समर्थ इतिहास- २१

अगस्त्य ये भारतीय संस्कृति के एक सर्वश्रेष्ठ द्रष्टा, सबसे श्रेष्ठ एवं ज्येष्ठ ऋषि थे और पवित्र समन्वय की नीति को अपनाकर भारतीय संस्कृति की गुणवत्ता और संख्याबल का विकास करनेवाले प्रथम एवं सर्वश्रेष्ठ धर्मप्रसारक थे।

अगस्त्य मुनि के जीवन में घटित हुई विभिन्न घटनाओं और उनके कार्य का अध्ययन हमने किया। इस समग्र अगस्त्य-इतिहास के ज्ञात हो जाने पर एक सिद्धांत सुस्पष्ट रूप में सामने आ जाता है और वह है ‘एक मानव भला क्या कुछ नहीं कर सकता? एक मानव जब विशाल एवं पवित्र ध्येय से प्रेरित होकर और भगवान का अनुसंधान रखकर कार्य करने के लिए उद्युक्त हो जाता है; तब वह एक व्यक्ति नहीं रहता, बल्कि वह एक महान शक्ति बन चुका होता है।

आज सुशिक्षित एवं विज्ञानमार्गी (विज्ञान के मार्ग पर चलनेवाला) भारत भाषा, पंथ, उपपंथ, जाति, उपजाति इन विभिन्न मार्गों से अक्षरश: खण्डित हो रहा है। विज्ञानवाद के ढोल पीटनेवाले इन विभिन्न टुकड़ों को अखंडित कैसे किया जा सकता है, इस बारे में केवल बातें ही बना रहे हैं।

भारतीय संस्कृति और भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के इतिहास की ओर निष्पक्ष वृत्ति से देखने पर किसी भी समझदार व्यक्ति की आसानी से यह समझ में आ सकता है कि समय समय पर इस भारत पर बाहर से अत्यंत क्रूर सांस्कृतिक एवं राजनीतिक आक्रमण हुए; साथ ही इस महान देश में रहनेवाले अंतर्गत भेदों के कारण भी यह खंडप्राय देश विकलांग होता गया और ऐसे हर एक समय पर इस भारत को उसका खोया हुआ स्वत्व पुनः प्राप्त करवा दिया, इस महान भारतीय संस्कृति से ही उत्पन्न हुए महान द्रष्टाओं ने ही। ये द्रष्टा कभी तपस्वी ऋषि थे, कभी कर्मयोगी थे, कभी राजयोगी थे, तो कभी संत एवं साधक थे।

स्वयं सम्राट होने के बावजूद भी अत्यधिक वत्सल भाव एवं न्यायनीति के साथ भारत को उत्कर्ष पर ले जानेवाले राजा जनक और समुद्रगुप्त। भारत में उत्पन्न हुई क्रियाशून्यता की ग्लानि से भारत को सभान करनेवाले आदिशंकराचार्य, रामानुजाचार्य, वल्लभाचार्य और मध्वाचार्य इन जैसे महान धर्माचार्य। अवास्तव एवं अनुचित हिंसा का प्रतिरोध करनेवालीं भगवान बुद्ध और भगवान महावीर ये दिव्य विभूतियाँ। ज्ञानेश्वर, कबीर, सूरदास, चैतन्य प्रभु, त्यागराज, एकनाथ, नामदेव, चोखामेळा और तुकाराम ये विजीगिषु वृत्ति के संत। धर्मशास्त्र और धर्मयुद्ध अत्यंत पवित्रता से संपूर्ण भारत को सिखानेवाले गुरु नानकदेवजी से गुरु गोविंदसिंहजी तक के सम्माननीय धर्मप्रणेता। भारत को परतंत्रता से मुक्त करने के लिए जीवनभर रणभूमि पर रहे हुए राणा प्रतापसिंह, छत्रपति शिवाजी महाराज और राजा रणजीतसिंह जैसे पराक्रमी राजा। हाल ही के भूतकाल में यानी अँग्रेज़ों को भारत से हटाने के लिए हुए महान स्वतंत्रता संग्राम के नेता लोकमान्य टिळक, महात्मा गांधी, सुभाषचंद्र बोस। सन १९७१ में पाकिस्तान को करारी हार देकर सबक सिखानेवाली समर्थ भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी। अखंड भारत के सपने को साकार करने के लिए भरकस कोशिशें करनेवाले वल्लभभाई पटेल, जवाहरलाल नेहरु और साहस के महामेरु स्वातंत्र्यवीर सावरकर। मैं जानता हूँ कि (इस तरह का कार्य करनेवाली हस्तियों में से) प्रमुख नाम लेना भी तय करेंगे, तो हज़ारों पन्ने भी कम ही पड़ जायेंगे; क्योंकि यह भारत पच्चीस हज़ार वर्षरूपी गहराई वाला और अनंत आध्यात्मिक वृत्तिरूपी लंबाई वाला तथा भगवानप्रणित निष्काम कर्मयोगरूपी अनादि चौड़ाई वाला विस्तृत समुद्र है और इसके उदर से अनगिनत नररत्न निर्माण होते रहे हैं।

ऊपरोक्त उल्लेखित सभी नररत्नों के नाम देखने पर एक बात बहुत ही सुस्पष्ट रूप से समझ में आती है कि ये सभी अगस्त्य ऋषि के ही अनुयायी थे। एक व्यक्ती के रूप में इनका प्रवास चलता रहा और प्रचंड कार्य और बहुत बड़े बदलाव इनके द्वारा किये गये। इन सभी व्यक्तियों की भारतीय संस्कृति के साथ रहनेवाली दृढ प्रतिबद्धता यही इनकी सबसे बड़ी ताकत थी और आज भी इनके जीवनचरित्र दीपस्तंभ के समान हैं।

इनमें से कुछ व्यक्तियों की जीवनप्रणालि के बारे में और उनकी राय के बारे में मतभेद हो सकते हैं अथवा कुछ गलतियाँ भी हो सकती हैं; लेकिन सिर्फ़ उन्हीं को देखते रहने के बजाय उनके जीवन में जो उत्कट, उच्च एवं श्रेयस्‌‍ है, उस सब पर ‘हमारे पिता का स्वामित्व हैे` यह मानकर उस सबका उपयोग करने पर इस भारत में फिर एक बार सभी दृष्टि से स्वर्णयुग अवतरित होगा

और इसी कारण ‘समर्थ इतिहास` यह लेखमाला जारी ही रहेगी, बीच बीच में अन्य कुछ दिशाओं से प्रवास करते हुए।

(क्रमशः)

सौजन्य : दैनिक प्रत्यक्ष

(मूलतः दैनिक प्रत्यक्ष में प्रकाशित हुए अग्रलेख का यह हिन्दी अनुवाद है|)

 

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