भारतीय मज़दूर संघ का अनुभव

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ – भाग ३४ 

pg12_Thengadi‘बीएमएस’ यह देश का सबसे बड़ा मज़दूर संगठन है ही। करोड़ों मज़दूर इस संगठन के सदस्य बन चुके हैं। कुछ साल पहले रशिया में ही लगभग चार हज़ार कामगार संगठनों की परिषद का आयोजन किया गया था। इस परिषद में – ‘बीएमएस’ यह दुनिया का सबसे बड़ा मज़दूर संगठन है, ऐसी घोषणा की गयी। साथ ही, ‘बीएमएस’ की कार्यपद्धति की भी सराहना की गयी। ऐसी सकारात्मक भूमिका राष्ट्र के विकास में काफ़ी हाथ बटाती है। ‘बीएमएस’ यह हालाँकि आज के दौर में भारत का ही नहीं, बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा मज़दूर संगठन बन गया है, मग़र फिर भी ‘अपनी ताकत का ग़लत इस्तेमाल करके उद्योगक्षेत्र की नाक में दम कर देना और देश का नुकसान करना’ ऐसा अविचार ‘बीएमएस’ कभी भी नहीं करता। इसका कारण है, इस मज़दूर संगठन की स्थापना के पीछे रहनेवाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचार और संस्कार।

भारतीय मज़दूर संघ के बारे में मेरा एक अनुभव बताता हूँ। ‘जन्मभूमि’ नामक एक गुजराती अख़बार है। यहाँ पर ‘बीएमएस’ का युनियन है। दिवंगत पत्रकार हरिंद्रभाई दवे यहाँ प्रमुख संपादक थे। हरिंद्रभाई कवि थे, साहित्य लिखते थे। उनका और मेरा अच्छाख़ासा परिचय था। एक दिन मुझे उनका फोन आया। उनके अख़बार के मज़दूरों ने हड़ताल की घोषणा की थी। यहाँ पर ‘बीएमएस’ का युनियन था, इसलिए हरिंद्रभाई इस हड़ताल को टालने के लिए मेरी सहायता चाहते थे। लेकिन अत्यधिक मजबूरी रहने के बिना ‘बीएमएस’ हड़ताल का ऐलान नहीं कर सकती, इसका मुझे यक़ीन था। मैंने हरिंद्रभाई से उनकी सारी बात सुन ली। उसके बाद मैंने ‘बीएमएस’ के अध्यक्ष रमणभाई शहा से संपर्क किया और मज़दूरों की भूमिका को भी जान लिया।

व्यवस्थापन द्वारा दिये गये आश्‍वासन पर विश्‍वास रखकर यहाँ के मज़दूरों ने निर्धारित समय से अधिक काम किया था। उसके पैसे उन्हें नहीं मिले थे। ‘बीएमएस’ ने कई बार व्यवस्थापन को इसकी याद दिलायी। लेकिन व्यवस्थापन ने उसे अनदेखा कर दिया। आख़िरकार ‘बीएमएस’ ने हड़ताल पर जाने की चेतावनी दी और यह हड़ताल कब शुरू होगी, उसकी तारीख़ भी बतायी। बहुत पहले से ही यह चेतावनी दी होने के बावजूद भी व्यवस्थापन की नींद नहीं खुली। अब हड़ताल शुरू होने में जब केवल २४  घण्टें बाक़ी थे, तब व्यवस्थापन का हाल बेहाल हो गया। यदि यह हड़ताल हुई होती, तो बहुत बड़ा नुकसान हुआ होता। क्योंकि व्यवस्थापन ने अपने दैनिक के साथ साथ अन्य ज़िम्मेदारियाँ भी ले ली थीं। ज़ाहिर है कि यह नुकसान और उससे होनेवाली अप्रतिष्ठा को टालने के लिए उनके प्रयास चल रहे थे।

रमणभाई शहा से सबकुछ जान लेने के बाद मैंने पुनः हरिंद्रभाई से संपर्क किया और मज़दूरों की माँगे बिलकुल जायज़ हैं, उन्हें उनका उचित पारिश्रमिक मिलना ही चाहिए’ यह बता दिया। हरिंद्रभाई ने उसे मान लिया, लेकिन उनके व्यवस्थापन को थोड़ी अवधि चाहिए थी। मध्यस्थता करते समय मुझे हरिंद्रभाई और रमणभाई को कुल मिलाकर २६ बार फ़ोन करने पड़े। लेकिन आख़िरकार समझौता हो ही गया। व्यवस्थापन ने इस समय दिये आश्‍वासन पर भरोसा रखकर ‘बीएमएस’ ने हड़ताल स्थगित कर दी। आगे चलकर मज़दूरों को उनका जायज़ पारिश्रमिक मिल गया।

यह हड़ताल शुरू होने से पहले, इस अख़बार के कार्यालय के बाहर केवल एक बोर्ड लगाया गया था। उसपर हड़ताल की तारीख़ लिखी गयी थी। इसके अलावा किसी भी प्रकार की नारेबाज़ी, प्रदर्शन इस समय नहीं हुए, इस बात की हरिंद्रभाई ने बहुत ही सराहना की। उन्होंने मेरा शुक्रिया अदा किया। लेकिन इस बात का श्रेय लेने से मैंने साफ़ साफ़ इन्कार कर दिया। इसका श्रेय सर्वस्वी ‘बीएमएस’ का ही है। क्योंकि इस संगठन ने, मज़दूरों के हित के लिए जंग लड़ते समय, आख़िर तक संयम की भूमिका निभायी। मजबूरन उन्हें हड़ताल का हथियार निकालना पड़ा। लेकिन अतिरेकी भूमिका अपनाकर, मुश्किल में फँसे व्यवस्थापन को सबक सिखाने का अविचार नहीं किया। इस कारण, माँगें भी पूरी हो गयीं, लेकिन संघर्ष की घड़ी नहीं आयी।

दत्तोपंत ठेंगडीजी राज्यसभा के सदस्य थे। भारत के कुछ सांसदों को सोव्हिएत रशिया के दौरे का निमंत्रण मिला। उसमें दत्तोपंतजी एवं अन्य कुछ नेताओं के साथ भूपेश गुप्ता ये कम्युनिस्ट नेता भी?थे। मॉस्को के होटल में पहुँचते ही दत्तोपंतजी को फ़ोन आया। संघ के वहाँ के स्वयंसेवक, दत्तोपंतजी के वहाँ के पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम के बारे में जानना चाहते थे। उसके अनुसार, दत्तोपंतजी किस तरह और कितने व्यस्त हैं, यह ध्यान में लेकर वे स्वयंसेवक अपने लिए उनका कार्यक्रम निश्‍चित करनेवाले थे। थोड़े ही समय में स्वयंसेवक दत्तोपंतजी से आकर मिले और दत्तोपंतजी के पास रहनेवाले खाली समय में अपना कार्यक्रम निश्‍चित कर दिया।

यह सबकुछ देखकर भूपेश गुप्ताजी हैरान हो गये। ‘मैं स्वयं कम्युनिस्ट नेता हूँ और सोव्हिएत रशिया जैसे देश में आने के बाद भी, अभी तक मुझसे किसी ने संपर्क नहीं किया है। लेकिन संघ के स्वयंसेवकों ने चन्द कुछ समय में ही आप से संपर्क किया। संघ का नेटवर्क कितना दूरदराज़ तक फैला हुआ है, यह बताने के लिए यह घटना पर्याप्त है’ इन शब्दों में भूपेश गुप्ताजी ने प्रशंसा की।

‘बीएमएस’ यह देश का सबसे बड़ा मज़दूर संगठन है ही। करोड़ों मज़दूर इस संगठन के सदस्य बन चुके हैं। कुछ साल पहले रशिया में ही लगभग चार हज़ार कामगार संगठनों की परिषद का आयोजन किया गया था। इस परिषद में – ‘बीएमएस’ यह दुनिया का सबसे बड़ा मज़दूर संगठन है, ऐसी घोषणा की गयी। साथ ही, ‘बीएमएस’ की कार्यपद्धति की भी सराहना की गयी। ऐसी सकारात्मक भूमिका राष्ट्र के विकास में काफ़ी हाथ बटाती है। ‘बीएमएस’ यह हालाँकि आज के दौर में भारत का ही नहीं, बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा मज़दूर संगठन बन गया है, मग़र फिर भी अपनी ताकत का ग़लत इस्तेमाल करके उद्योगक्षेत्र की नाक में दम कर देना और देश का नुकसान करना, ऐसा अविचार ‘बीएमएस’ कभी भी नहीं करता। इसका कारण है, इस मज़दूर संगठन की स्थापना के पीछे रहनेवाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचार और संस्कार।

श्रीगुरुजी ने स्वतंत्र हो चुके देश की ज़रूरत को पहचानकर, औद्योगिक क्षेत्र का विकास और कामगारों का कल्याण, इनके लिए ‘भारतीय मज़दूर संघ’ की स्थापना करने का फैसला करके दिखायी हुई दूरदर्शिता चौकन्ना कर देनेवाली है। ‘उद्योजक और मज़दूर इनमें समन्वय होना चाहिए, संघर्ष नहीं’ यह श्रीगुरुजी की भूमिका थी। इन समन्वयवादी विचारों पर श्रद्धा रखनेवाला ‘भारतीय मज़दूर संघ’ यह दुनिया का सबसे बड़ा मज़दूर संगठन बन सका, इसका कारण यही है कि यह मज़दूर संगठन सबसे पहले देश का विचार करता है। क्योंकि देश आगे बढ़ा, तो ही इस देश के मज़दूरों के साथ साथ सभी का विकास होगा और इस राष्ट्र को पुनः ‘परमवैभव’ प्राप्त होगा।

(क्रमश:)

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