भारत और रशिया के विदेश मंत्रियों में द्विपक्षीय चर्चा

नई दिल्ली – रशिया चीन के साथ विशेष लष्करी सहयोग स्थापित नहीं करेगा, ऐसा बताकर रशिया के विदेश मंत्री सर्जेई लॅव्हरोव्ह ने, इस संदर्भ में जारी हुई खबरें ख़ारिज कीं। उसी समय, रशिया और चीन के विरोध में बन रहे एशियाई मोरचे के बारे में अथवा नाटो की पूर्वीय ओर की संभावनाओं के बारे में भी मैंने सुना है, ऐसा मार्मिक बयान रशियन विदेश मंत्री ने किया। इस संदर्भ में भारत के विदेश मंत्री जयशंकर के साथ अपनी चर्चा होने की बात विदेश मंत्री लॅव्हरोव्ह ने स्पष्ट की। वहीं, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सामने खड़ी हो रहीं नईं चुनौतियों को मद्देनज़र रखते हुए, उन्हें मात देने के लिए देशों को नए और अलग मार्ग से सहयोग करना पड़ेगा, यह भारत की भूमिका मैंने विदेश मंत्री लॅव्हरोव्ह के सामने रखी है, ऐसा सूचक बयान जयशंकर ने किया है।

लद्दाख की एलएसी पर भारत और चीन में बने तनाव के बाद, भारत का अमरीका के साथ सभी स्तरों पर सहयोग अधिक ही दृढ़ बनता चला जा रहा है। उसी समय, अमरीका और नाटो देशों के विरोध में चीन से सहयोग प्राप्त करना रशिया के लिए आवश्यक बना है। इसका भारत और रशिया के द्विपक्षीय संबंधों पर अनिवार्य असर दिखाई देने लगा है। ऐसी स्थिति में रशियन विदेश मंत्री के भारत दौरे की ओर केवल दोनों देशों के ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के माध्यमों का ध्यान आकर्षित हुआ है। भारत के विदेश मंत्री जयशंकर और रशिया के विदेश मंत्री लॅव्हरोव्ह के बीच मंगलवार को द्विपक्षीय चर्चा संपन्न हुई। चर्चा में परमाणु, अंतरिक्ष और रक्षा इन क्षेत्रों में सहयोग, अफगानिस्तान और म्यानमार की परिस्थिति इनका समावेश था। बदलते अन्तर्राष्ट्रीय हालातों में भारत और रशिया के सहयोग को असाधारण महत्व होकर, यह सहयोग अधिक ही दृढ़ करने पर अपनी सहमति हुई, ऐसा लॅव्हरोव्ह और जयशंकर ने स्पष्ट किया।

भारत और रशिया के लष्करी सहयोग की तरह ही, रशिया चीन के साथ लष्करी सहयोग विकसित करनेवाला होने के दावे विदेश मंत्री लॅव्हरोव्ह ने नकारे। उसी समय, लद्दाख की एलएसी पर भारत और चीन में बने तनाव का हवाला देकर, यहाँ के हालातों पर रशिया बहुत ही सावधानी से गौर कर रहा है, ऐसा लॅव्हरोव्ह ने स्पष्ट किया। उसी समय, भारत और चीन ये जिम्मेदार देश प्रगल्भता दिखाकर, सामोपचार से सीमाविवाद का हल निकालेंगे, ऐसी हमें उम्मीद है, ऐसा रशियन विदेश मंत्री ने स्पष्ट किया।

रशिया और चीन के लष्करी सहयोग की खबरें नकारते समय, एशियाई नाटो अथवा पूर्वीय नाटो में, यानी क्वाड संगठन में सहभागी होकर, भारत रशिया के हितसंबंधों को झटका दे रहा है, इसपर लॅव्हरोव्ह ने गौर फरमाने की कोशिश की। लेकिन इसका ठेंठ उल्लेख करना रशियन विदेश मंत्री ने टाला। इस मामले में अपनी विदेश मंत्री जयशंकर के साथ चर्चा हुई है, ऐसा लॅव्हरोव्ह ने आगे कहा। वहीं, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के बारे में भारत की भूमिका मैंने रशियन विदेश मंत्री के पास स्पष्ट की होने की जानकारी जयशंकर ने दी। शांग्री-ला परिषद में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के संदर्भ में भारत का दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से रखा था, इसकी याद जयशंकर ने करा दी।

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में खड़ी हो रहीं नईं चुनौतियों को मात देने के लिए, देशों के नए और अलग प्रकार के सहयोग की आवश्यकता है, ऐसा भारत के प्रधानमंत्री ने कहा था। उस दिशा में भारत आगे बढ़ रहा है, ऐसा विदेश मंत्री जयशंकर ने स्पष्ट किया। भारत और रशिया के विदेशमंत्रियों ने यह बात मान्य की है कि इंडो-पैसिफिक तथा क्वाड के संदर्भ में दोनों देशों के दृष्टिकोण एक-दूसरे से भिन्न हैं। उसी समय, भारत और रशिया के सहयोग पर इसका असर ना हों, इसके लिए आवश्यक एहतियात बरतने की दोनों देशों की तैयारी है, यह विदेश मंत्री जयशंकर और विदेश मंत्री लॅव्हरोव्ह की संयुक्त पत्रकार परिषद में स्पष्ट हुआ।

इसी बीच, इस साल के अंत में रशिया के राष्ट्राध्यक्ष व्लादिमिर पुतिन भारत के दौरे पर आनेवाले हैं। दोनों देशों के बीच होने वाली वार्षिक द्विपक्षीय चर्चा में राष्ट्राध्यक्ष पुतिन सहभागी होंगे। इसकी पूर्व तैयारी करने के लिए विदेश मंत्री लॅव्हरोव्ह भारत दौरे पर आए थे। इस दौरे में लॅव्हरोव्ह ने, भारत के ‘मेक इन इंडिया’ उपक्रम के तहत रशियन रक्षासामग्री का भारत में निर्माण करने की तैयारी दर्शाई। साथ ही, रशिया भारत को अत्याधुनिक तंत्रज्ञान का हस्तांतरण करनेवाला देश है, इसकी भी याद लॅव्हरोव्ह ने करा दी। इसी के साथ, परमाणु और अंतरिक्ष क्षेत्र में दोनों देश सहयोग विकसित करनेवाले हैं, ऐसा भी लॅव्हरोव्ह ने कहा। उसी प्रकार, अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया पर और म्यानमार के हालातों पर भी दोनों नेताओं की विस्तृत चर्चा संपन्न हुई।

लेकिन अमरीका के साथ का भारत का सहयोग और क्वाड में भारत का सहभाग और रशिया का चीन के साथ विकसित हो रहा लष्करी सहयोग, ये दोनों देशों के मित्रतापूर्ण संबंधों के सामने खड़ी बहुत बड़ी चुनौतियाँ हैं, ऐसा सामने आ रहा है। पारंपरिक मित्र देश होनेवाले भारत और रशिया, इन चुनौतियों का सामना करके अपना द्विपक्षीय सहयोग मजबूत करेंगे, ऐसा विश्वास भी विदेश मंत्री जयशंकर और विदेश मंत्री लॅव्हरोव्ह की चर्चा द्वारा व्यक्त किया गया है।

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