सेमीकंडक्टर क्षेत्र की असफलता के बाद चीन की वरिष्ठ अधिकारियों पर कार्रवाई

बीजिंग/वॉशिंग्टन – विश्व में सेमीकंडक्टर क्षेत्र का प्रमुख देश बनने का चीन का सपना टूटा। लगभग १० साल की कोशिश और १०० अब डॉलर्स के निवेश के बाद चीन को उम्मीद के अनुसार सफलता नहीं मिली है। इस वजह से चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग और शासक कम्युनिस्ट हुकूमत में तीव्र नाराज़गी हुई है और इस असफलता को छुपाने के लिए इस क्षेत्र की कंपनियों और वरिष्ठ अधिकारियों पर कार्रवाई करने का कदम उठाया गया है। इस क्षेत्र के तीन प्रमुख उद्यमियों और अधिकारियों की फिलहाल भ्रष्टाचार के मामलों में जाँच हो रही है, ऐसी वृत्त ‘ब्लूमबर्ग’ ने जारी किया है। साथ ही अमरीका ने सेमीकंडक्टर क्षेत्र में वर्चस्व बरकरार रखने के लिए पारित किए ‘चिप्स ऐक्ट’ के खिलाफ चीन ने आग बरसाना शुरू किया है।

पिछले साल एक समारोह के दौरान इंटरनेट क्षेत्र की प्रमुख चीनी कंपनी अलिबाबा ने ‘यितियन ७१०’ नामक चिप पेश की थी। यह चिप ‘क्लाऊड कॉम्प्युटिंग’ के लिए उपयुक्त होगी, ऐसा कंपनी ने कहा था। अलिबाबा के अलावा अन्य प्रमुख कंपनियों को भी चीन की कम्युनिस्ट हुकूमत ने सेमीकंडक्टर क्षेत्र में निवेश के लिए मज़बूर किया था। इनमें टेन्सेन्ट, बायडू और शाओमी जैसी कंपनियों का समावेश है। लेकिन, चीन की शासक हुकूमत की यह सभी कोशिशें असफल होने की जानकारी सामने आ रही है।

चीन की इन कोशिशों के पीछे वैश्विक स्तर पर महासत्ता होने की महत्वाकांक्षा और पिछले कुछ सालों में पश्चिमी एवं अन्य देशों के साथ व्यापारयुद्ध ज़िम्मेदार था। प्रौद्योगिकी क्षेत्र की महासत्ता बनने की महत्वाकांक्षा से चीन ने पिछले दशक में महत्वाकांक्षी ‘मेड इन चायना पॉलिसी’ का ऐलान किया था। इस माध्यम से प्रौद्योगिकी, रोबोटिक्स, आर्टिफिशल इंटेलिजन्स, क्वांटम कॉम्प्युटिंग जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ाकर चीन ने इसमें अच्छी खासी बढ़त पाई थी। लेकिन, सेमीकंडक्टर्स के क्षेत्र में यही नीति असफलत होने का चित्र दिख रहा है। चीन हर साल लगभग १०० अरब डॉलर्स से अधिक मूल्य के सेमीकंडक्टर्स का आयात करता है। इनमें ताइवान समेत दक्षिण कोरिया और यूरोपिय देशों का समावेश है।

यह आयात कम करके चीन को इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना है। इसके लिए भारी १०० अरब डॉलर्स निवेश का ऐलान किया गया था। अनुसंधान, निर्माण, उत्पादन जैसे हर विभाग के लिए स्वतंत्र निधि घोषित की गई थी। यह निधि पाने के लिए चीन में हज़ारों कंपनियाँ खड़ी हुई। लेकिन, प्रौद्योगिकी क्षेत्र में कदम बढ़ाने में यह कंपनियाँ पूरी तरह से असफल रहीं और स्थानीय स्तर की ज़रूरतें भी यह कंपनियाँ पूरी नहीं कर पातीं, यह भी स्पष्ट हुआ है। ऐसे में ही देश की एक प्रमुख कंपनी को दिवालिया होने से बचाने के लिए ९ अरब डॉलर्स की निधि इस्तेमाल करने के लिए मज़बूर किया गया। इससे चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग के साथ कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ अधिकारी भी नाराज़ होने की बात कही जा रही है।

इस नाराज़गी के कारण ही सेमीकंडक्टर क्षेत्र का ज़िम्मा संभाल रहे उद्यमी और अफ़सर एवं मंत्रियों के खिलाफ भी कार्रवाई करने का कदम उठाया गया है। शिओ याकिंग नामक मंत्री के साथ स्वतंत्र निधि का व्यवस्थापन संभाल रहे उद्यमि डिंग वेनवू की पुछताछ जारी है। मंत्री, उद्यमि एवं अफ़सरों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए हैं। आनेवाले समय में जाँच का दायरा बढ़ सकता है, ऐसे संकेत भी दिए गए हैं। चीन के सेमिकंडक्टर क्षेत्र की असफलता के पीछे अमरीका के साथ पश्चिमी देशों ने चीन के वर्चस्ववाद के खिलाफ अपनाई आक्रामक भूमिका भी अहम वजह है।

अमरिका में बायडेन प्रशासन ने हाल ही में ‘चिप्स ऐक्ट’ पारित करनेवाले इस कानून के ज़रिये सेमीकंडक्टर क्षेत्र की कंपनियों को ५० अरब डॉलर्स से अधिक निधि प्रदान होगा। इसके बदले में अमरिकी कंपनियों के साथ ताइवान, जापान और दक्षिण कोरिया की कंपनियाँ सेमीकंडक्टर का उत्पादन अमरीका में ही शुरू कर रहे हैं। यह कानून चीन के सेमीकंडक्टर क्षेत्र के लिए बड़ा झटका है। इस कानून से पहले अमरीका ने सेमीकंडक्टर क्षेत्र की अमरिकी कंपनियों समेत यूरोपियन एवं जापानी कंपनियों को चीन को प्रगत तकनीक की आपूर्ती ना करें, ऐसी गुहार लगायी थी। साथ ही चीन की प्रमुख कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए थे।

यह अमरीका ने चीन के खिलाफ शुरू किए ‘चिप्स वॉर’ का हिस्सा माना जा रहा है। पश्चिमी देशों की यह कार्रवाई और स्थानीय स्तर पर कंपनियों की असफलता की वजह से चीन की कम्युनिस्ट हुकूमत अधिक बेचैन हुई है और आनेवाले समय में सेमीकंडक्टर क्षेत्र के साथ अन्य क्षेत्रों में इसकी गूंज सुनाई दे सकती है, यह दावा विश्लेषक कर रहे हैं।

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