९९ सालों का कब्जा लेने वाले चीन का अन्य छोटे देशों को डर महसूस होने लगा है।

चीन का निवेश एवं कर्जा स्वीकारना किसी देश को कितना महंगा पड़ सकता है, यह हंबंटोटा एक उत्तम उदाहरण है, जिस पर विशेषज्ञ ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। फिलहाल, चीन पाकिस्तान में ‘ग्वादर बंदरगाह’ एवं ‘सीपीईसी’ परियोजना विकसित कर रहा हैं, जिसमें क्या पाकिस्तान की भी अवस्था श्रीलंका के हंबंटोटा जैसी ही होगी? ऐसा प्रश्न पाकिस्तान के सुज्ञ विश्लेषक पूछ रहे हैं। कुछ लोग पाकिस्तान के आगे यही भविष्य होने की आशंका जता रहे हैं।

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