चीन की वैक्सीन प्रभावी ना होने से विदेशी ‘वैक्सीन’ के ‘बूस्टर डोस’ की सिफारिश

लिमा/बीजिंग – चीन की कोरोना ‘वैक्सीन’ इस महामारी के खिलाफ ज्यादा प्रभावी साबित ना होने से अब पश्‍चिमी देशों ने विकसित किए वैक्सीन का ‘बूस्टर डोस’ की आवश्‍यकता है, ऐसी सिफारिश वैज्ञानिकों ने की है। लैटिन अमरीका स्थित पेरू में किए गए अध्ययन से यह जानकारी सामने आयी है। चीन ने यह वैक्सीन विकसित करने के बाद इसकी आयात करने में पेरू बड़ा आगे था। लेकिन, चीन की वैक्सीन लगाने के बाद भी पेरू में कोरोना की महामारी काबू में नहीं आ रही है। इस कारण स्वतंत्र अध्ययन किया गया था। इसके नतीजे चीन की ‘वैक्सीन डिप्लोमसी’ को नए झटके देनेवाले समझे जा रहे हैं।

china-vaccine-booster-dose-2पेरू के स्वास्थ्य विभाग ने चीन की वैक्सीन से संबंधित नई रपट हाल ही में जारी की थी। इसमें चीन की ‘सिनोफार्म’ ने तैयार किए वैक्सीन के दो डोस प्राप्त करने के बावजूद कोरोना की महामारी से महज़ ५० प्रतिशत सुरक्षा प्राप्त होने की बात सामने आयी है। फ़रवरी से जून के बीच पेरू की स्वास्थ्य यंत्रणा के लाखों कर्मचारी एवं स्वयंसेवकों को चीन की वैक्सीन दी गई थी। इनमें से लगभग चार लाख लोगों का अध्ययन किया गया। इनमें से कई लोग फिर से कोरोना संक्रमित होते देखे गए। इस वजह से पेरू ने अब चीन के अलावा अन्य देशों में विकसित वैक्सीन का ‘बूस्टर डोस’ देने का निर्णय किया है।

वर्ष २०१९ के अन्त में चीन के वुहान से फैली कोरोना की महामारी पर पहली प्रतिबंधात्मक वैक्सीन बनाने का दावा चीन ने किया था। विदेशी कंपनियों के वैक्सीन के परीक्षण जारी थे तभी चीन ने अपने नागरिकों को वैक्सीन प्रदान करना शुरू भी किया था। ‘वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन’ से साझा की हुई जानकारी में चीन ने अपनी वैक्सीन ७८ प्रतिशत से अधिक प्रभावी होने के दावे किए थे। वैक्सीन विकसित करने के बाद विश्‍व के अलग अलग देशों को ८० करोड़ वैक्सीन की आपूर्ति करेंगे, यह ऐलान चीन की हुकूमत ने किया था। इस वजह से स्वास्थ्य संगठन ने चीन की वैक्सीन को स्वीकृति प्रदान की थी।

china-vaccine-booster-dose-1अपने आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल करके चीन ने आग्नेय एशिया, खाड़ी क्षेत्र, लैटिन अमरीका एवं अफ्रीकी देशों में वैक्सीन की आपूर्ति करने के समझौते करके सप्लाई भी शुरू की थी। लेकिन, कुछ महीने बाद चीन की वैक्सीन कोरोना को रोकने में ज्यादा प्रभावी साबित ना होने की रपटें सामने आने लगी हैं। अफ्रीका के सेशल्स एवं खाड़ी क्षेत्र के बहरीन समेत लैटीन अमरीका के चिली में चीन की वैक्सीन इस्तेमाल करने के बाद भी कोरोना का संक्रमण फिर से तेज़ होने की घटनाएँ सामने आयीं थी। इसके बाद जून में मध्य अमरिका के छोटे से कोस्टारिका ने भी चीन की कोरोना वैक्सीन नकारने का निर्णय किया था। इसके बाद अब लैटिन अमरीका के पेरू में किया गया अध्ययन सामने आया है।

पेरू की सरकार ने अपने नागरिकों को ‘फायज़र’ या ‘एस्ट्राजेनेका’ कंपनी की वैक्सीन का ‘बूस्टर डोस’ देने की तैयारी शुरू की है। इस बारे में प्राथमिक जाँच भी होने की बात कही जा रही है। पेरू एवं लैटिन अमरिकी देशों में कोरोना के ‘डेल्टा’ एवं ‘लैम्बड़ा’ नामक वेरियंट काफी तेज़ी से फैल रहे हैं। यह नए वेरियंट चीनी वैक्सीन को नाकाम कर रहे हैं, यह भी सामने आ रहा है। इस वजह से नज़दिकी दिनों में विश्‍व के कई देशों में चीनी वैक्सीन की माँग कम होकर अन्य देशों की वैक्सीन को प्राथमिकता प्राप्त होगी, ऐसे संकेत प्राप्त होने लगे हैं। यह बात चीन की कम्युनिस्ट हुकूमत की ‘वैक्सीन डिप्सोमसी’ को बड़ा झटका देनेवाली साबित हुई है।

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