श्‍वसनसंस्था – २२

आज तक हमने यह देखा कि फेफड़ों के अलविओलाय तक हवा कैसे पहुँचती हैं। अब हम इस हवा के अगले प्रवास के बारे में अध्ययन करेंगे।

अलविलोय में हवा के पहुँचने के बाद उसमें उपस्थित विभिन्न प्रकार के वायु रक्त में कैसे पहुँचती हैं, इसकी अब हम जानकारी प्राप्त करेंगे। इसके लिए हमें थोड़ा पीछे लौटना होगा। स्कूल में पढ़ी भौतिकशास्त्र को रिवाइज करना होगा।

वायु के स्थलांतरण के नियमों का संक्षिप्त अध्ययन करना होगा।

हवा में उपस्थित अथवा अन्य स्थानों की वायु एक स्थान से दूसरे स्थान तक ‘डिफ्युजन’ से (एक प्रकार की वहन पद्धति से) जाती है। अलविओलाय में से प्राणवायु इसी प्रकार डिफ्युजन पद्धति से हवा में मिलती है तथा कर्बद्विप्राणिल वायु रक्त में से अलविओलाय में जाती है। हमारी श्वसन प्रक्रिया में इन वायुओं का डिफ्युजन कैसे होता है, यही महत्त्वपूर्ण नहीं है बल्कि डिफ्युजन होने की गति अथवा प्रति सेकेंड ‘रेट’ भी महत्त्वपूर्ण होती है। यह महत्त्वपूर्ण क्यों हैं, इसकी जानकारी हम आगे प्राप्त करेंगे, प्रारंभ में हम थोड़ा भौतिकशास्त्र देखेंगे –

* वायु के डिफ्युजन का भौतिकशास्त्र :
हमारी हवा अनेक प्रकार की वायुओं का मिश्रण है। इसमें नायट्रोजन वायु की मात्रा लगभग ७९% होती है तथा प्राणवायु की मात्रा २१ प्रतिशत और शेष १% में अन्य सभी प्रकार की वायु होती हैं। प्रत्येक वायु छोटे-छोटे कणों से बनी होती है। वायु के ये कण सतत घूमते अथवा गतिमान रहते हैं। इसे ही डिफ्यूजन कहा जाता है। इस लगातार होनेवाली गति के लिये उन्हें ऊर्जा कहाँ से प्राप्त होती है? शक्ति कहाँ से मिलती हैं? वायु के कणों की गति को उन कणों की Kinetic motion ही ऊर्जा प्रदान करती है। विश्व के सभी पदार्थों के कण सतत ऐसी गति करते रहते हैं। हम अ‍ॅबसोल्यूट झिरो इस संकल्पना की संक्षिप्त जानकारी लेंगे क्योंकि सिर्फ इसी तापमान पर विश्व के प्रत्येक पदार्थों के कणों की गति पूर्णरूपेण रुक जाती है। तात्पर्य यह है कि इस स्थिति में विश्व के प्रत्येक सजीव, निर्जीव पदार्थ के कणों की गति पूर्ण रूपेण रुक जाती है। ऐसा जिस तापमान पर होता है उसे ही अ‍ॅबसोल्यूट झिरो कहते हैं। यह तापमान – २७३ डिग्री केल्वीन होता है। हमारे सामान्य जीवन में तो तापमान का इतने निम्न स्तर पर जाना संभव नहीं है। यही है उस परमेश्वर की कृपा अथवा करुणा!

सर्वसामान्य परि्स्थिति में वायु के कणों की गति होती रहती है। वायु चाहे हवा में हो, द्राव में हो या पेशीसमूह में हो, कणों की गति होती ही रहती है। यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। प्राणवायु के कणों की गति अलविओलाय की हवा में, रक्त में, कोशिकाओं में सभी जगह शुरु ही रहती है। तात्पर्य यह है कि उसका डिफ्युजन सभी जगह ठीक से होता ही रहता है।

किसी भी वातावरण में इन कणों की गति कैसी होती है, यह जानने के लिए हम उसके समांतर ही उदाहरण देखेंगे। यह उदाहरण हमारी दिनचर्या का ही हिस्सा है। संगणक से सभी परिचित हैं। संगणक की स्क्रीन पर हम स्क्रीन सेव्हर ड़ालते हैं। कुछ स्क्रीन सेव्हर में कोई वस्तु, कोई चित्र अथवा लोगो सतत घूमता रहता है। यह चित्र अथवा लोगो कॉम्प्यूटर के एक कोने से अथवा किनारे से गति करना शुरु करता है। किसी भी एक दिशा में सरल रेखा में प्रवास करता है। कॉम्प्यूटर स्क्रीन के दूसरे किनारों अथवा कोनों से जाकर जब तक टकराता नहीं तब तक यह चित्र एक निश्चित दिशा में सरल रेखा में प्रवास करता है। दूसरी ओर टकराने के बाद इस चित्र की दिशा बदल जाती है। उस चित्र का कॉम्प्यूटर स्क्रीन पर इस प्रकार घूमना शुरु ही रहता है। प्रत्येक पदार्थ के कणों की गति भी ठीक इसी प्रकार होती है। पदार्थ का कोई भी एक कण निश्चित दिशा में, सरल रेखा में प्रवास करता है। उसके रास्ते में जब तक दूसरा कण नहीं आता तब तक वह उसी दिशा में आगे बढ़ता रहता है। रास्ते में दूसरे कण के आ जाने पर दोनों कण एक-दूसरे से टकराते हैं और दोनों कण अपनी-अपनी दिशा बदलकर प्रवास शुरु रखते हैं। वायु के कणों के बारे में भी यहीं उदाहरण लागू होता है।

अलविओलाय की हवा में से रक्त में एवं रक्त में से अलविओलाय की ओर वायु के कणों का प्रवास उनके connection gradient पर आधारित होता है। वायु का वहन ज्यादा मात्रा से कम मात्रा की ओर होता है परन्तु कणों गति कम मात्रा से ज्यादा मात्रा की ओर भी होती है।

संबंधित आकृति को देखकर हमारी समझ में आ जायेगा कि प्राणवायु के कणों की गति किस प्रकार होती है। ‘अ’ बाजू में पास के ‘बी’ बाजू की तुलना में कणों की मात्रा अधिक है, इसी लिए ‘अ’ की ओर से ‘ब’ की ओर सरकनेवाले कणों की मात्रा ‘ब’ से ‘अ’ की ओर सरकनेवाले कणों की तुलना में ज्यादा है।

फलस्वरूप प्राणवायु का वहन ‘अ’ की ओर से ‘ब’ की ओर होता है। इसे Net Deffusion कहते हैं। इसी नेट डिफ्युजन के नियम के अनुसार अलिविओलाय में से प्राणवायु रक्त की ओर प्रवास करता है। (क्रमश:)

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