संघ का विदेश में विस्तार एवं विकास

pg12_RSS-flagराष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ – भाग ३६

सन १९८७ में पूर्व अ़फ्रीका के संघकार्य के ४० साल पूरे हो गये। इस कार्यक्रम का मुझे विशेष निमंत्रण मिला था। ‘हिंदु कौन्सिल ऑफ  केनिया’ नामक एक और संगठन संघ ने शुरू किया था। इस प्रकार युगांडा और टांझानिया में भी अलग अलग नामों से ऐसे ही संगठन शुरू किये गए। इन देशों में संघकार्य के चालीस साल पूरे होने के उपलक्ष्य में वहाँ पर एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया गया था। उसके लिए केनिया में २५ दिसम्बर १९८७  से लेकर तीन दिवसीय भव्य शिविर का आयोजन किया गया था।

इस शिविर में रहनेवाले अलग अलग कक्षों को महाराणा प्रताप, शिवाजी महाराज, गुरु गोविंदसिंह, स्वातंत्र्यवीर सावरकर इनके नाम दिये गए थे।

१ जनवरी १९८८ को केनिया में ‘हिंदु कौन्सिल ऑफ  केनिया’ का कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस समय, संपूर्ण अ़फ्रीका खंड के हिंदु बांधवों का संगठन स्थापित करने का बहुत ही महत्त्वपूर्ण निर्णय लिया गया। अ़फ्रीका के कई देशों में हिंदु जनसमुदाय बड़े पैमाने पर बसा है। गोरे लोगों का शासन रहनेवाले दक्षिण अ़फ्रीका में भी हिंदु समाज की संख्या बड़ी थी। लेकिन उनपर पश्‍चिमियों का बहुत बड़ा प्रभाव था। इसीलिए शुरुआती दौर में संघ को यहाँ पर कुछ ख़ास उत्साहवर्धक प्रतिसाद नहीं मिला। लेकिन भारत में से संघ के ज्येष्ठ कार्यकर्ताओं ने दक्षिण अ़फ्रीका में प्रवास किया और फिर उसका यहाँ के हिंदु जनसमुदाय पर प्रभाव पड़ने लगा।

दक्षिण अ़फ्रीका के स्वतन्त्र हो जाने पर, इस देश का भारत के साथ संबंध और भी दृढ़ हुआ। इससे दक्षिण अ़फ्रीकास्थित हिंदु समाज बड़े पैमाने पर भारत आने लगा। शायद आपको मालूम नहीं होगा, लेकिन हमारी ‘चारधाम यात्रा’ के लिए दक्षिण अ़फ्रीकास्थित हिंदु समाज के लोग बड़ी संख्या में आते हैं।

मॉरिशस जैसे देश को स्वतंत्रता मिली। वहाँ की बहुसंख्य जनता हिंदु होने के कारण मॉरिशस पर भारत का बहुत बड़ा प्रभाव है। सन १९९८ में ‘ऑल आफ्रिका हिंदु कौन्सिल’ की स्थापना हुई। सभी अ़फ्रीकी देशों में बसे हिंदु समुदाय का प्रतिनिधित्व इस कौन्सिल के द्वारा किया जाता है। अ़फ्रीकी देश ब्रिटीश साम्राज्य के जू से मुक्त होकर आज़ाद होने के बाद, इन देशों में रहनेवाले कई हिंदु इंग्लैंड़, ऑस्टे्रलिया, कॅनडा इन देशों में जा बसे। इनमें से कुछ लोग संघ के स्वयंसेवक भी थे। उन्होंने इन देशों में भी संघकार्य शुरू किया।  आज की घड़ी में दुनियाभर के तक़रीबन ४० देशों में संघ की शाखाएँ लगती हैं और लगभग १०० देशों में संघ का संपर्क है।

ये विदेशस्थ स्वयंसेवक पाँच सालों में एक बार आयोजित किये जानेवाले ‘विश्‍व संघ शिविर’ में सहभागी होने के लिए भारत आते हैं। इसकी शुरुआत सन १९९० में बंगळुरू में हुई। इस पहले ‘विश्‍व संघ शिविर’ में ४० देशों में से तक़रीबन ५५० स्वयंसेवक आये थे। दूसरा ‘विश्‍व संघ शिविर’ वडोदरा में हुआ और सहभागी हुए स्वयंसेवकों की संख्या यहाँ पर बढ़ चुकी थी। तीसरा शिविर मुंबई के भाईंदरस्थित ‘केशवसृष्टि’ में हुआ। चौथा ‘विश्‍व संघ शिविर’ गुजरात के गांधीनगर में और पाँचवाँ शिविर पुणे में संपन्न हुआ। २९ दिसम्बर २०१५ से ३ जनवरी २०१६ तक इंदौर में हुए छठें ‘विश्‍व संघ शिविर’ में लगभग ४५ देशों में से ७५० स्वयंसेवक आये थे।

‘विश्‍व हिंदु परिषद’ के द्वारा सन २०१५ में ‘वर्ल्ड हिंदु कॉँग्रेस’ का आयोजन नयी दिल्ली में किया गया था। उसका उद्घाटन दलाई लामाजी के हाथों किया गया था। दुनियाभर से हिंदु समाज के प्रतिनिधि इस परिषद में सहभागी हुए थे। उन्होंने इस समय अपने विचार प्रस्तुत किये। दुनियाभर में शुरू रहनेवालीं आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों पर इस परिषद में विचारमंथन हुआ।

इस प्रकार दुनियाभर में संघ का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। इतना ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के हिंदु जनसमुदाय से आनेवाली आर्थिक सहायता से भारत में कई स्थानों पर सेवाकार्य शुरू है। एकल विद्यालय, सेवा इंटरनॅशनल, वनवासी कल्याण आश्रम और संघ से जुड़ी हुईं कई संस्थाओं को विदेशस्थ हिंदु समुदाय से वित्तसहायता मिलती है। इस कारण सेवाकार्य जोश के साथ आगे बढ़ रहा है।

मुझे अ़फ्रीकी देशों एवं इंग्लैंड़ में बसे स्वयंसेवकों के साथ कार्य करने का अवसर मिला है। इन देशों के युवावर्ग के साथ बातचीत करते समय मैं हमेशा उन्हें ‘भारत को जान लीजिए’ यह कहता था। ‘अब आप भारत में वास्तव्य ना भी करते हों; मग़र आपके पूर्वज जिस देश से थे, उस देश की जानकारी आपको रहनी ही चाहिए’, ऐसा आग्रह मैं इन युवकों से करता था। उसे बहुत ही उत्तम प्रतिसाद मिला। अ़फ्रीकी देशों से एवं इंग्लैंड़ से कई युवक भारत आये। इनमें से अधिकांश लोगों ने शिवाजी महाराज के क़िले देखे हैं। भारत का इतिहास जान जाने के बाद यह युवावर्ग भारित हो गया। भारत के स्वतन्त्रतासंग्राम का गौरवशाली इतिहास सुनकर ये युवक अचंभित हो गये थे।

‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद’ की तरह ही इंग्लैंड़ में ‘नॅशनल हिंदु स्टुडंटस् फोरम’ (एनएचएसएफ)  यह संगठन शुरू हुआ है। यह छात्र संगठन बहुत ही प्रभावी बन चुका है। इस संगठन के पहले अध्यक्ष मनोज लाडवाजी को ब्रिटन का रानी ने ‘बकिंगहॅम पॅलेस’ में निमंत्रित किया था।

इंग्लैंड़ में शुरू हुए संघकार्य के इस वर्ष ५०  साल पूरे होनेवाले हैं। उस उपलक्ष्य में महाशिविर का आयोजन किया गया है। इस प्रकार दुनिया भर में संघ का कार्य व्यापक स्वरूप धारण कर रहा है।

विदेश में रहनेवाले भारतीयों को देश के प्रति कितनी आत्मीयता होती है, इसका एक ही उदाहरण मैं आपके सामने रखता हूँ। सन १९६५ और १९७१ में भारत के पाकिस्तान के साथ युद्ध हुए। इस दौरान अ़फ्रीकास्थित भारतीयों ने दिवाली नहीं मनायी थी। दरअसल ये दोनों युद्ध हम जीत चुके थे। ‘लेकिन इस युद्ध में देश के जवान शहीद हो चुके हैं, ऐसे हालातों में दिवाली मनाने की हमारी इच्छा ही नहीं हुई’ ऐसा इन अ़फ्रीकास्थित बांधवों ने मुझे बताया। वह सुनकर मेरा दिल भर आया। उसी समय मेरे मुँह से एक वाक्य निकला, ‘आप सभी भले ही रात को यहीं पर सोते हों, मग़र आपकी सुबह तो भारत में ही होती है।’

मैं दुनियाभर में विचरण कर चुका हूँ और वहाँ के हिंदुओं से मेरा अच्छाख़ासा संपर्क है। इस कारण मेरे निरीक्षण में आयीं कुछ बातें मैं गर्व के साथ कह सकता हूँ। जिस देश में हिंदु जनसमुदाय जा बसा, उस देश की प्रगति के लिए इन हिंदुओं ने प्रयास किये ही। लेकिन उस देश पर की निष्ठा क़ायम रखते हुए, भारत के साथ उस देश को जोड़ने का महत्त्वपूर्ण कार्य इन विदेशस्थ भारतीयों ने किया। आज भी ये विदेशस्थ भारतीय, भारत के प्रभाव को बढ़ाने का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। उसकी अहमियत कई सालों तक किसी के पल्ले नहीं पड़ी थी। लेकिन वैश्‍विकीकरण के युग में अब उसका महत्त्व धीरे धीरे सबकी समझ में आने लगा है।

संघ के मार्गदर्शन में लक्ष्मणरावजी भिडे और चमनलालजी ने शुरू किया यह कार्य आज दुनिया भर में विराट स्वरूप धारण कर रहा हुआ दिखायी दे रहा है।
(क्रमश:)

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