व्हेर्नर वॉन ब्राऊन (१९१२-१९७७)

द्वितीय महायुद्ध के अंतिम चरण में भी जर्मनी ने कुछ स्थानों पर आश्‍चर्यकारक घटनाएँ घटित करके शत्रुसेना को चकित करने का प्रयास किया था। वह दौर जर्मन फौज के लिए सहायक एवं शत्रुसेना के लिए क्रंदन काल साबित हुआ था।

Wernher-von-braun- व्हेर्नर वॉन ब्राऊन

‘वी-२ ’ ये अत्यानुधिक रॉकेट्स यही इस बात का कारण था। इसी ‘वी-२ ’ रॉकेट्स के जनक ने आनेवाले समय में अमेरिका के प्रथम प्रक्षेपित किए जानेवाले चाँद मुहिम रॉकेट को बनाने में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। संहार एवं नवनिर्माण इस प्रकार के दोनों कारणों से अपनी बुद्धिमत्ता का उपयोग करके तकनीकी ज्ञान विकसित करनेवाले संशोधक थे, आधुनिक रॉकेट के जनक माने जाने वाले ‘व्हेर्नर वॉन ब्राऊन’।

‘आधुनिक रॉकेट के जनक’ इस प्रकार का नामकरण सुनकर स्वाभाविक है कि हमें आश्‍चर्य लगे। परन्तु रॉकेट का इतिहास देखें तो इस बात के प्रति हमें आश्‍चर्य नहीं होगा। रॉकेट की मूल संकल्पना इ.स.पूर्व ३०००  में पहली बार अभिव्यक्त हुई एवं वह भी चीन जैसे देश के द्वारा की गयी, ऐसा माना जाता है। एशिया की कुछ प्राचीन संस्कृति के विविध ग्रंथों में भालों एवं तीरों में रॉकेट के बाँधे जाने का उल्लेख मिलता है।

इ.स. के तेरहवी सदी तक रॉकेट्स भारत, अरबस्तान और इसके पश्‍चात् यूरोप तक पहुँचने का उल्लेख मिलता है। रॉकेट का उपयोग मुख्य तौर पर फौज के कार्य हेतु किया जाता था। इसके पश्‍चात् अठारहवी सदी में भारत के कुछ राजाओं ने विदेशी सत्ता के विरुद्ध हुई लड़ाई में रॉकेट्स का उपयोग सफलतापूर्वक  करने का उल्लेख किया गया। इसके पश्‍चात् पश्‍चिमी जगत में आधुनिक रॉकेट विज्ञान में महत्त्वपूर्ण कारीगिरी करने में व्हेर्नर ब्राऊन का नाम अग्रगण्य है।

व्हेर्नर ब्राऊन का जन्म २३ मार्च १९१२ को उस व़क्त की जर्मनी के विरसिट्झ प्रांत में हुआ था। कुछ वर्षों पश्‍चात् कुछ आपसी कारणों से विरसिट्झ का पोलंड में समावेश हो गयाऔर ब्राऊन परिवार ने जर्मनी के बर्लिन शहर में स्थलांतर कर लिया। व्हेर्नर ब्राऊन आरंभिक समय में शिक्षा के क्षेत्र में बस यथायोग्य ही थे। साधारणत: आठ से दस वर्ष की अवस्था में उन्हें उनकी माँ ने एक टेलिस्कोप लाकर दिया था। इस टेलिस्कोप में से घंटों देर तक अंतरिक्ष का निरीक्षण करते रहनेवाले व्हेर्नर के मन में कालांतर में खगोलशास्त्र एवं अंतरिक्ष संबंधित जानकारी हासिल करने की इच्छा निर्माण हो गई।

उम्र के बारहवें वर्ष ही व्हॅलियर एवं ओपेल इन खोजकर्ताओं के कार्य से प्रेरित होकर व्हेर्नर ने एक अनोखा प्रयोग किया। अपने घर में होने वाली खिलौने की गाड़ी को दस से बारह छोटे रॉकेट्स बाँध दिए और उसे जला दिया। यह प्रयोग यशस्वी साबित हुआ। गाड़ी द्रुतगति के साथ दौड़ तो पड़ी, परन्तु इस का अंदाजा न होने के कारण पुलिस ने बारह वर्षीय व्हेर्नर को कैद कर लिया। ऐन मौके पर पिता के आ पहुँचने से व्हेर्नर को छोड़ दिया गया।

स्कूली जीवन में एक बार व्हेर्नर ने एक विज्ञान विषय से संबंधित मासिक में ‘द रॉकेट टू द इंटर प्लेनेटरी स्पेसेस’ नामक पुस्तक का विज्ञापन देखा। पुस्तक पढ़कर मैं इंजिनीयर बन सकता हूँ, साथ ही रॉकेट्स भी बना सकता हूँ। इसी भ्रम में व्हेर्नर ने उस पुस्तक को मँगवाकर पढ़ना आरंभ कर दिया। परन्तु उनमें होनेवाली आकृतियाँ, सिद्धांत एवं अगम्य भाषा से गड़बड़ाये व्हेर्नर अपने कक्षा अध्यापक के पास दौड़ पड़े। उनके कक्षा शिक्षक ने उन्हें समझाकर यह कहा कि, ‘यदि तुम यह सब सीखना चाहते हो तो तुम्हें गणित एवं भौतिकशास्त्र इन विषयों का गहराई से अध्ययन करना होगा।’ रॉकेट बनाने की धुन में रहनेवाले व्हेर्नर के दिल को शिक्षक की बात छू गई। तब तक पढ़ाई की ओर विशेष ध्यान न देने वाले व्हेर्नर ने उपाधि प्राप्त कर बर्लिन की ‘टेकनिकल यूनिव्हर्सिटी’ में ‘एटोस्पेस इंजिनीयरिंग’ इस विषय के अध्ययन हेतु प्रवेश प्राप्त कर लिया।

उस समय में द्वितीय महायुद्ध के काले बादल यूरोप पर मंडराने लगे थे। केवल अंतरिक्ष संशोधन हेतु रॉकेट तकनीकी ज्ञान के अध्ययन हेतु निधि व्यर्थ गवाने के लिए कोई भी तैयार नहीं था। इसीलिए मजबूर होकर व्हेर्नर को जर्मन लश्कर के कुमर्सडॉर्फ यहाँ के रॉकेट संशोधन प्रकल्प में सहभागी होना पड़ा। जर्मन फौज उस समय युद्ध में हवाईदल के लिए उपयोगी साबित होंगे इसी प्रकार के रॉकेट्स तैयार करने की कोशिश में लगे हुए थे। जर्मनी के तात्कालीन हुकुमशाह एडॉल्फ हिटलर ने शत्रुराष्ट्र का नामोनिशान मिटाने हेतु ‘ए-४’ रॉकेट्स का विशेष प्रकल्प शुरू किया था।’

‘ए-४’ के विकास में घिरे व्हेर्नर ने अत्याधुनिक ‘वी-२’ रॉकेट का निर्माण करने में सफलता प्राप्त की। ‘वी-२’ यह उस समय में सर्वाधिक विकसित एवं जटिल तकनीकी ज्ञान पर आधारित होनेवाला रॉकेट साबित हुआ। ‘वेनगेआन्स’(बदला) इस शब्द के आधार पर इसका नाम ‘वी-२’ रखा गया। जर्मन लश्कर में समाविष्ट किए गए ‘वी-२’ इस रॉकेट ने द्वितीय महायुद्ध के अंतिम चरण में इन दोस्त राष्ट्रों के सेना में भले ही कुछ समय के लिए क्यों न हो परन्तु भय उत्पन्न करने में सफलता प्राप्त की थी।

‘वी-२’ के निर्मिति पश्‍चात् व्हेर्नर ब्राऊन अपने सारे सहकर्मियों के साथ अमेरिका की ओर प्रस्थान करने में सफल हुए। शुरु के समय में ब्राऊन एवं उनके सहयोगियों के कार्य पर अमेरिका सरकार ने कुछ खास ध्यान नहीं दिया। परन्तु १९५७  के अक्तूबर महीने में रशिया का ‘स्पुटनिक’ नामक पहला उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़ते ही अमेरिका हड़बड़ा उठी। अमेरिकन सरकार ने तत्काल ही एक विधेयक द्वारा ‘नेशनल एरॉनॉटिक्स एण्ड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन’ (नासा) इस संस्था की स्थापना की।

नासा की अंतरिक्ष मुहिम के रॉकेट प्रकल्प पर व्हेर्नर ब्राऊन का चुनाव किया गया। अगले चौदह वर्षों तक व्हेर्नर ब्राऊन ने अमेरिका की अंतरिक्ष मुहिम में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। अमेरिका की ओर से अंतरिक्ष में जानेवाला प्रथम उपग्रह ‘एक्सप्लोरर-१’ बनाने का सारा श्रेय व्हेर्नर ब्राऊन एवं उनके सहकर्मियों को जाता है। अमेरिका के प्रथम अंतरिक्ष वीर – एलन शेफर्ड  को अंतरिक्ष में भेजने के पीछे भी व्हेर्नर ब्राऊन का ही हाथ था। केवल अमेरिका ही नहीं बल्कि भारत जैसे देश के अंतरिक्ष कार्यक्रमों में भी व्हेर्नर ब्राऊन ने मार्गदर्शन किया और भारत के सभी तकनिकी ज्ञान का विकास करने में भी इनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।

आज की तारीख में अंतरिक्ष विज्ञान नये-नये पड़ावों को पार करता हुआ आगे बढ़ता ही चला जा रहा है। चाँद ही नहीं बल्कि सूर्यमाला के प्रत्येक ग्रह पर पहुँचने के लिए विविध देशों की भाग-दौड़ चल रही है। ऐसे समय में संहारक शस्त्रों के निर्मिति से अपने कार्य का शुभारंभ करनेवाले एवं इसके पश्‍चात् अपना संपूर्ण जीवन अंतरिक्ष विज्ञान जैसे विधायक क्षेत्र में झोक देने वाले व्हेर्नर ब्राऊन की गणना आधुनिक युग के शिल्पकार के रूप में करने में कोई हर्ज नहीं।

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